किसी भी समाज में अन्धविश्वास , अंध परम्पराएँ , जाति , धर्म के नाम पर झगड़े , बेवजह की मारकाट -- ये सब कहीं न कहीं इस स्थिति को स्पष्ट करती हैं कि लोगों के पास कोई उत्पादक कार्य नहीं है और उत्पादक कार्य न होने के कारण लोग ऐसे अनुत्पादक कार्यों में उलझ जाते हैं या स्वार्थी तत्व उन्हें अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर लेते हैं l एक डॉक्टर , इंजीनियर , तकनीकी विशेषज्ञ , बड़े कलाकार ---- जिनके पास पाँव को मजबूती से टिकाने की अपनी जमीन है , वे इन सब में कभी नहीं उलझते l एक कारण यह भी है कि वैज्ञानिक युग में रहने के बाद भी हमारी चेतना विकसित नहीं हुई , स्वार्थ , लोभ , लालच , दिखावा आदि के कारण सामाजिक कुरीतियों को छोड़ना नहीं चाहते l अंध -परम्पराएँ समाज में कैसे बिना सोचे -समझे प्रचलित हो जाती हैं , यह बताने वाली एक कथा है ------- एक पंडित जी थे l उनके घर के पास एक गधा रहता था l l जब पूजा के समय पंडित जी शंख बजाते , तो गधा भी चिल्लाने लगता था l एक दिन पता चला कि गधा मर गया , सो पंडित जी ने उसकी स्मृति में बाल मुढवा लिए l शाम को वे बनिए की दुकान पर सौदा लेने गए l बनिए ने पूछा --- महाराज ! आज यह सिर घुटमुंड कैसा ? " पंडित जी ने कहा ---- ' अरे भाई ! शंखराज की इहलीला समाप्त हो गई l ' बनिया पंडित जी का यजमान था l उसने भी अपना सिर घुटवा लिया l जिसने भी यह सुना कि पंडित जी के कोई शंखराज नहीं रहे , वे अपना सिर घुटाते रहे l एक सिपाही बनिए के यहाँ आया , उसने तमाम गाँव वालों को सिर मुड़ाते देखा l जब उसे पता चला कि शंखराज जी महाराज नहीं रहे तो उसने भी अपना सिर घुटवा लिया l धीरे -धीरे सारी फौज सपाट -सर हो गई l अफसरों को बड़ी हैरानी हुई l उन्होंने पूछा ------- भाई ! क्या बात हो गई ? ' पता लगाते लगाते पंडित जी के घर तक पहुंचे और जब मालूम हुआ कि शंखराज कोई गधा था , तो मारे शर्म के सब के चेहरे झुक गए l
31 July 2022
WISDOM ------
अनमोल मोती ----- जब बाबर ने अमीनाबाद को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया तो गुरु नानक और उनके शिष्य मरदाना को भी जेल की हवा खानी पड़ी l बाबर को जब गुरु नानक की आध्यात्मिक शक्तियों के बारे में पता चला तो वह जेल में उनसे मिलने आया l नानक ने बादशाह को देखकर कहा --- " मनुष्य का धर्म तो लोगों की सेवा करना है और आप अपने राज्य की प्रजा पर शासन कर रहे हैं l " थोड़े ही शब्दों में बाबर नानक की बात समझ गए और अपनी भूल स्वीकार करते हुए कहा --- " बाबा ! यदि आप कुछ मांगना चाहते हैं तो मांग लीजिए l " गुरु नानक ने कहा ---- " राजा से तो मुर्ख मनुष्य ही मांगते हैं l मुझे यदि किसी वस्तु की आवश्यकता होगी तो ईश्वर से मांगूंगा l देने वाला तो दाता ईश्वर है जो राजाओं तक को देता है l " इतना सुनकर बाबर ने कहा ---- " तो आप ही मुझे कुछ प्रदान कीजिए l " तब नानक ने एक उपदेश दिया ---- " बाबर ! इस संसार में किसी भी वस्तु का स्थायित्व नहीं है l ध्यान रखो ! आपका शासन या आपके पुत्रों का शासन भी तब तक चलेगा जब तक उसका आधार प्रेम और न्याय बना रहेगा l पर धर्म का स्थायित्व तो हर क्षण और हर घड़ी है , इसलिए तू जीवन में धार्मिकता का समावेश कर l " इस उपदेश से बाबर के जीवन की दिशा ही बदल गई l
29 July 2022
लघु -कथा
लघु -कथा ----- 1. एक तपस्वी थे l वन में रहकर घोर तप करने लगे l इंद्र देव घबराए , इतना कठोर तप करने वाला इन्द्रासन का हक़दार बन सकता है l ऐसा उपाय करना चाहिए कि तपस्वी का व्रत खंडित हो l इसके लिए इंद्र ने अप्सराएँ भेजीं , डराने के लिए राक्षस भेजे , पर तपस्वी ज्यों के त्यों रहे , जरा भी डगमगाए नहीं l अब इंद्र ने दूसरी तरकीब अपनाई , वे परी का रूप धारण कर पकवान , मिष्ठान लेकर पहुँचने लगे l तपस्वी ने पहले तो उपेक्षा दिखाई , फिर उनकी जीभ चटोरी हो गई l रोज उस भक्त की प्रतीक्षा करने लगे l एक दिन वन परी अपने घर छप्पन भोग पकवान खिलाने का निमंत्रण देने आई l उसे खाकर तपस्वी बहुत प्रसन्न हुए l परी ने कहा ---- " आप मेरे घर ही निवास करें l इससे बढ़कर भोजन कराया करुँगी l " तपस्वी सहमत हो गए l रोज -रोज पकवान खाते थे l परी पर मुग्ध हो गए l गंधर्व विवाह करने पर सहमत हो गए l तप भ्रष्ट हुआ , इंद्र बहुत प्रसन्न हुए , बोले ----- " अन्य रस छोड़े जा सकते हैं , पर स्वाद बड़े बड़ों की साधना चट कर जाता है l "
2. एक सेठ जी खाँसी से बहुत परेशान थे l वैद्य जी के पास गए , तो वैद्य जी ने परहेज करने को कहा l सेठ जी ने कहा ---- " आप दवा चाहे जितनी कड़वी दे दें , पर मैं परहेज नहीं कर सकता l " वैद्य जी ने कहा ---- " फिर आप परहेज भी मत कीजिए और दवा भी मत लीजिए , क्योंकि खाँसी से तीन लाभ आपको होंगे ही l एक तो यह कि रात भर आप खाँसते रहोगे , तो घर में चोर नहीं आयेंगे l दूसरा आपको कुत्ते नहीं काटेंगे , क्योंकि कमजोरी के कारण आप बिना लाठी के नहीं चल सकेंगे l तीसरा लाभ यह है कि बुढ़ापा नहीं आएगा , क्योंकि खाँसी के कारण जीवन जल्दी समाप्त हो जायेगा l " यह सुनकर सेठ जी की समझ में बात आ गई और उन्होंने खाने - पीने का नियंत्रण कर अपने को स्वस्थ कर लिया l हकीम लुकमान कहते थे कि भोजन का असंयम कर मनुष्य अपनी जीभ से अपनी कब्र खोदता है l
WISDOM ----
लघु -कथा ---- सत्य और असत्य नाम के दो भाई थे l सत्य स्वच्छ और सुन्दर जबकि असत्य मलिन और देखने से ही अप्रिय लग रहा था l असत्य जहाँ जाता ठुकराया और दुत्कारा ही जाता लेकिन सत्य का सम्मान होता l इसलिए असत्य को सत्य से ईर्ष्या हो गई और उसने सत्य से बदला लेने का निश्चय किया l एक बार दोनों तीर्थ यात्रा पर निकले , घूमते - घूमते बद्रीनाथ पहुंचे l स्नान करने के लिए एक सरोवर में उतरे l सत्य देह मल -मलकर स्नान करने में लगा था , इस बीच असत्य चुपचाप उसके कपड़े पहन कर भाग गया l सरोवर से बाहर निकलने पर सत्य को विवश होकर असत्य के कपडे पहनने पड़े l तब से दोनों बराबर घूम रहे हैं l अब हर जगह , हर व्यक्ति के पास असत्य की पूजा होती है , उसे सम्मान मिलता है क्योंकि उसने सत्य के कपड़े पहन लिए हैं , यह बात आम जनता नहीं जानती और अब सत्य दर -दर मारा -मारा फिर रहा है l
28 July 2022
