17 June 2022

WISDOM

   महाभारत  में  एक   प्रसंग  है ---- 'शिशुपाल  वध  '  l  शिशुपाल  के  जन्म  के  समय    ज्योतिषियों  ने  लक्षणों  के  आधार  पर  बताया   था  कि  भगवान  कृष्ण  के  हाथों  उसके  इस  पुत्र  का  वध  होगा  l   यह  सुनकर  वह   भगवान  श्रीकृष्ण  के  पास  गई  और  उनसे  अपने  पुत्र  के  जीवन दान  के  लिए  प्रार्थना  की  l  तब  कृष्ण जी  ने  उसे  वचन  दिया  कि   शिशुपाल   के  सौ  गुनाहों  को  वे  माफ  करेंगे  लेकिन  जैसे  ही  उसने  101  वीं  गलती  की ,  उसका  वध  कर  दिया  जायेगा  l   शिशुपाल  की  माँ  आश्वस्त  हुईं  कि  उनका  पुत्र  इतनी  अधिक  गलतियाँ  नहीं  करेगा  l  कहते  हैं ' विनाशकाले  विपरीत  बुद्धि  ' l l  राजसूय  यज्ञ  में  भरी  सभा  में  जब  शिशुपाल   भगवान  श्रीकृष्ण  को  गालियाँ  देने  लगा  तब  भगवान  गिनते  रहे ---- 1 , 2 ------- 97 . ---- 99 , 100  , और  इसके  बाद  जैसे  ही  उसने  एक  और  गाली  दी  कि  भगवान  की  उंगली  में  सुदर्शन चक्र  आ  गया   और  फिर  शिशुपाल  भागता   फिरा  ,  उसे  किसी  ने  भी  नहीं  बचाया  ,  उसका  अंत  हुआ   l   शिशुपाल  में  उद्दंडता   का  ये  दुर्गुण   बाल्यकाल  से  ही  था   l      श्रीकृष्ण  तो   भगवान  थे   वे  जानते  थे  कि  कलियुग  में    दुर्बुद्धि  के  कारण  अपराध  अपने  चरम  स्तर  पर  होंगे   इसलिए  इस  प्रसंग  के  माध्यम  से  उन्होंने  संसार  को  समझाया  कि   किसी  की  गलती  को  प्रथम  कदम    पर  ही  रोक  देना  चाहिए   जिससे  वह  गलती    एक  से  बढ़कर  सौ  तक  न  पहुंचे  l   अपराध  की  शुरुआत   परिवार  में  की  गई  एक  छोटी  सी  गलती  से  होती  है  ,  जिसे   उसके  माता -पिता  और  परिवार  के  बड़े -बुजुर्ग   लाड़ -प्यार  की  वजह  से  रोकते  नहीं , बच्चे  को  समझाते  नहीं  l  यही  गलती  उसे  आगे  जाकर  एक  बड़ा  अपराधी  बना  देती  है    और  ये  अपराधी  प्रवृति  उस  तक  सीमित  नहीं  रहती  ,  उसकी  संतानों  में  संस्कार  रूप  में  आ  जाती  है  ,  इस  तरह  अपराध  का  दायरा  बढ़ता  ही  जाता  है   l '  बबूल  के  पेड़  में  कभी  आम  नही   लगता  l  '    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  कहा  है -- विचारों  का  परिष्कार , संस्कारों  में  परिवर्तन  अनिवार्य  है  l  

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