इस संसार में हर युग में किसी न किसी रूप में देवासुर संग्राम होता रहा है l असुरता कभी नहीं चाहती कि देवत्व शक्तिशाली हो , इसलिए वह किसी न किसी तरह देवत्व को कमजोर करने के प्रयास करते रहते हैं l आज का युग ज्ञान - विज्ञान का युग है , परिश्रम करने और कर्मयोगी बनने का युग है l लेकिन यदि लोग ज्ञानी और कर्मयोगी हो गए तो वे असुरता को समझ जायेंगे और उसे मिटा देंगे l इसलिए असुरता ऐसे हथकंडे अपनाती है कि लोगों के ज्ञान प्राप्त करने में अनेक बाधाएं उपस्थित हो जाएँ , ज्ञान ही नहीं होगा तो वे जागरूक भी नहीं होंगे , इससे असुरता को अपना वर्चस्व कायम करना आसान होगा l इस सत्य को स्पष्ट करने वाली एक लघु कथा है ----- सतयुग धरती की ओर बढ़ रहा था l यह देखकर कलियुग ने अपने सहायकों की सभा बुलाई l किसी ने कहा , मैं पृथ्वी पर जाकर धन का लालच फैला दूंगा , किसी ने कहा , हम लोगों को कामनाओं में फंसा देंगे l किसी ने कामिनी का दर्प दिखाया , पर कलि को संतोष न हुआ l एक बुड्ढा सहायक एक कोने में बैठा था , वह बोला ----- मैं जाकर लोगों में निराशा और आलस्य पैदा कर दूंगा l उनके साहस को नष्ट कर दूंगा , बस , फिर वे किसी काम के न रहेंगे और न वे किसी बुराई को दूर करने के लिए संघर्ष कर सकेंगे और न ही किसी अच्छाई को उपार्जित करने का साहस उनमे रहेगा l इस वृद्ध सहायक की बात कलि महाराज को बहुत पसंद आई , उन्होंने इसे राज्य में प्रमुख पद दे दिया l आज के निराश और आलसी लोग कलि महाराज की प्रजा बने हुए हैं l इन परिस्थितियों में बेचारा सतयुग कहाँ ?
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