पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' क्रोध पल भर में व्यक्ति की सारी अच्छाई को नष्ट कर सकता है और उससे कुछ भी अनिष्ट करवा सकता है l क्रोध दहकते हुए उस कोयले के समान है , जिसे व्यक्ति दूसरों को जलाने के लिए अपने पास रखे रहता है , अपने मन में रखे रहता है और उससे हर पल वह स्वयं ही जलता रहता है l इसलिए क्रोध से बाहर निकालो l प्रेम , करुणा और सहिष्णुता के जल से इस क्रोध की चिनगारी को बुझाओ l क्रोध के शांत होते ही अंदर से सुख और शांति की प्राप्ति होने लगेगी l '
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