WISDOM ----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " अहंकार के वशीभूत होकर जिसने भी स्वयं को भगवान मानने का प्रयास किया है , उसका हश्र क्या हुआ है , यह सब जानते हैं l कोई भी शक्तिमान , सामर्थ्यवान तो हो सकता है , पर भगवान नहीं बन सकता l " आचार्य श्री लिखते हैं ---- " जो व्यक्ति अहंकारी होता है वह अधिक क्रोध करता है और भय भी उसके अंदर किसी न किसी रूप में मौजूद होता है l लेकिन वह ऐसे प्रदर्शित करता है , जैसे उसे कोई भय नहीं है l ऐसा व्यक्ति स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ साबित करना चाहता है और स्वयं को बड़ा समझदार मानता है l जबकि उसका व्यवहार ऐसा होता है , जो उसकी नासमझी को दरशाता है l " श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान ने कहा भी है ---क्रोध से बुद्धि का नाश होता है l क्रोध एक ऐसा विकार है जो कई तरह की बीमारियों को जन्म देता है l
WISDOM -----
लघु -कथा ------ ब्रह्मा जी स्रष्टि का संविधान लिख रहे थे l उन्होंने सभी प्राणियों के एक -एक प्रतिनिधि को बुलाया l समिति का कार्य ठीक प्रकार से चल पड़ा l जो निर्णय होता वह पीपल के पत्ते पर लिख दिया जाता l कागज का अविष्कार उस समय तक हुआ न था l रात्रि होने पर सभी सभासद अपने -अपने निवास स्थान पर लौट जाते l एक गधा ही था जो छिपकर किसी कोने में बैठ जाता ताकि आराम से पड़ा रहे l व्यर्थ इधर -उधर घूमना न पड़े l रात्रि को भूख लगी तो गधे ने वे सभी पीपल के पत्ते खा लिए जिन पर बहुत दिनों से संविधान लिखा जाता था l प्रात: जब गोष्ठी आरम्भ हुई तो पीपल के पत्ते तलाशे गए l मालूम हुआ कि उन्हें गधे ने खा डाला l देवताओं को गधे की मूर्खता पर बड़ा क्रोध आया और उन्होंने उसे उठाकर स्वर्ग से धरती पर पटक दिया l उसे थोड़ी चोट लगी पर कुछ ही दिनों में चंगा हो गया l गधे ने सब प्राणियों से कहना शुरू कर दिया कि समस्त शास्त्र चाहे वे धर्म के हों या राजनीति के उसके पेट में भरे हैं l सुनने वाले हंसकर रह जाते l उसकी आगे की पीढ़ियाँ ही उस सत्य को प्रमाणित करती हैं कि ज्ञान का भंडार उनके मस्तिष्क में भरा है , पर वे उस पर आचरण नहीं करते l
27 July 2022
WISDOM ----
इस संसार में हमेशा से ही अँधेरे और उजाले में संघर्ष रहा है l अंधकार को सबसे ज्यादा डर प्रकाश से ही लगता है l देवत्व को मिटाने के लिए सारी आसुरी शक्तियां एक जुट हो जाती हैं l असुरता में एक विशेष बात यह है कि वे संगठित रूप से स्वयं को इस तरह प्रस्तुत करते हैं जैसे उनका मार्ग बिलकुल सही है , शेष सब गलत है l सामान्य व्यक्ति समझ नहीं पाता और वह असुरता का ही अनुसरण करने लगता है l ---------- सतयुग धरती की ओर बढ़ रहा था l यह देखकर कलियुग को अपने अस्तित्व की बड़ी चिन्ता हो गई , उसने अपने सहायकों की सभा बुलाई l सहायकों ने उसे ढाढस बंधाया , किसी ने कहा , मैं पृथ्वी पर जाकर धन का लालच फैला दूंगा , किसी ने कहा , हम लोगों को कामनाओं में फंसा देंगे l किसी ने कामिनी का दर्प दिखाया , पर कलि को संतोष नहीं हुआ l एक बूढ़ा सहायक एक कोने में बैठा था l वह बोला ---- " मैं जाकर लोगों में निराशा और आलस्य पैदा कर दूंगा l उनके साहस को नष्ट कर दूंगा , बस ! फिर वे किसी काम के न रहेंगे और न वे किसी बुराई को दूर करने के लिए संघर्ष कर सकेंगे और न ही किसी अच्छाई को उपार्जित करने का साहस उनमें रहेगा l " इस वृद्ध सहायक की बात कलि महाराज को बहुत पसंद आई और सतयुग को आगे बढ़ने से रोकने की जिम्मेदारी उन्होंने उसी को सौंप दी l आज के समय के निराश और आलसी लोग कलि महाराज की प्रजा बने हुए हैं l सतयुग बेचारा क्या करे ?
WISDOM -----
अनमोल मोती ----- खडाऊं पहन कर पंडित जी मंदिर की ओर चले l कदम बढ़ने के साथ खडाऊं से भी खट -खट का स्वर निकल रहा था l पंडित जी को यह आवाज पसंद न आई l वह एक स्थान पर खड़े होकर खडाऊं से पूछने लगे ---- " अच्छा यह तो बताओ कि पैरों के नीचे इतनी दबी रहने पर भी तुम्हारे स्वर में कोई अंतर क्यों नहीं आया ? " खडाऊं ने पैरों के नीचे दबे -दबे ही पंडित जी की जिज्ञासा शांत करते हुए कहा ----- " मैं तो जीने की इच्छुक हूँ l पंडित जी ! इस संसार में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो दूसरों के दबाव में आकर अपना स्वर मंद कर लेते हैं , उन्हें तो जीवित अवस्था में भी मैं मरा हुआ मानती हूँ l "
26 July 2022
WISDOM - -----
लघु कथा ---- एक गुरु के दो शिष्य थे l दोनों श्रम करते थे l दोनों भजन -पूजन भी करते थे और सफाई और स्वच्छता पर भी दोनों की आस्था थी , किन्तु एक बड़ा सुखी था और दूसरा बड़ा दुःखी था l गुरु की मृत्यु पहले हुई है , उसके थोड़े समय बाद उन दोनों की भी मृत्यु हो गई l दैवयोग से तीनो स्वर्ग में भी एक स्थान पर जा मिले l वहां भी स्थिति पहले जैसी ही थी l जो पृथ्वी पर सुखी था , वह स्वर्ग में भी प्रसन्नता अनुभव कर रहा था और दूसरा व्यक्ति जो पृथ्वी पर कलह -क्श के कारण अशांत रहता था , वह स्वर्ग में भी अशांत था l दुःखी शिष्य ने गुरु के समीप जाकर कहा --- 'भगवन ! लोग कहते हैं ईश्वर भक्ति से स्वर्ग में सुख मिलता है , पर हम तो यहाँ भी दुःखी - के -दुःखी रहे " l गुरु ने गंभीर होकर उत्तर दिया ---- " वत्स ! ईश्वर भक्ति से स्वर्ग तो मिल सकता है , पर सुख और दुःख मन की देन हैं l मन शुद्ध है तो नरक में भी सुख है और मन शुद्ध नहीं तो स्वर्ग में भी कोई सुख नहीं है l '
WISDOM -----
लघु -कथा ---- एक अँधा भीख माँगा करता था l जो पैसे मिल जाते उससे अपनी गुजर करता था l एक दिन एक धनी उधर से निकला , उसने ऊ७श्र्ख़ हाथ पर पांच रूपये का नोट रख दिया और आगे बढ़ गया l अंधे ने कागज को टटोला और समझा कि किसी ने ठिठोली की है और उस नोट को खिन्न मन से जमीन पर फेंक दिया l एक सज्जन ने नोट उठाकर अंधे को दिया और बताया कि कि ' यह तो पांच रूपये का नोट है l ' तब वह प्रसन्न हुआ और उससे अपनी आवश्यकता पूरी की l ज्ञान चक्षुओं के अभाव में हम भी परमात्मा के अपार दान को देख और समझ नहीं पाते और सदा यही कहते रहते हैं कि हमारे पास कुछ नहीं है , हमें कुछ नहीं मिला है , हम साधनहीन हैं l लेकिन यदि हमें जो नहीं मिला है , उसकी शिकायत करना छोड़कर , जो मिला है , उसकी महत्ता को समझें तो मालूम पड़ेगा कि जो कुछ मिला हुआ है , वह कम नहीं अद्भुत है l
