पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " सकारात्मक भावना व्यक्तित्व को मजबूत एवं आशावान बनती हैं l ऐसे व्यक्ति का व्यक्तित्व अविभक्त होता है और वही भक्त कहलाता है l भक्त हर परिस्थिति में सुखी , संतुष्ट एवं शांत रहता है , वह कभी शिकायत नहीं करता , कभी परेशान नहीं होता और न किसी को परेशान करता है l "------- बहराम बड़ा ही धनवान था l उसका कारवाँ डाकुओं ने लूट लिया , बहुत नुकसान हो गया l संत अहमद उसके समीप ही रहते थे , एक दिन उससे मिलने गए l बहराम ने भोजन लाने का आदेश दिया l संत बोले ---- " भाई ! तुम्हारा इतना नुकसान हुआ है l मैं भोजन करने नहीं , तुम्हे सांत्वना देने आया हूँ l " बहराम बोला ---- " आप निश्चिन्त होकर भोजन कर लें l यह सच है कि मेरा बहुत बड़ा नुकसान हुआ , डाकुओं ने मुझे लूटा है , पर मैंने कभी किसी को नहीं लूटा , किसी का अहित नहीं किया l मैं अल्लाह का एहसानमंद हूँ कि मात्र मेरी नश्वर सम्पति लूटी गई है l मेरी शाश्वत सम्पति है --- ईश्वर के प्रति मेरा दृढ विश्वास l यही मेरे जीवन की सच्ची सम्पति है और वह मेरे पास है l " संत बोले --- ' भाई ! सच्चे अर्थों में तुम संत हो l l '
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