किसी व्यक्ति के जीवन में या राष्ट्र में जो भी घटनाएँ घटती हैं वे हमें कुछ सिखाने के लिए आती हैं , हम उनसे कुछ शिक्षा लेते हैं या नहीं ये हमारे विवेक पर निर्भर है , जैसे हम अपनी आपसी फूट और मतभेदों की वजह से युगों तक गुलाम रहे l अब यह हमारे विवेक पर निर्भर है कि हम अपनी गलती सुधारते हैं या उसे दोहराते हैं l इसी सत्य को समझाने वाली एक कथा है --------- बहेलिया जाल फैलाता बटेरों का समूह उसे उठाता , झाड़ी में उलझाता और निकल भागता l बहेलिया नित्य खाली हाथ घर वापस लौट जाता l पत्नी ने कहा --- ' आज भी खाली हाथ लौट आए l l ' उसने कहा ---- ' पक्षियों में संगठन ही ऐसा है कि जाल डालता हूँ , वे उसे उठाकर , झाड़ी में उलझाकर निकल भागने में सफल हो जाते हैं l ' पत्नी ने कहा ---- " धैर्य रखो ! उनमे फूट पड़ने का इंतजार करो l देखना सब फँसेंगे l " एक दिन हुआ भी ऐसा ही l बहेलिया ने दाना डाला और जाल फैलाया l बटेरों का झुंड आया और सभी दाना चुगने में लग गए l भूल से एक बटेर ने दूसरे के सिर पर पैर रखकर कुलाँच मारी l विवाद शुरू हो गया l विवाद बढ़ते -बढ़ते नौबत मारामारी की आ गई l दूसरा बोला ---लगता है जैसे जाल तू ही उठाता है l पहले ने पलट कर जवाब दिया -- और क्या तू उठाता है l ' यदि मैं न उठाऊं तो तेरी क्या बिसात ! बस विवाद बढ़ता ही गया l एक दूसरे के समर्थन में झुंड दो दलों में विभाजित हो गया l बहेलिया समझ गया कि अब काम होने वाला है l बटेर विवाद में उलझे रहे और जाल उठाना भूलकर एक -एक कर जाल में उलझते गए l जब सब जाल में फँस गए तो बहेलिए ने जाल समेटा और चल दिया l अब बटेर पछता रहे थे कि व्यर्थ के विवाद और झगड़े में पड़कर वे सब जाल में फँस गए l बहेलिए को पत्नी की बात याद आ गई कि विवाद होने तक इंतजार करो , संगठन जरुर बिखरेगा l
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