25 July 2022
WISDOM ---
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ------ " किसी को ईश्वर सम्पदा , विभूति अथवा सामर्थ्य देता है तो निश्चित रूप से उसके साथ कोई न कोई सद्प्रयोजन जुड़ा होता है l मनुष्य को समझना चाहिए कि यह विशेष अनुदान उसे किसी समाजोपयोगी कार्य के लिए ही मिला है l " यदि मनुष्य का विवेक जाग्रत नहीं है तो उसकी इन विभूतियों का उपयोग चालाक लोग अपने स्वार्थ के लिए कर लेते हैं जैसे औरंगजेब ने राजपूत राजाओं से मित्रता कर उनकी वीरता और पराक्रम का जी भरकर लाभ उठाया l मुट्ठी भर अंग्रेजों ने भारतीयों की मदद से ही इस देश को वर्षों तक गुलाम बनाए रखा l आचार्य श्री लिखते हैं ----- " आज के समय में भी सच्चे और ईमानदार व्यक्तियों को दीन-हीन देखा जाता है तो उसके पीछे एक कारण यह भी है कि उसका लाभ बुरे लोग उठा लेते हैं l " अधिकांशत: यह देखा जाता है कि व्यक्ति अपना विशेष जीवन स्तर बनाए रखने के लिए जानते - समझते हुए भी गलत लोगों का साथ देता है l सच्चाई संगठित नहीं होती है इसलिए उनकी अच्छाइयां निरर्थक चली जाती हैं l
WISDOM -----
सौभाग्य और दुर्भाग्य के पल व्यक्ति के जीवन में आते हैं , इसी तरह एक राष्ट्र और संसार का भी अच्छा और बुरा समय होता है l संसार का दुर्भाग्य तब होता है जब धरती पर प्रतिभा संपन्न व्यक्तियों अभाव होता है l अभाव इस अर्थ में कि एक -से -बढ़कर एक प्रतिभावान और बुद्धिमान व्यक्ति धरती पर होते तो हैं लेकिन उनमे से अधिकांश अंधेरों में छिप गए होते हैं और अनेक प्रतिभावान अपनी प्रतिभा का दुरूपयोग कर रहे होते हैं l एक उदाहरण लें --- वर्तमान में नई ' पुरानी अनेक बीमारियाँ हैं , इनके इलाज के लिए निरंतर नवीन अनुसन्धान हो रहे हैं लेकिन समय की मार ऐसी है कि धन कमाना , अमीर और अमीर बनना प्राथमिकता है इसलिए बीमारी के मूल कारणों की अनदेखी होती है l आज मनुष्य बीमारी , तनाव , आत्महत्या -------- आदि अनेक समस्याओं से परेशान है , इसका मूल कारण है जिन पांच तत्वों से हमारा शरीर बना है , वे रासायनिक पदार्थ आदि के कारण प्रदूषित हो गए हैं l कला और साहित्य में दुर्बुद्धि इस तरह हावी है कि अश्लीलता का साम्राज्य है जो मानसिक प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है l फिर अस्त्र -शस्त्र , हथियारों आदि का इतना निर्माण हुआ है कि वे अपने इस्तेमाल के लिए बेचैन हैं l जहाँ युद्ध , दंगे आदि होते हैं वहां का प्रदूषण किसी से छिपा नहीं है l जीवन का हर क्षेत्र व्यवसाय बन गया है , स्वार्थ , लालच और महत्वाकांक्षा ही सब पर हावी है l यही दुर्भाग्य है जो सारे संसार के लिए खतरा है l ईश्वर ने मनुष्य को जो विभूति प्रदान की है , उसके सदुपयोग से ही दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदला जा सकता है l
24 July 2022
WISDOM -----
जार्ज बर्नार्ड शा के बारे में प्रसिद्ध है कि एक बार रूपवती महिला उनके पास विवाह प्रस्ताव लेकर आई और कहने लगी कि -----' हमें आप जैसा बुद्धिमान पुत्र चाहिए जो मेरी तरह सौन्दर्य संपन्न हो l ' बर्नार्ड शा ने विनोद करते हुए कहा ---- " कहीं उलटा हो गया तो ? अर्थात तुम्हारी बुद्धि और हमारे जैसा अति साधारण रंगरूप उसे मिला , तो क्या तुम उसको उतना ही प्यार दे सकोगी ? ' महिला बिना कुछ कहे वापस लौट गई
23 July 2022
WISDOM ------
कहते हैं यदि मन व आत्मा में शक्ति हो तो बड़ी से बड़ी मुसीबत से आसानी से निपटा जा सकता है l कोई राष्ट्र केवल अस्त्र - शस्त्र और साधनों से ही शक्तिशाली नहीं होता l किसी समय में कौन सी समस्या आ गई है , उससे निपटने के लिए प्रतिभासंपन्न , सूझ बूझ और तुरंत निर्णय लेने वाले व्यक्तित्व की जरुरत होती है -------- विश्वविजय का स्वप्न द्रष्टा हिटलर अपनी विशाल सेना के साथ आँधी -तूफान की भांति बढ़ रहा था l छोटे -छोटे देश बिना संघर्ष किए भयवश समर्पण करते जा रहे थे l हिटलर ने हालैंड पर आक्रमण का आदेश दे दिया था l उन दिनों हालैंड को गरीबी के भयंकर दौर से गुजरना पड़ रहा था l पिछड़ेपन और गरीबी का एक प्रमुख कारण यह था कि हालैंड की जमीन समुद्र की सतह से नीची है l इसलिए हालैंड वासियों को दीवारें बनाकर समुद्री लहरों से सुरक्षा करनी पड़ती थी l उनके पास न सेना थी , न शस्त्र l जर्मन सेना ने सोचा कि हालैंड को तो पलों में जीता जा सकता है l यह सोचकर जर्मन सेना ने हमला बोल दिया l इस संकट से जूझने के लिए हालैंड वासियों ने निर्णय लिया कि समर्पण कर देने और गुलामी स्वीकार कर लेने से तो बहादुरों की तरह लड़ते हुए मर जाना अच्छा है l सारे देश में घोषणा करा दी गई कि जिस भी गाँव में जर्मन सेना का हमला हो , उस गाँव की दीवार तोड़ दी जाये l इस तरह समुद्र के पानी से गाँव के डूबने के साथ -साथ जर्मन सेना भी डूब जाएगी l तीन गाँव इसी तरह डूब गए l हालैंड को तो नुकसान हुआ , पर साथ ही जर्मन सेना को भी भयंकर क्षति उठानी पड़ी l उनका मनोबल टूट गया l हिटलर ने सेना को लौट आने की आज्ञा दे दी l यह राष्ट्र के प्रति समर्पण और आत्मिक शक्ति की विजय थी l
WISDOM -----
किसी भी परिवार , समाज और राष्ट्र की तरक्की के लिए अनेक कारण उत्तरदायी होते हैं लेकिन तरक्की के साथ यदि सिर उठाकर जीना है तो उसके लिए स्वाभिमान बहुत जरुरी है l स्वाभिमान के अभाव में वह तरक्की मात्र दिखावा है जैसे कोई परिवार , समाज में अपने जीवन स्तर को ऊँचा दिखाने के लिए किसी सेठ से बहुत धन उधार लेता है l ऐसा कर के वह सब सुख -सुविधा जोड़ लेता है l समाज में भी दीखने लगता है कि वह बहुत अमीर है , उच्च जीवन स्तर है लेकिन इन सबके भीतर एक खोखलापन है l जो उधार देता है वह ब्याज तो वसूल करता ही है साथ ही अपनी हुकूमत भी चलाता है , उधार देने वाला किसी दूसरे लोक का निवासी नहीं है , वह भी मानवीय कमजोरियों से घिरा हुआ है ,वह चाहता है कि जब हमारी दम पर तुम्हारा वैभव है तो हमारी हर बात को चाहे वह सही हो या गलत , उसे स्वीकार करो l उधारी का जीवन चाहे परिवार का हो या राष्ट्र का एक तरह की गुलामी है , बिना युद्ध के ----- l कभी ऐसा भी होता है कि व्यक्ति जागरूक नहीं है , स्वयं को मिलने वाली सुविधाओं में खो जाता है , उसे सुविधा देने वाले की मानसिकता क्या है , इसे