वर्तमान समय में भौतिक और वैचारिक प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि संयमित जीवन जीने और एक अच्छी जीवनशैली के बाद भी लोग स्वस्थ नहीं रह पाते , कोई न कोई बीमारी उन्हें अपनी चपेट में ले ही लेती है l इसका कारण है कि कीटनाशक , हानिकारक तत्वों के कारण वायु , जल , अन्न सब प्रदूषित है जो व्यक्ति की जीवनीशक्ति को कमजोर कर रहे है l प्रकृति से दूर और दवाइयों पर अत्यधिक निर्भर रहकर व्यक्ति अपने जीवन को जीता नहीं , ढोता है l यदि समाज जागरूक हो जाये तो इस बाहरी प्रदूषण को तो दूर किया जा सकता है लेकिन जो प्रदूषण व्यक्ति के भीतर है , काम , क्रोध , लोभ , ईर्ष्या , द्वेष , अति महत्वाकांक्षा , असत्य बोलना , बेईमानी , धोखा देना , षड्यंत्र करना ये सब दुर्गुण व्यक्ति को तनाव और बड़ी बीमारियों से ग्रस्त कर देते हैं l इस मानसिक प्रदूषण को दूर करना आसान नहीं है l श्रीमद्भगवद्गीता में इन दोषों से मुक्ति पाने का सरल रास्ता बताया गया है कि निष्काम कर्म करने से मन निर्मल हो जाता है , इसके लिए धैर्य और विश्वास की जरुरत है l
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