आज के युग की सबसे बड़ी समस्या ' तनाव ' है l गरीब व्यक्ति मेहनत - मजदूरी कर पत्थर पर भी चैन की नींद सो जायेगा लेकिन जिसके पास जितनी सुविधाएँ हैं वह उतना ही तनावग्रस्त है l विकसित देशों में आर्थिक समस्या नहीं है लेकिन फिर भी अशांति है , तनाव है l इसका कारण यही है कि विज्ञानं ने मानव शरीर को यंत्र बना दिया है और मानव मन की भावनाओं की उपेक्षा करने से जीवन खोखला हो गया है l भौतिकता के सामने मानवीय संवेदना कहीं खो गई l विज्ञान आँसुओं का वैज्ञानिक विश्लेषण तो कर सकता है कि उसमे कितना पानी , खनिज , क्षार आदि है लेकिन आँख से गिरने वाला आँसू स्नेह , ममता , व्यथा , वेदना , करुणा , दुःख आदि कौन सी भावना को व्यक्त कर रहा है , इसका विश्लेषण नहीं कर सकता इसलिए विज्ञानं संवेदनहीन है l मनुष्य का केवल रासायनिक पदार्थों का सम्मिश्रण नहीं है , श्रद्धा , निष्ठां , साहस , उमंग , नैतिकता , ईमानदारी , आत्मविश्वास आदि श्रेष्ठ भावनाएं उसके व्यक्तित्व को , उसके आभामंडल को निर्मित करती है l भावनाओं की उपेक्षा के कारण ही लोग तनावग्रस्त हैं , नई -नई बीमारियां उसे घेर लेती हैं l फिर उन बीमारियों का इलाज भी उसी तरह होता है जैसे मशीनों में तेल डालकर उनके कल -पुर्जों को सुधारा जाता है l भौतिकता की अंधी दौड़ में मनुष्य ने भावनाएं तो खो दीं , और वह प्रकृति से भी दूर हो गया l जिन पांच तत्वों से मिलकर उसका शरीर बना , उन्ही तत्वों को प्रदूषित कर रहा है l अपने ही विनाश पर उतारू है l
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