समझ नहीं पाता और अनजाने में अपना स्वाभिमान खो बैठता है l जैसे --- महाभारत का प्रसंग है --- जब युद्ध शुरू होने वाला था तब विशाल भारत के लगभग सभी राजा ( एक -दो को छोड़कर ) युद्ध में सम्मिलित हुए l कोई कौरवों के पक्ष में , कोई पांडवों के पक्ष l जब दुर्योधन को पता चला कि पांडवों के मामा शल्य आ रहे हैं तो उसने गुप्त रूप से शल्य के आने के पूरे मार्ग पर सुख - सुविधाओं का अम्बार लगा दिया l सैकड़ों सेवकों को नियुक्त कर दिया कि मार्ग में मामा शल्य को कोई कष्ट नहीं होना चाहिए l शल्य बहुत प्रसन्न थे कि युधिष्ठिर ने उनकी सुविधा का इतना ध्यान रखा लेकिन जब वे हस्तिनापुर पहुंचे तो दुर्योधन ने स्वागत किया l तब उन्हें समझ में आया कि रास्ते भर इतना स्वागत -सत्कार सब दुर्योधन ने किया l इस एहसान के कारण शल्य और उनके समर्थक सभी राजा , दुर्योधन के पक्ष में रहे l बुराइयां हर युग में रही हैं , व्यक्ति को स्वयं जागरूक होना होगा l
21 July 2022
WISDOM -------
एक राजा ने एक गुलाम ख़रीदा l उन्होंने गुलाम से पूछा --- " तेरा नाम क्या है ? " उसने उत्तर दिया --- " हुजुर ! जिस नाम से पुकारें वही मेरा नाम होगा l " राजा ने फिर पूछा --- " तू क्या खायेगा और क्या पहनेगा ? " उसने कहा ---- ' हुजुर ! जो खिला दें और जो पहनने को दें l " राजा ने पूछा ---- " तू क्या काम करेगा ? " गुलाम बोला --- " जो आप कराएँ l " तब राजा ने पूछा --- " आखिर तू चाहता क्या है ? " गुलाम ने कहा --- " हुजुर ! गुलाम की क्या कोई चाहत होती है ? " यह सुनकर राजा ने गद्दी से उतारकर उसे ह्रदय से लगा लिया और कहा ---- " मैं आज से तुमको अपना गुरु मानता हूँ , तुमने मुझे बता दिया कि परमात्मा का सेवक कैसा हो ? ईश्वर के प्रति समर्पित समर्पित भक्त की आपनी कोई निजी इच्छा नहीं होनी चाहिए l
20 July 2022
WISDOM ----
आज संसार में इतनी अशांति और अस्थिरता है , युद्ध , आतंक , षड्यंत्र ------ सब बुराइयाँ एक साथ अपने चरम पर पहुँच गई हैं l इस स्थिति के अनेक कारण होंगे लेकिन उनके मूल में जो प्रमुख कारण है , वह है --- मनुष्य की मानसिक विकृति l मानसिक विकार यदि बहुत साधारण व्यक्ति में होंगे तो उससे उसके आसपास के कुछ ही लोग आहत होंगे लेकिन उच्च स्थिति में पहुंचे हुए व्यक्ति के मानसिक विकार उतने ही विशाल क्षेत्र को आहत करेंगे जितनी उच्च स्थिति में वह है l मनुष्य के मानसिक विकारों में ' ईर्ष्या ' सबसे जटिल मनोविकृति है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " आज की परिस्थितियों पर द्रष्टिपात करें तो चारों ओर ईर्ष्या का ही साम्राज्य फैला दिखेगा l भाई -भाई से ईर्ष्या करता है , पड़ोसी -पड़ोसी से l जातियों , संगठन , दलों , सम्प्रदायों , राष्ट्रों के बीच ईर्ष्या की आग फैली हुई है l समाज में फैले संघर्षों का मूल कारण -- ' ईर्ष्या ' है l " किसी व्यक्ति , किसी राष्ट्र के पास यदि कोई ऐसा गुण है , कोई विशेष बात है जिससे उसके पास प्रतिष्ठा , सुख - वैभव है तो ईर्ष्यालु मनोवृति के कारण वह नहीं चाहेगा उसके आसपास के अन्य लोग , --- कोई अन्य राष्ट्र उसके स्तर तक पहुँच जाएँ l जो भी उस स्तर तक पहुँचने के लिए प्रयत्नशील होंगे तो उनकी विफलता के लिए षड्यंत्र , छल -कपट , धोखा ----हर तरह के ओछे प्रयत्न शुरू हो जायेंगे l ऐसे ओछे प्रयास कभी कोई अकेला नहीं करता , ऐसी मानसिकता के लोग बड़ी मजबूती से संगठित हो जाते हैं और अपनी स्थिति के अनुरूप समाज को , राष्ट्र को और संसार को उत्पीड़ित करते हैं l तुलसीदास जी ने लिखा है ---' समरथ को नहीं दोष गोंसाई l ' इसलिए संसार अपनी गति से चलता रहता है लेकिन जब अति हो जाती है तब प्रकृति क्रुद्ध हो जाती है , न्याय के लिए ईश्वर को आना ही पड़ता है l प्रकृति के प्रकोप से बचने का एक ही रास्ता है ---'जियो और जीने दो ' l यह स्मरण रखो ' हम सब एक माला के मोती हैं l '
19 July 2022
WISDOM ------
1 . ' परिस्थितियों का सामना करें '------- अलबानिया की रानी ऐलजावेथ एक दिन समुद्र यात्रा पर जा रहीं थीं l तूफ़ान आया और जहाज बुरी तरह डगमगाने लगा l मल्लाहों का धीरज टूट गया और वे डूबने की आशंका व्यक्त करने लगे l रानी ने गंभीर मुद्रा में में मल्लाहों से कहा --- " अलबानिया के राजपरिवार का कोई सदस्य अभी तक जलयान की दुर्घटना में डूबा नहीं है l मैं जब तक इस पर सवार बैठी हूँ , तब तक तुम में से किसी को भी डूबने की आशंका करने की जरुरत नहीं है l मल्लाह निश्चिन्त होकर डांड चलाते रहे l तूफान ठण्डा हुआ और जहाज शांति पूर्वक निश्चित स्थान पर पहुँच गया l यदि उन्हें घबराहट रही होती तो अस्त व्यस्त काम करते और जहाज को डुबो बैठते l 2 . विश्वासघात ------ रोम की राज्य सभा के सभापति जुलियस सीजर पर षडयंत्रकारियों ने आक्रमण किया l षडयंत्रकारी उन पर आघात कर रहे थे l सीजर निरस्त्र थे फिर भी किसी प्रकार अपना बचाव करने प्रयत्न कर रहे थे l इसी समय उनके परम विश्वासी मित्र ब्रूटस ने भी उन पर आक्रमण किया l अब असह्य हो गया l मित्र के विश्वासघात से उनका दिल टूट गया l सीजर ने ब्रूटस की ओर देखकर कहा ---- ' मित्र ! तुम भी ----------- l " सीजर ने अपने बचाव का प्रयत्न छोड़ दिया और आहत होकर मृत्यु की गोद में गिर पड़े l
WISDOM -----
लघु -कथा ----- एक बार एक ब्राह्मण ने किसी सेठ के यहाँ अपनी राशि जमा कर दी ताकि कन्या के विवाह के समय वह राशि ब्याज समेत मिल जाये l आवश्यकता पड़ने पर वह ब्राह्मण अपने रूपये वापस लेने पहुंचा , पर सेठ की नियत में खोट आ गया l उसने रूपये देना तो दूर उस ब्राह्मण को पहचानने से भी इनकार कर दिया l ब्राह्मण बहुत दुःखी हुआ और न्याय के लिए राजा के पास गया l रूपये के लेन - देन संबंधी कोई कागज नहीं , कोई प्रमाण नहीं तो राजा क्या कैसे क्या करे ? पर राजा को एक युक्ति सूझी और उसने दूसरे दिन नगर में अपनी शोभा यात्रा निकालने की घोषणा कर दी और ब्राह्मण से कह दिया कि उस सेठ के मकान के पास खड़े हो जाना l राजा की शोभा -यात्रा निकली , सभी लोग अभिवादन कर रहे थे l जब सेठ के घर के पास से सवारी निकली तो राजा ने ब्राह्मण को देखकर अपनी सवारी रुकवाई और ब्राह्मण को गुरुदेव कहकर सम्मान के साथ अपने पास बैठा लिया l और आगे जा कर उतार दिया l जब सेठ ने यह द्रश्य देखा तो वह कांपने लगा कि यह ब्राह्मण तो राजा से परिचित है , कहीं शिकायत कर दी तो जाने क्या दंड मिले l सेठ ने अपने सेवक दौड़ाये कि उस ब्राह्मण को ले आओ l ब्राह्मण के आने पर सेठ ने उसका बहुत सम्मान किया और कहा कि बहीखाता देखने में भूल हो गई l सेठ ने ब्राह्मण की पूरी धन राशि ब्याज समेत लौटा दी , कन्या के विवाह के लिए विशेष दान दिया और भोजन , पानी , दक्षिणा भी दी l यह सब देखकर ब्राह्मण की बुद्धि खुल गई , वह सोचने लगा कि जब थोड़ी देर राजा के पास बैठने से इतना फायदा हुआ तो यदि राजाओं के राजा ईश्वर के पास बैठा जाये , सच्चे ह्रदय से उनकी उपासना की जाये तो कितना प्रतिफल मिलेगा , जीवन सार्थक हो जायेगा l अब उसका जीवन बदल गया , वह अब धन कमाने के लिए कोरे कर्मकांड नहीं करता , सच्चे अर्थों में ब्राह्मण बन गया l
