गुरु गोविंदसिंह ने अपने ज्ञान , अपने अनुभव से संसार को अनेक शिक्षाएं दीं l उनके जीवन का एक प्रसंग है ----- गुरु गोविंदसिंह उन दिनों गोदावरी के तट पर नगीना नाम का एक घाट बनवा रहे थे l दिनभर उन काम में व्यस्त रहकर वे सायंकाल प्रार्थना कराते और लोगों को संगठन तथा बलिदान का उपदेश दिया करते थे l उन दिनों उनके पास अनेक शिष्य भी रहते थे , उनमे एक शत्रु भी छिपा हुआ था , उसका नाम था - अताउल्ला खां l उसका पिता पैदे खां एक युद्ध में गुरु जी के हाथ से मारा गया था l उसके अनाथ पुत्र को गुरु जी ने आश्रम में रखकर पाल लिया था किन्तु उनकी यही दया और शत्रु के पुत्र के साथ की गई मानवता उनके अंत का कारण बन गई l अताउल्ला खां हर समय इस घात में रहता था कि कब गुरु जी को अकेले असावधान पाए और मार डाले l एक दिन उसने पलंग पर सोते हुए गुरु जी की काँख में छुरा भौंक दिया l गुरु जी तत्काल सजग होकर उठ बैठे और वही कटार निकालकर भागते हुए विश्वास घाती को फेंककर मारी l वह कटार उसकी पीठ में धँस गई l अताउल्ला खां वहीँ गिरकर ढेर हो गया l गुरु के घाव पर टाँके लगा दिए गए l सांयकाल उन्होंने प्रार्थना सभा में लोगों को बतलाया कि मेरी इस घटना से शिक्षा लेकर हर सज्जन व्यक्ति को यह नियम बना लेना चाहिए कि यदि शत्रु पक्ष को , निराश्रय की स्थिति में सहायता भी करनी हो तो भी उसे अपने पास निकट नहीं रखना चाहिए और उससे सदा सावधान रहना चाहिए क्योंकि कभी - कभी असावधान परोपकार भी अनर्थ का कारण बन जाता है l
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