हकीम लुकमान बचपन में गुलाम थे l वे अपने मालिक के घर रहकर काम करते , उनका दिया अन्न खाते एवं उनकें दिए कपड़े पहनते l एक दिन उनके मालिक ने ककड़ी खरीदी , ककड़ी मुंह में डालते ही मालिक का मुंह कड़वा हो गया l उन्होंने मजाक में ही वह ककड़ी लुकमान को खाने को दे दी l लुकमान को भी ककड़ी कड़वी लगी , परन्तु उन्होंने प्रसन्न भाव से उसे खा लिया l मालिक को यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ l उन्होंने लुकमान से पूछा ---- " तुमने इतनी कड़ुई ककड़ी कैसे खा ली ? " लुकमान ने उत्तर दिया --- " मालिक ! आप मुझे प्रतिदिन खाने के लिए अनेक स्वादिष्ट पकवान देते हैं , उनको खाकर मैं आनंदित होता हूँ l आज जब आपने मुझे खाने के लिए कड़ुई ककड़ी दी तो मैंने सोचा कि मुझे इसे भी प्रसन्नता से ग्रहण करना चाहिए l ' लुकमान का मालिक एक धार्मिक व्यक्ति था और उस पर लुकमान की इस बात का गहरा प्रभाव पड़ा l वह बोला ---- " लुकमान , आज तुमने मुझे उपदेश दिया है कि परमात्मा हमें इतने सुख देता है l यदि वह कभी हमें दुःख दे तो उस दुःख को भी हमें प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करना चाहिए l " इतना कहकर मालिक ने लुकमान को गुलामी से आजाद कर दिया l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं--- ' यदि हम जीवन के सुख और दुःख , दोनों को भगवान का आशीर्वाद माने तो जीवन कभी कष्टकारी प्रतीत नहीं होगा l '
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