पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' अगर आप दूसरों से स्नेह , सम्मान , सहानुभूति चाहते हैं तो उनकी आलोचना , बुराई न करें l किसी की आलोचना करने से कोई फायदा नहीं होता l आलोचना से कोई सुधरता नहीं है , बल्कि इससे संबंध जरूर बिगड़ जाते हैं l ' अब्राहम लिंकन ने अपने जीवन के अनुभव से दूसरों की आलोचना करने के बुरे परिणाम को जाना l उनका प्रिय कोटेशन था ---- " किसी की आलोचना मत करो , ताकि आपकी भी आलोचना न हो l " जब भी श्रीमती लिंकन और दूसरे लोग दक्षिणी प्रान्त के लोगों की आलोचना करते तो लिंकन जवाब देते थे ---- " उनकी आलोचना मत करो , अगर हम उन परिस्थितियों में होते तो हम भी वैसे ही होते l " लिंकन अपने जीवन के कटु अनुभव से जानते थे कि तीखी आलोचना और डांट - फटकार हमेशा नुकसानदायक होती है और उससे कोई लाभ नहीं होता l आलोचना यदि दूसरों को सुधारने के लिए भी हो तो दूसरों को सुधारने के बजाय खुद को सुधारना ज्यादा फायदेमंद होता है और कम खतरनाक भी l " आचार्य श्री लिखते हैं ---- " यदि किसी के मन में स्वयं के प्रति विद्वेष पैदा करना है , जो दशकों तक पलता रहे और मौत के बाद भी बना रहे , तो इसके लिए कुछ ख़ास नहीं करना पड़ता , सिर्फ चुनिंदा शब्दों में चुभती हुई आलोचना करनी होती है l जाने - अनजाने ज्यादातर लोग ऐसा ही करते हैं और दूसरों के मन में खुद के प्रति विषबीज बो देते हैं l "
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