पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " अहंकार के वशीभूत होकर जिसने भी स्वयं को भगवान मानने का प्रयास किया है , उसका हश्र क्या हुआ है , यह सब जानते हैं l कोई भी शक्तिमान , सामर्थ्यवान तो हो सकता है , पर भगवान नहीं बन सकता l " आचार्य श्री लिखते हैं ---- " जो व्यक्ति अहंकारी होता है वह अधिक क्रोध करता है और भय भी उसके अंदर किसी न किसी रूप में मौजूद होता है l लेकिन वह ऐसे प्रदर्शित करता है , जैसे उसे कोई भय नहीं है l ऐसा व्यक्ति स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ साबित करना चाहता है और स्वयं को बड़ा समझदार मानता है l जबकि उसका व्यवहार ऐसा होता है , जो उसकी नासमझी को दरशाता है l " श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान ने कहा भी है ---क्रोध से बुद्धि का नाश होता है l क्रोध एक ऐसा विकार है जो कई तरह की बीमारियों को जन्म देता है l
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