9 March 2025

WISDOM ------

महाभारत  के  विभिन्न  प्रसंग  हमें,  जीवन  जीने  की  कला  सिखाते  हैं  ---- ऋषि  कहते  हैं  यदि  मनुष्य  में  विवेक  और  वैराग्य  हो  तो  वह  अनेक  समस्याओं  से  मुसीबतों  से  बचकर  सुरक्षित  बाहर  निकल सकता  है  l  युधिष्ठिर  धर्मराज  थे  ,  उनके  भीतर  विवेक  था  , क्या  सही  है  और  क्या  गलत  है  ,  इसे  वह  अच्छी  तरह  जानते  थे   l   वे  जानते  थे  कि  जुआ  खेलना   उचित  नहीं  है  l  जुआ  खेलने  के  दुष्परिणाम  वे  अच्छी  तरह  जानते  थे  लेकिन  फिर  भी  जब  दुर्योधन  ने  उन्हें  जुआ  खेलने  को  आमंत्रित  किया  ,  तब  उन्होंने  इस  आमंत्रण  को  सहज  स्वीकार  कर  लिया  l  हारे  हुए  जुआरी   के  पीछे  ऐसा  दुर्भाग्य  पड़  जाता  है  कि  पांचों  पांडवों  को  द्रोपदी  सहित   चौदह  वर्ष  वनवास  भोगना  पड़ा  , राजा  विराट  के  यहाँ  वेश  बदलकर  नौकर  की  तरह  रहना  पड़ा  l   इसी  तरह  यदि  हमारे  मन  में  वैराग्य  का  भाव  नहीं  है   अर्थात  हम  किसी  के  भी  लालच  में  आ  जाते  हैं   तो  उसका  दुष्परिणाम  भी  भोगना  पड़ता  है  l  जैसे  कर्ण   को  सूतपुत्र  होने  के  कारण  अपमानित  और  उपेक्षित  होना  पड़ता  था  l  उसकी  वीरता  को  भी  उचित  सम्मान  नहीं  मिला  l  दुर्योधन  कूटनीतिज्ञ  था  l  वह  समझ  गया  था  कि  कर्ण  जैसा  वीर  उसके  पक्ष  में  होगा  तो  उसके  आगे  की  राह  आसान  हो  जाएगी  l    उसने  कर्ण  को  अंगदेश  का  राजा  बनाने  का    और  यथोचित  सम्मान  दिए  जाने  का  लालच  दिया  l  कर्ण  जानता  था  कि  दुर्योधन  अत्याचारी  , अन्यायी  है  लेकिन  फिर  भी  उसने  उस  प्रस्ताव  को  स्वीकार  कर लिया  l  कहते  हैं  यदि  कर्ण  दुर्योधन  के  साथ  न  होता  तो  शायद  दुर्योधन  महाभारत  के  महायुद्ध  को  करने  की  हिम्मत  नहीं  जुटा  पाता  l  कर्ण  ने  विवेक  और  वैराग्य  से  काम  नहीं  लिया  l  अत्याचारी  का  साथ  देने  का  जो  परिणाम  होता  है  वही उसका  हुआ  l