' अहंकार एक भयानक रोग है l इसकी खास बात यह है कि यदि व्यक्ति सफल होता है तो उसका अहंकार भी उसी अनुपात में बढ़ता जाता है और वह विशाल चट्टान की भांति जीवन के सुपथ , सत्यपथ या आध्यात्मिक पथ को रोक लेता है l
इसके विपरीत यदि व्यक्ति असफल होता है तो उसका अहंकार एक घाव की भांति रिसने और दुखने लगता है l साथ ही धीरे - धीरे मन में हीनता की ग्रंथि बन जाती है , जो सदा - सर्वदा डराती रहती है l अहंकार भक्ति और ज्ञान दोनों के लिए ही बाधक है l हमारा आध्यात्मिक उत्थान , आत्मिक उत्थान , अपने ही अहंकार के कारण अवरुद्ध है l
इसके विपरीत यदि व्यक्ति असफल होता है तो उसका अहंकार एक घाव की भांति रिसने और दुखने लगता है l साथ ही धीरे - धीरे मन में हीनता की ग्रंथि बन जाती है , जो सदा - सर्वदा डराती रहती है l अहंकार भक्ति और ज्ञान दोनों के लिए ही बाधक है l हमारा आध्यात्मिक उत्थान , आत्मिक उत्थान , अपने ही अहंकार के कारण अवरुद्ध है l