18 July 2022
WISDOM --------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' स्रष्टि के आदिकाल से लेकर अब तक धर्म को अनेक बार संकटों का सामना तो अवश्य करना पड़ा है लेकिन पराजय हमेशा अधर्म की हुई है और आगे भी ऐसा ही कुछ होगा l " ' श्रीराम की भक्ति साधना ' में आचार्य श्री लिखते हैं ---- " रावण के के साथ असुर , दानव , दैत्य , राक्षस सभी संगठित थे l रावण के पास शस्त्रबल , शास्त्र बल , बुद्धिबल , तपोबल था l यहाँ तक कि देवी निकुम्भिला के साथ महादेव और ब्रह्मदेव के वरदान भी उसकी रक्षा कर रहे थे l उसका राजनीतिक कौशल अकाट्य व अचूक था l उसने सम्पूर्ण भारत भूमि में अपनी चौकियाँ और छावनियाँ स्थापित कर दी थीं l इतना सब होते हुए उसके पास एक बल की कमी थी और वह था ----- 'धर्म बल ' l इस बल के बिना वह बलहीन था l वह अधर्मी था l विद्वान् , प्रज्ञावान , प्रखर प्रतिभावान होने की सामर्थ्य का वह दुरूपयोग कर रहा था l रावण की महत्वाकांक्षा केवल राजनीतिक नहीं थी , वह बड़ी योजनाबद्ध रीति से संस्कृति को विकृत करने में लगा था l आर्य संस्कृति को राक्षस संस्कृति में रूपांतरित करने की बड़ी कलुषित और कुत्सित कोशिश थी उसकी l वानर राज बालि अति बलवान था , लेकिन रावण ने बड़ी कुशलता और चतुरता से बालि और सुग्रीव दोनों भाइयों में द्वेष की दरार पैदा कर बालि को अपने वश में कर लिया l और दुन्दुभी राक्षस को बड़े यत्नपूर्वक किष्किन्धा के पास स्थापित कर दिया ताकि किष्किन्धा की गोपनीय सूचनाएं उस तक पहुँचती रहे l छल पूर्वक साधू का वेश धरकर उसने माता सीता का अपहरण किया l दसों दिशाओं में उसका आतंक था l इसीलिए भगवान श्रीराम ने धर्म की शक्तियों को संगठित कर रावण का , उसके अहंकार का अंत किया l '
17 July 2022
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' पिछले दो हजार वर्ष ऐसे बीते हैं जिनमे अनीति ने , अनाचार ने अपनी सभी मर्यादाओं का उल्लंघन किया है l समर्थों ने असमर्थों को त्रास देने में कोई कसर नहीं छोड़ी l संसार में अनाचार , अत्याचार का अस्तित्व तो है , पर उसके साथ ही यह विधान भी है कि सताए जाने वाले बिना हार -जीत का विचार किए प्रतिकार के लिए तो तैयार रहें l दया , क्षमा अदि के नाम पर अनीति को बढ़ावा देना सदा से अवांछनीय माना जाता है l ' आचार्य श्री लिखते हैं ---- " जब अनाचारी अपनी दुष्टता से बाज नहीं आते हैं और पीड़ित व्यक्ति कायरता , भीरुता अपनाकर टकराने की नीति नहीं अपनाते तो अपनी व्यवस्था को लड़खड़ाते देख ईश्वर को भी क्रोध आता है l फिर जो मनुष्य नहीं कर पाता , उसे ईश्वर स्वयं करने के लिए तैयार होता है l " आचार्य श्री अपनी पुस्तक ' महाकाल और युग प्रत्यावर्तन -प्रक्रिया ' में लिखते हैं ----- " ' दक्ष ' को देवाधिदेव महादेव ने उसकी कुमार्गगामिता का दंड , उसका मानवीय सिर काटकर , बकरे का सिर लगाकर दिया था l दक्ष की चतुरता का वास्तविक रूप यही था l आज भी ' दक्षों ' ने --चतुरों ने यही कर रखा है l ----------- आज का मानवीय चातुर्य , जो सुविधा - साधनों के अहंकार में अपनी वास्तविक राह छोड़ बैठा है , वैसी ही दुर्गति का अधिकारी बनेगा , जैसा दक्ष का सारा परिवार बना था l " आचार्य श्री लिखते हैं --जब भी ऐसा समय आता है ईश्वर संसार की बागडोर अपने हाथ में ले लेते हैं और न्याय करते हैं l " मनुष्य ही अपनी गलतियों से ईश्वर को सुदर्शन चक्र चलाने और तृतीय नेत्र खोलने के लिए मजबूर कर देता है l घोर कलियुग में मनुष्य अपने एक चेहरे पर कई चेहरे लगा कर रखता है , उसका ' सत्य ' केवल ईश्वर ही जानते हैं , इसलिए ईश्वर ही न्याय करते हैं l
WISDOM ------
महानता का प्रथम लक्षण है --- विनम्रता ----- 1. पांडवों ने राजसूय यज्ञ किया l उसमें सर्वोत्तम पद चुन लेने के लिए कृष्ण को कहा गया l उन्होंने आगंतुकों के पैर धोकर सत्कार करने का काम अपने जिम्मे लिया l यह उनकी निरहंकारिता और विनम्रता की पराकाष्ठा ही थी l 2. डॉ . महेन्द्रनाथ सरकार कलकत्ता के प्रख्यात और संपन्न चिकित्सक थे l वे श्री रामकृष्ण परमहंस से मिलने गए l परमहंस जी बगीचे में टहल रहे थे l डॉ . महेन्द्रनाथ ने उन्हें माली समझकर कहा ---- " ऐ माली ! थोड़े से फूल तो लाकर दे l परमहंस जी को भेंट करने हैं l उन्होंने अच्छे -अच्छे फूल तोड़कर उन्हें दे दिए l थोड़ी देर में परमहंस जी सत्संग स्थान पर पहुंचे l डॉ . सरकार उनकी विनम्रता पर चकित रह गए l जिसको माली समझा गया था , वे ही परमहंस जी निकले l 3 . बीसवीं सदी के महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन बेल्जियम की महारानी के निमंत्रण पर ब्रूसेल्स पहुंचे l महारानी ने अनेक बड़े अधिकारियों को उन्हें लेने के लिए स्टेशन भेजा , किन्तु सामान्य वेश -भूषा और सीधे से आइन्स्टीन को वे पहचान ही नहीं पाए और निराश लौट आए l आइन्स्टीन अपना बैग उठाये राजमहल पहुंचे और महारानी को अपने आने की सूचना भिजवाई l जब रानी ने अपने अधिकारियों की अज्ञानता के कारण हुई असुविधा के लिए खेद प्रकट किया तो वे हँसते हुए बोले --- " आप जरा सी बात के लिए दुःख न करें , मुझे पैदल चलना बहुत अच्छा लगता है l " जिस राजसी सम्मान को पाने के लिए लोग जीवन भर एड़ी -चोटी का पसीना एक करते रहते हैं , वह सम्मान महामानवों को सादगी की तुलना में इतना छोटा लगता है कि उसकी चर्चा भी चलना निरर्थक समझते हैं l
15 July 2022
