लघु -कथा ---- ' क्रोध करने वाला शत्रुओं से पहले अपने को ही नुकसान पहुंचाता है l '------- एक साँप को बहुत गुस्सा आया l उसने फन फैलाकर गरजना और फुफकारना शुरू किया और कहा ---- ' मेरे जितने भी शत्रु हैं , आज उन्हें खाकर ही छोडूंगा l उनमे से एक को भी जिन्दा नहीं रहने दूंगा l ' मेढक , चूहे , केंचुए और छोटे -छोटे जानवर उसके उस गुस्से को देखकर डर गए और छिपकर देखने लगे , देखें आखिर होता क्या है ? साँप दिनभर फुफकारता रहा और दुश्मनों पर हमला करने के लिए दिन भर इधर -उधर बेतहाशा भागता रहा l फुफकारते -फुफकारते उसके गले में दर्द होने लगा l शत्रु तो कोई हाथ नहीं आया , पर कंकर - पत्थरों की खरोंचों से उसकी सारी देह जख्मी हो गई , शाम को थकान से चकनाचूर होकर एक तरफ जा बैठा l ----- ' अनावश्यक आवेश और विशेष व्यक्ति को संत्रस्त करना करना अंतत: दुःख पहुँचाता है l
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