' पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है --- बुरे दिनों की चपेट में आने से पहले आदमी अहंकारी हो चुका होता है l उद्धत मनुष्यों की दुर्मति ही उनकी दुर्गति कराती है l मनीषियों का कहना है कि अहंकार मनुष्यों को गिराता है l उसे उद्दंड और परपीड़क बनाता है l अपने साथियों को पीछे धकेलने , किसी के अनुग्रह की चर्चा न करने , दूसरे के प्रयासों को हड़प जाने के लिए अहंकार ही प्रेरित करता है ताकि जिस श्रेय की स्वयं कीमत नहीं चुकाई गई उसका भी लाभ उठा लिया जाये l
अहंकारी लोग आमतौर से कृतध्न होते हैं और अपनी विशेषताओं और सफलताओं का का उल्लेख बढ़ - चढ़ कर करते हैं l इनमे नम्रता , विनयशीलता का अभाव होता है और अन्यों को छोटा दिखाने, पिछड़ों का तिरस्कार - उपहास करने की प्रवृति बढ़ती जाती है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- 'जब अहंकार बढ़ने लगता है तो व्यक्ति की संवेदनशीलता , सरलता , सरसता जैसे सद्गुणों का ह्रास होने लगता है l इस कारण ऐसा व्यक्ति दूसरों की नज़रों में निरंतर गिरता जाता है , घृणास्पद बनता है , शत्रुओं की संख्या बढ़ाता है और अन्तत: घाटे में रहता है l आत्मसम्मान की रक्षा करनी हो तो अहंकार से बचना ही चाहिए l
अहंकारी लोग आमतौर से कृतध्न होते हैं और अपनी विशेषताओं और सफलताओं का का उल्लेख बढ़ - चढ़ कर करते हैं l इनमे नम्रता , विनयशीलता का अभाव होता है और अन्यों को छोटा दिखाने, पिछड़ों का तिरस्कार - उपहास करने की प्रवृति बढ़ती जाती है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- 'जब अहंकार बढ़ने लगता है तो व्यक्ति की संवेदनशीलता , सरलता , सरसता जैसे सद्गुणों का ह्रास होने लगता है l इस कारण ऐसा व्यक्ति दूसरों की नज़रों में निरंतर गिरता जाता है , घृणास्पद बनता है , शत्रुओं की संख्या बढ़ाता है और अन्तत: घाटे में रहता है l आत्मसम्मान की रक्षा करनी हो तो अहंकार से बचना ही चाहिए l
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