WISDOM ------
' मनुष्य प्रकृति में सबसे समझदार और बुद्धिमान प्राणी है ' लेकिन जब उस पर अहंकार हावी हो जाता है , बुद्धि दुर्बुद्धि में बदल जाती है तब इस उक्ति पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है -------- एक देश का बंटवारा हुआ l विभाजन रेखा पागलखाने के बीच में से गुजरी l दोनों देशों के अधिकारियों में से कोई भी पागलों को अपने देश में लेने को तैयार न था l अधिकारियों ने सोचा क्यों न इन्ही लोगों से पूछ लिया जाये कि वे किस देश में रहना चाहते हैं l अधिकारियों ने उनसे कहा कि देश का बंटवारा हो गया है , आप उस देश में जाना चाहते हैं या इस देश में l पागलों ने पलट कर पूछा ---" हम गरीबों का पागलखाना क्यों बांटा जा रहा है ? हम तो सब मिलकर प्रेम से रहते हैं l हम में कोई मतभेद नहीं , इसमें आपको क्या आपत्ति है ? ' अधिकारियों ने कहा ---- ' आपको जाना कहीं नहीं है l रहना यहीं है l ' पागल बोले ---- यह क्या पागलपन है जब जाना कहीं नहीं है तो इस देश और उस देश से क्या मतलब ? ' अधिकारियों ने सोचा कि व्यर्थ की माथा पच्ची से कोई लाभ नहीं और उन्होंने विभाजन रेखा पर पागलखाने के बीचोंबीच दीवार खड़ी कर दी l कभी -कभी पागल उस दीवार पर चढ़ जाते , और एक -दूसरे से कहते --- ' देखा ! समझदारों ने देश का विभाजन कर दिया l न तुम कहीं गए न हम l व्यर्थ में हमारा -तुम्हारा मिलना -जुलना , हँसना -बोलना बंद कर के इन्हें क्या मिल गया ? ' ----- जब -जब मनुष्य पर बेअकली सवार होती है तो वह जाति , सम्प्रदाय , रंग , रूप , भाषा और देश के आधार पर विभाजित होता चला जाता है और स्वयं ही अपनी शांति और खुशहाली नष्ट करता रहता है l
WISDOM ------
ऋषियों का कहना है कि संस्कारों में परिवर्तन बहुत कठिन कार्य है l शिक्षा से , धन - वैभव आ जाने से , पद -प्रतिष्ठा मिल जाने से संस्कार परिवर्तित नहीं होते l संस्कारों में परिवर्तन के लिए समर्थ गुरु के संरक्षण में तप - साधना की जरुरत होती है l इसे सरल शब्दों में कहें तो यदि कोई वर्तमान में अपराधी है , हत्या , दुष्कर्म , डकैती , किसी का हक छीनना , छल , कपट , षड्यंत्र , अपने ही परिवार के साथ धोखा , व्यभिचार जैसे अपराधों में संलग्न है , तो यदि ईमानदारी और निष्पक्ष भाव से सर्वेक्षण किया जाए तो ये अपराध उसकी पिछली तीन -चार पीढ़ियों में किसी न किसी सदस्य ने अवश्य किए होंगे l समय के साथ उन अपराधों को करने का तरीका बदल जाता है l जब व्यक्ति स्वयं सन्मार्ग पर चलने का संकल्प ले , निष्काम कर्म ,सेवा करे फिर गुरु कृपा से सुधार संभव है अन्यथा यही पैटर्न पीढ़ी -दर -पीढ़ी चलता रहता है l इसी तथ्य को स्पष्ट करने वाली एक कथा है ------ एक सुन्दर वधू ने पति को पूरी तरह वशवर्ती कर लिया l घर में बहुत बूढ़ा बाप था l दिन भर खांसता था और असमर्थ होने के कारण तरह -तरह की मांगे करता था l वधू ने अपने पति से हठ किया कि या तो इस बूढ़े को हटाओ , नहीं तो मैं मायके चली जाऊँगी और फिर नहीं आऊँगी l पति को आखिर झुकना पड़ा l वह ऊँटों पर माल ढोने का काम करता था l सो एक दिन पिता को नदी पर पर्व -स्नान के लिए अपने साथ ले गया और रास्ते में मारकर झाड़ी के नीचे गाड़ दिया l दिन गुजरने लगे , उसका पुत्र जन्मा , बड़ा हुआ l उसकी सुन्दर वधू आई , बाप बूढ़ा हुआ l उसे भी वही खांसी , कमजोरी l वधू को सहन नहीं होता था , वही मारने का प्रस्ताव l लड़के ने बाप को ऊंट पर बैठाकर नदी में पर्व स्नान के लिए चलने को राजी कर लिया और रास्ते में मारकर उसी झाड़ी में गाड़ दिया l अब यह तीसरी पीढ़ी थी , यह लड़का भी नदी में स्नान कराने के बहाने पिता को ऊंट पर बैठाकर ले चला l संयोगवश उसे भी मारने और गाड़ने के लिए वही झाड़ी उपयुक्त पाई गई l बेटा छुरा निकालने वाला था कि पिता ने कहा -- यहाँ ये दो गड्ढ़े खोद कर देखो l दोनों में अस्थि -पंजर पाए गए एक उसके बाप का और बाबा का l उनका दुःखद अंत भी इसी तरह हुआ था l बूढ़े बाप ने अपने बेटे से कहा ---- ' मुझे मारने पर तो इस परंपरा के अनुसार तेरी भी दुर्गति ऐसे ही होगी , इसलिए तू मुझे मार मत l वधू से झूठ बोल देना , मैं कहीं दूर चला जाता हूँ , फिर कभी लौटकर नहीं आऊंगा l इस पाप के प्रचलन को तोड़ना बहुत जरुरी है l बेटे की आँख खुली , उसे समझ आया l बहुत अनुनय -विनय कर पिता को पुन: घर ले आया l पत्नी को सब बताया , समझाया l सबने भगवान से प्रार्थना की -- भगवान ! ऐसे पापी विचारों से हमारी रक्षा करो , पाप के गड्ढ़े में गिरने से बचाओ ! ' सच्ची प्रार्थनाएं सुनी जाती हैं l बुरी शक्तियों का जो तूफ़ान आया था , वह शांत हो गया l बूढ़ा भी बच गया और पाप व अपराध की जो परंपरा चल पड़ी थी वह भी टूट गई l
14 July 2022
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं---- ' बुरे दिनों की चपेट में आने से पहले आदमी अहंकारी हो चुका होता है l उद्धत मनुष्यों की दुर्मति ही उनकी दुर्गति कराती है l ' पुराण की एक कथा है ------- राजा नहुष को पुण्य कर्मों के बदले इन्द्रासन प्राप्त हुआ l ऐश्वर्य और सत्ता का मद जिन्हें न आवे , ऐसे कोई विरले ही होते हैं l नहुष पर भी सत्ता का नशा चढ़ गया , उनकी द्रष्टि रूपवती इन्द्राणी पर जा पड़ी और वो उन्हें अपने अंत:पुर में लाने का विचार करने लगे l ऐसा प्रस्ताव उन्होंने इन्द्राणी के पास भेजा l नहुष की मंशा जानकर उन्हें बहुत दुःख हुआ l राजाज्ञा के विरुद्ध खड़े होने का साहस उन्होंने अपने में नहीं पाया , इसलिए उन्होंने चतुरता से काम लिया l इन्द्राणी ने नहुष के पास संदेश भिजवाया कि यदि वे सप्त ऋषियों को पालकी में जुतवा कर , उस पालकी में बैठकर उनके पास आएं तो ही वे उनका प्रस्ताव स्वीकार करेंगी l सत्ता और वैभव के मद में नहुष की बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी थी l आतुर नहुष ने ऋषि पकड़ बुलाए , उन्हें पालकी में जोता और उसमे चढ़कर बैठ गया l उसे इन्द्राणी के पास पहुँचने की बहुत जल्दी थी इसलिए वह ऋषियों पर जल्दी चलने का दबाव बनाने लगा l ऋषि बेचारे दुबले -पतले ! इतनी दूर तक इतना भार ढो कर तेज चलने में समर्थ न हो सके l नहुष उन पर लगातार क्रोध कर रहा था -- 'जल्दी चलो , जल्दी चलो ' l अपमान और उत्पीड़न से क्षुब्ध होकर एक ऋषि ने शाप दे दिया --- " दुष्ट ! तू स्वर्ग से पतित हो कर पुन: धरती पर जा गिर l " शाप सार्थक हुआ , नहुष स्वर्ग से पतित होकर धरती पर दीन -हीन की तरह विचरण करने लगे l इन्द्राणी की युक्ति सफल हुई , सज्जनों को सताकर कोई भी नष्ट हो सकता है l
