पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने इतना विशाल साहित्य लिखा है जिसको पढने समझने के लिए पूरा जीवन भी लगा दें तो कम है l यदि किसी को कुछ समझ में आता भी है तो वह उनकी कृपा से ही संभव है l आचार्य श्री ने विचारों के परिष्कार को अनिवार्य माना , जब विचार श्रेष्ठ होंगे , तभी आचरण अच्छा होगा l ईश्वर के बार - बार चेताने के बावजूद भी यदि मनुष्य नहीं सुधरता है तो शिव को अपना तृतीय नेत्र खोलना ही पड़ता है l आचार्य श्री लिखते हैं ------------ " भगवान शिव का किसी से द्वेष नहीं है l वे तो परम कारुणिक और मंगलमय हैं l इसी से उन्हें शिवशंकर कहते हैं l भोला भी उनका नाम है l भोला का अर्थ है ---- सरल , सौम्य और सज्जन l विवशता ही उन्हें बाध्य करती है कि जब मनुष्य अत्यधिक दुराग्रही , अहंकारी और ढीठ हो जाता है , सज्जनता की रीति -नीति को बेतरह तोड़ता है , दुष्टता पर उतारू हो जाता है , तभी उन्हें कुछ ऐसा करना पड़ता है , जो कष्टकर और भयंकर दीखे l आज का मानव समाज विषव्रण से ग्रस्त रोगी की तरह है l उसके कल्याण का मार्ग यही दीखता है कि फोड़ा चीर दिया जाये , ताकि सड़ा मवाद जो हर समय वेदना उत्पन्न करता है , निकलकर दूर हो जाये l अवतारों का यही प्रयोजन सदा से रहा है l "
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