लघु -कथा --- एक दिन किसी की जेब से एक सोने का सिक्का गंदे चीथड़े के पास गिर पड़ा , चिथड़े को देख कर सोने का सिक्का बोला ---- " ओ गंदे चिथड़े ! जरा दूर हट जा , देखता नहीं मैं सोने का सिक्का हूँ , जिसे पाने के लिए राजा से लेकर रंक तक दिन -रात यत्न करते हैं l " यह बात चिथड़े को बहुत अखरी , किन्तु कर ही क्या सकता था l दिन पलटे और चिथड़े के भी कायाकल्प के दिन आए l कचड़ा बीनने वाले ने उसे उठा लिया और कागज के कारखाने में बेच दिया , उससे जो कागज तैयार हुआ वह करेंसी नोट -दस स्वर्ण मुद्राओं के बराबर मूल्य का आँका गया l एक दिन जब वह अपने कार्य स्थल पर था तब उसका सामना सोने के सिक्के से हुआ l उसने सोने के सिक्के को पहचान लिया और बोला ---- " भैया ! उस दिन तो तुम मुझे दुत्कार रहे थे , किन्तु आज मैं तुमसे अधिक कीमत का बन गया हूँ l तुम जैसे लोग दूसरों की निरर्थक निंदा करते रहते हो और जब वे बड़े बन जाते हैं तो या तो उनसे ईर्ष्या करने लगते हो लेकिन यदि उनसे कोई स्वार्थ सिद्ध होता है तो उनकी पूजा करने दौड़ पड़ते हो l " सोने का सिक्का अपनी अहंता पर लज्जित था l
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