WISDOM -----
आचार्य श्री लिखते हैं ----- ' जीवन बड़ी अमूल्य वास्तु है l इसका एक क्षण भी करोड़ों स्वर्ण मुद्राएँ देने पर भी नहीं मिल सकता l ऐसा जीवन निरर्थक नष्ट हो जाए , तो इससे बड़ी हानि क्या हो सकती है ? '------ मगध में भयंकर अकाल पड़ा l भीषण गर्मी से धरती जलने लगी और क्षुधा के कारण प्रजा त्राहि -त्राहि करने लगी l सम्राट चन्द्रगुप्त ने अपने राजकोष को प्रजा की सहायता के लिए खोल दिया और साथ ही सबको स्थान -स्थान पर यज्ञ करने का निर्देश दिया , ताकि वरुण देव उससे पुष्ट होकर वृष्टि करने में सक्षम हों l पाटलिपुत्र में भी यज्ञ का आयोजन किया गया , जिसमें सात दिन तक निराहार व्रत का पालन करते हुए सम्राट ने मुख्य यजमान की भूमिका निभाई l इसके बाद सम्राट और साम्राज्ञी ने बंजर भूमि पर हल चलाना आरम्भ किया l हल के जमीन पर लगते ही वहां एक आकृति प्रकट हुई और सम्राट को संबोधित करते हुए बोली ---- " लोग श्रम की उपेक्षा कर रहे हैं , इसीलिए यह दुर्भिक्ष उपस्थित हुआ है l यदि प्रजा पुन: श्रम करना आरम्भ कर दे , तो खुशहाली के दिन पुन: वापस आ जायेंगे l " यह द्रश्य देखकर प्रजा को श्रम का महत्त्व ज्ञात हुआ और सभी श्रम करने में जुट गए l थोड़े परिश्रम से नाहर खोद ली गई और बंजर भूमि पर पानी की धारा बह निकली l श्रम के देवता ने सबको पुन: समृद्ध कर दिया l
13 July 2022
WISDOM -------
पुराण की एक कथा है ----- एक बार विधाता ने जय -विजय को आदेश दिया कि धरती पर स्वर्ग का सच्चा अधिकारी कौन है , ढूंढकर बताओ l जय - विजय सम्पूर्ण धरती पर घूमते रहे , उन्होंने देखा लोग जहाँ -तहां धर्म -कर्म में लगे हैं l उन्होंने लोगों से पूछा --- " आप यह क्यों कर रहे हैं ? " उत्तर मिला --- " यह संसार नश्वर है l हम यह भक्ति इसलिए कर रहे हैं कि नित्य कुछ - न -कुछ पापकर्म तो होते ही रहते हैं , भक्ति , पूजा से उनकी शुद्धि कर लेते हैं l " उनके आचरण और वाणी में कोई सामंजस्य न देखकर वे आगे बढ़े l रात्रि हो गई थी , उन्होंने देखा एक अँधा दीपक जलाए बैठा था l आने वालों की पदचाप सुनकर वह उन्हें राह बताता था l कीचड़ में सने व्यक्तियों के हाथ -पैर धुलाकर उन्हें अपने पास विश्राम के लिए बैठाता था और भूखे -प्यासे को यथा संभव खिलाता-पिलाता था l दिन होने पर थोड़ी देर विश्राम कर वह बगीचे में काम करने लगा , ताकि कुछ सब्जी बेचकर गुजारे लायक राशि जुटा सके l जय - विजय यह द्रश्य देखकर उससे पूछ बैठे --- " आप ईश्वर उपासना नहीं करते l सुबह का समय तो इसलिए होता है l " अँधा बोला --- " मुझे तो रात्रि में लोगों को राह बताना , उनकी सेवा करना और दिन में श्रम करना ही उपासना का स्वरुप समझ में आया l इससे अधिक मैं नहीं जानता l ' अपना निरीक्षण पूरा कर जय -विजय लौटे l विधाता ने उनके लिखे विवरण को ध्यानपूर्वक पढ़ा और बोले --- " तुम्हारा विवरण देखकर मुझे लगता है कि वर्तमान में शेष सभी तो आडम्बर और दिखावे में लगे हैं l मात्र यह अँधा ही स्वर्ग का सच्चा अधिकारी है l " जय -विजय की उलझन देखकर वे बोले --- " तात ! उपासना मात्र जप -तप नहीं है वरन जनमानस को सही दिशा देना भी उपासना का एक स्वरुप है l निर्मल अंत:करण में ही ईश्वर निवास करते हैं l "
12 July 2022
WISDOM -----
' सच्चा सौन्दर्य आत्मा का होता है l '--------- आलिवर क्रामवेल की वीरता से मुग्ध एक चित्रकार एक दिन उनके पास जाकर बोला ---- " मैं आपका चित्र बनाना चाहता हूँ l " क्रामवेल ने कहा -----' जरुर बनाओ , यदि अच्छा चित्र बना तो तुम्हे पर्याप्त पारितोषिक मिलेगा l " क्रामवेल की तरह वीर योद्धा उन दिनों सारी पृथ्वी पर नहीं था l लेकिन दुर्भाग्य से वह बदसूरत था , उसके चेहरे पर एक बड़ा मस्सा था जिसके कारण वह कुरूप लगता था l चित्रकार ने चित्र में वह मस्सा नहीं बनाया , बहुत सुन्दर चित्र बना l जब क्रामवेल को दिखाया तो उसने कहा --- ' मित्र ! चित्र तो बढ़िया है लेकिन मेरी मुखाकृति नहीं है तो चित्र मेरे किस काम का l ' चित्रकार ने हिम्मत कर के उस चित्र में मस्सा भी बना काढ़ दिया l अब ऐसा लगने लगा , जैसे क्रामवेल स्वयं चित्र में उतर आया है l " अब बन गया अच्छा चित्र l " कहते हुए क्रामवेल ने उसे ले लिया और चित्रकार को इनाम देकर कहा ---- " मित्र ! मुझे अपनी बुराइयाँ देखने का अभ्यास है l यदि ऐसा न रहा होता तो वह शौर्य अर्जित न कर सका होता , जिसके बल पर मैंने यश कमाया l "
11 July 2022
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने इतना विशाल साहित्य लिखा है जिसको पढने समझने के लिए पूरा जीवन भी लगा दें तो कम है l यदि किसी को कुछ समझ में आता भी है तो वह उनकी कृपा से ही संभव है l आचार्य श्री ने विचारों के परिष्कार को अनिवार्य माना , जब विचार श्रेष्ठ होंगे , तभी आचरण अच्छा होगा l ईश्वर के बार - बार चेताने के बावजूद भी यदि मनुष्य नहीं सुधरता है तो शिव को अपना तृतीय नेत्र खोलना ही पड़ता है l आचार्य श्री लिखते हैं ------------ " भगवान शिव का किसी से द्वेष नहीं है l वे तो परम कारुणिक और मंगलमय हैं l इसी से उन्हें शिवशंकर कहते हैं l भोला भी उनका नाम है l भोला का अर्थ है ---- सरल , सौम्य और सज्जन l विवशता ही उन्हें बाध्य करती है कि जब मनुष्य अत्यधिक दुराग्रही , अहंकारी और ढीठ हो जाता है , सज्जनता की रीति -नीति को बेतरह तोड़ता है , दुष्टता पर उतारू हो जाता है , तभी उन्हें कुछ ऐसा करना पड़ता है , जो कष्टकर और भयंकर दीखे l आज का मानव समाज विषव्रण से ग्रस्त रोगी की तरह है l उसके कल्याण का मार्ग यही दीखता है कि फोड़ा चीर दिया जाये , ताकि सड़ा मवाद जो हर समय वेदना उत्पन्न करता है , निकलकर दूर हो जाये l अवतारों का यही प्रयोजन सदा से रहा है l "
WISDOM -------
