किसी भी परिवार , समाज और राष्ट्र की तरक्की के लिए अनेक कारण उत्तरदायी होते हैं लेकिन तरक्की के साथ यदि सिर उठाकर जीना है तो उसके लिए स्वाभिमान बहुत जरुरी है l स्वाभिमान के अभाव में वह तरक्की मात्र दिखावा है जैसे कोई परिवार , समाज में अपने जीवन स्तर को ऊँचा दिखाने के लिए किसी सेठ से बहुत धन उधार लेता है l ऐसा कर के वह सब सुख -सुविधा जोड़ लेता है l समाज में भी दीखने लगता है कि वह बहुत अमीर है , उच्च जीवन स्तर है लेकिन इन सबके भीतर एक खोखलापन है l जो उधार देता है वह ब्याज तो वसूल करता ही है साथ ही अपनी हुकूमत भी चलाता है , उधार देने वाला किसी दूसरे लोक का निवासी नहीं है , वह भी मानवीय कमजोरियों से घिरा हुआ है ,वह चाहता है कि जब हमारी दम पर तुम्हारा वैभव है तो हमारी हर बात को चाहे वह सही हो या गलत , उसे स्वीकार करो l उधारी का जीवन चाहे परिवार का हो या राष्ट्र का एक तरह की गुलामी है , बिना युद्ध के ----- l कभी ऐसा भी होता है कि व्यक्ति जागरूक नहीं है , स्वयं को मिलने वाली सुविधाओं में खो जाता है , उसे सुविधा देने वाले की मानसिकता क्या है , इसे समझ नहीं पाता और अनजाने में अपना स्वाभिमान खो बैठता है l जैसे --- महाभारत का प्रसंग है --- जब युद्ध शुरू होने वाला था तब विशाल भारत के लगभग सभी राजा ( एक -दो को छोड़कर ) युद्ध में सम्मिलित हुए l कोई कौरवों के पक्ष में , कोई पांडवों के पक्ष l जब दुर्योधन को पता चला कि पांडवों के मामा शल्य आ रहे हैं तो उसने गुप्त रूप से शल्य के आने के पूरे मार्ग पर सुख - सुविधाओं का अम्बार लगा दिया l सैकड़ों सेवकों को नियुक्त कर दिया कि मार्ग में मामा शल्य को कोई कष्ट नहीं होना चाहिए l शल्य बहुत प्रसन्न थे कि युधिष्ठिर ने उनकी सुविधा का इतना ध्यान रखा लेकिन जब वे हस्तिनापुर पहुंचे तो दुर्योधन ने स्वागत किया l तब उन्हें समझ में आया कि रास्ते भर इतना स्वागत -सत्कार सब दुर्योधन ने किया l इस एहसान के कारण शल्य और उनके समर्थक सभी राजा , दुर्योधन के पक्ष में रहे l बुराइयां हर युग में रही हैं , व्यक्ति को स्वयं जागरूक होना होगा l
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