अनमोल मोती ----- ' एक भेड़िये के गले में हडडी अटक गई l वह सियार के पास पहुंचा और बोला ---- --- " आपकी लम्बी थूथनी है l कृपा कर के मेरे गले में उसे डालकर हडडी निकाल दीजिए l वक्त आने पर मैं तुम्हारे काम आऊंगा l " सियार ने वह हडडी निकाल दी l एक दिन सियार को भेड़िये की सहायता की आवश्यकता पड़ी l उसने पिछला अहसान याद दिलाया l भेड़िये ने कहा --- " मेरा यह अहसान क्या कम है , जो मुँह के अन्दर पहुंची हुई तुम्हारी गर्दन बख्श दी l " इस कथा से हमें यही शिक्षा मिलती है कि दुष्ट व्यक्ति के साथ कभी कोई सरोकार न रखे l यदि जाने - अनजाने उनसे कभी कोई सरोकार हो भी जाता है तो उनसे प्रत्युपकार की आशा कभी न करे l
10 July 2022
WISDOM ----
अनमोल मोती ----- 1. किसी ने एक संत से पूछा ---- " महाराज ! अब संत और धूर्त सब एक ही तरह के कपड़ों में विचरण करने लगे हैं l हम लोगों के सामने बड़ी कठिन समस्या खड़ी हो जाती है l कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे धूर्तों से बचकर हम संतों की सेवा कर सकें l " संत ने कहा ---- " इसमें कौन सी बड़ी बात है ! धूर्त सेवा कराने के फेर में रहते हैं और संत सेवा करने के फेर में l संत सेवा जैसा व्यवहार करता है और धूर्त का व्यवहार अपनी कार्यसिद्धि के लिए चापलूसी और चतुराई से भरा रहता है l धूर्त मांगता है और संत देता है l "
2. एक बार वाराणसी में गंगा घाट पर एक वृद्ध नहाने उतरे , उनका पाँव फिसल गया और डूबने लगे l एक युवक तुरंत कूदा और वृद्ध को बचा लाया l वृद्ध की प्रार्थना पर भी युवक ने कोई पुरस्कार लेना स्वीकार नहीं किया l इस पर वृद्ध ने कहा --- 'आवश्यकता पड़ने पर कलकत्ता आना , मैं अवश्य तुम्हारी सहायता करूँगा और उन्होंने अपना पता युवक को दे दिया l कुछ महीने बाद युवक वृद्ध से मिला और कुछ कविताएँ सामने रखता हुआ बोला ---- इन्हें आप अपनी पत्रिका में छाप दें l कविताओं का स्तर देखकर और युवक की अनुचित मांग को देखते हुए वे बहुत दुःखी हुए और बोले ---- ' एक बात कहूँ ? मैं इन्हें छाप नहीं सकता l तुम चाहो तो उस उपकार के बदले में मुझे फिर गंगा में धकेल दो l " यह थी उनकी आदर्शवादिता और सिद्धांत निष्ठा l ऐसे ही व्यक्तियों के कारण हमारी संस्कृति सुरक्षित थी l ऐसे व्यक्ति जीवन व्यापर में भले ही असफल हो जाएँ , लेकिन उनका अंत:करण उन्हें सदा आशीष देता है तथा उन्हें जन - सम्मान भी मिलता है l
9 July 2022
WISDOM ------
अनमोल मोती ----- समुद्र में भारी तूफान आया l नाव डगमगाने लगी l मल्लाहों में से एक लड़का मस्तूल पर चढ़ा और पाल को मजबूती से बांधकर रस्सी के सहारे नीचे उतरने लगा l लड़के की निगाह गरजते और उफनते समुद्र पर गई तो वह डर के मारे घबरा गया l कांपते हुए स्वर में चिल्लाया ---- " कोई बचाओ , नहीं तो मैं गिरकर मर ही जाऊँगा l " बूढ़े मल्लाह ने कड़ककर कहा ---- " बेवकूफ छोकरे नीचे को मत देख , आँखें आसमान पर रख और धीरज के साथ रस्सी के सहारे नीचे चला आ l " लड़के ने हिम्मत बाँधी और आसमान को देखता हुआ नीचे उतर आया l बूढ़े ने कहा ---- " जिंदगी में रोज ही आँधी -तूफान आते हैं l उनसे जो डरा , सो मरा l आशा की किरणों से भरे आकाश पर जिस की निगाह रहेगी , वही तो अपने पैरों पर खड़ा रह सकेगा l "
WISDOM -----
अनमोल मोती ----- 1. ' शिष्य ने पूछा --- काँसा आवाज करता है , सोना क्यों नहीं ? गुरु ने उत्तर दिया ----- " आडंबर की आवश्यकता जो निस्सार हैं , उन्ही को पड़ती हैं l जिनके पास स्व -अर्जित ज्ञान होता है , उन्हें व्यर्थ हल्ला करने की आवश्यकता नहीं होती l "
2. ' एक द्रष्टिहीन व्यक्ति हाथ में लालटेन लिए अँधेरी रात में रास्ते के निकट एक बड़े गड्ढे के पास खड़ा था और रास्ते से गुजरते लोगों से चिल्ला -चिल्लाकर कह रहा था ---- " भाइयों ! उधर बड़ा गड्ढा है l उधर से मत जाना l " राह गुजरते एक व्यक्ति ने उससे कहा ---- " क्यों भाई ! तुम्हे स्वयं तो दिखाई नहीं पड़ता , फिर ये लालटेन हाथ में लिए क्यों खड़े हो ? " अँधा व्यक्ति बोला ---- " बंधु ! मेरी बाहर की आँखें नहीं हैं तो क्या हुआ , ह्रदय तो खुला हुआ है l बहुत से ऐसे हैं , जो आँख होते हुए भी इस गड्ढ़े में जा गिरेंगे l l ये लालटेन उन्ही को मार्ग दिखाने के लिए है l "
7 July 2022
WISDOM -----
परिवार , समाज हो या राष्ट्र --- उसकी अधिकांश समस्याएं आपसी फूट , एक दूसरे को न समझ पाने की वजह से उत्पन्न होती है l इस संसार में भांति -भांति के लोग हैं , सबके अपने विचार , अपना जीने का तरीका है l यदि हम सबसे छोटी इकाई परिवार को लें ---- तो कभी परिवार के सदस्यों की अपनी कमियों और नासमझी के कारण परिवार में फूट होती है , लड़ाई - झगड़े होते हैं l लेकिन कलियुग में ऐसे लोगों की भरमार है जो ईर्ष्या -द्वेष के कारण किसी परिवार , समाज या राष्ट्र को आगे बढ़ता हुआ नहीं देख सकते , उनका जन्म ही इसलिए है कि फूट डालकर अपना स्वार्थ सिद्ध करें l जब मनुष्य में सद्बुद्धि होगी , उसका विवेक जाग्रत होगा तभी वह ऐसे नकारात्मक तत्वों से स्वयं को प्रभावित नहीं होने देगा और आंख -कान खुले रखकर , जागरूक होकर अपने जीवन का सफ़र तय करेगा l ------- एक कथा है ------ एक जंगल में हिरन , कौआ , कछुआ और चूहा रहते थे l विपरीत बुद्धि के कारण परस्पर झगड़ते रहते थे l शिकारी अक्सर उन्हें मारते रहते थे , सो उनका वंश नष्ट हो चला था l एक दिन एक संत ने उन्हें हिल -मिलकर रहने का उपदेश दिया l वे चारों मिल -जुलकर रहने को सहमत हो गए l एक दिन एक शिकारी आया l दिनभर कोई शिकार न मिलने पर उसने रेंगते हुए कछुए को पकड़ा और जाल में रखकर चलने लगा l शेष तीनों मित्र अलग -अलग तो कमजोर थे लेकिन अब उन्होंने मिल -जुलकर सूझ -बूझ से काम लिया l हिरन शिकारी के सामने से लंगड़ाते हुए चलने लगा l कौआ उसकी पीठ पर बैठ गया l शिकारी ने सोचा इस स्थिति का लाभ उठाकर हिरन को पकड़ना आसान है इसलिए उसने जाल नीचे रख दिया और हिरन के पीछे दौड़ने लगा l इतने में चूहे ने जाल काट दिया और कछुआ भागकर एक झाड़ी में छुप गया l बहुत देर पीछा करने के बाद जब हिरन ने कुलाँचे भरीं तो निराश शिकारी वापस लौटा तो जल कटा देखा और कछुए को गायब पाया l शिकारी को उस क्षेत्र में किसी भूत -प्रेत की उपस्थिति एवं करतूत प्रतीत हुई , सो वह रात्रि में उधर रुके बिना ही भयभीत होकर तत्काल घर लौट पड़ा l मित्रता और सूझबूझ के सहारे मनुष्य कठिनाइयाँ आसानी से पार कर लेता है लेकिन जब आपस में ही लड़ते हैं तब छोटी मुसीबत में भी भारी हानि उठाते हैं l