आचार्य श्री लिखते हैं --- बौद्धिकता के बल पर अनेकों तरह की खोजबीन करने वाला मानव कितना ही अभिमान क्यों न करे पर संवेदनाओं के क्षेत्र में वह पाषाण युगीन मनुष्य से भी कोसों पीछे है l जान रसेल ने लिखा है --- "प्रत्येक व्यवहार विज्ञानी ईसा , फ्रांसिस , संत पाल , गाँधी और बुद्ध के व्यवहार को ललचाई नज़रों से देखता है l लेकिन हिटलर , मुसोलिनी को व्यवहार के कलंक के रूप में देखता है l "
आचार्य श्री लिखते हैं --- ' निस्संदेह व्यवहार सम्बन्धी दोषों , दुर्बलताओं और कमियों का एकमात्र कारण निष्ठुरता है l कितने ही शासन बदले , सत्ताएं बदली लेकिन क्या इस उलट - फेर में मनुष्य सुखी हो सका ? ' नहीं ' l क्योंकि उसने निष्ठुरता के स्थान पर अन्त: संवेदना की स्थापना नहीं की l यदि मनुष्य के हृदय में संवेदना जाग जाये तो उसके व्यवहार में स्थायी सुधार संभव है l
अन्त : संवेदना का जागरण इस कदर बेचैनी उत्पन्न करता है और व्यवहार को बदलने के लिए बाध्य करता है l
एक ऐतिहासिक घटना है ----- विजयनगर सम्राट कृष्णदेव राय ने अपने गुरु संत कनकदास से पूछा --- महाराज ! भगवान गज को बचाने स्वयं क्यों दौड़े ? दौड़े भी थे तो सवारी क्यों नहीं ली ?'
संत दूसरे दिन समझाने का वादा कर के चले गए l दूसरे दिन उन्होंने नवजात राजकुमार की ठीक वैसी ही प्रतिमा बनवाई , बिलकुल स्वाभाविक थी , और उसे गोद में खिलाते हुए राजमहल के तालाब के पास आये l राजा भी पास ही थे l उस कृत्रिम प्रतिमा को उन्होंने धीरे से तालाब में डाल दिया l प्रतिमा बहुत स्वाभाविक थी , नकली राजकुमार के गिरते ही राजा कूद पड़ा और बहुत देर बाद जब वह निकला तो राजकुमार की प्रतिमा उसके हाथ में थी l अपनी बेवकूफी पर खिन्न भी था l संत ने कहा --- उत्तर मिला सम्राट l अन्त: संवेदना का जागरण ऐसी ही बेचैनी उत्पन्न करता है l फिर भगवान तो संवेदनाओं के घनीभूत रूप हैं , गज की पुकार पर , द्रोपदी की पुकार पर दौड़े चले आये l
आचार्य श्री लिखते हैं --- ' निस्संदेह व्यवहार सम्बन्धी दोषों , दुर्बलताओं और कमियों का एकमात्र कारण निष्ठुरता है l कितने ही शासन बदले , सत्ताएं बदली लेकिन क्या इस उलट - फेर में मनुष्य सुखी हो सका ? ' नहीं ' l क्योंकि उसने निष्ठुरता के स्थान पर अन्त: संवेदना की स्थापना नहीं की l यदि मनुष्य के हृदय में संवेदना जाग जाये तो उसके व्यवहार में स्थायी सुधार संभव है l
अन्त : संवेदना का जागरण इस कदर बेचैनी उत्पन्न करता है और व्यवहार को बदलने के लिए बाध्य करता है l
एक ऐतिहासिक घटना है ----- विजयनगर सम्राट कृष्णदेव राय ने अपने गुरु संत कनकदास से पूछा --- महाराज ! भगवान गज को बचाने स्वयं क्यों दौड़े ? दौड़े भी थे तो सवारी क्यों नहीं ली ?'
संत दूसरे दिन समझाने का वादा कर के चले गए l दूसरे दिन उन्होंने नवजात राजकुमार की ठीक वैसी ही प्रतिमा बनवाई , बिलकुल स्वाभाविक थी , और उसे गोद में खिलाते हुए राजमहल के तालाब के पास आये l राजा भी पास ही थे l उस कृत्रिम प्रतिमा को उन्होंने धीरे से तालाब में डाल दिया l प्रतिमा बहुत स्वाभाविक थी , नकली राजकुमार के गिरते ही राजा कूद पड़ा और बहुत देर बाद जब वह निकला तो राजकुमार की प्रतिमा उसके हाथ में थी l अपनी बेवकूफी पर खिन्न भी था l संत ने कहा --- उत्तर मिला सम्राट l अन्त: संवेदना का जागरण ऐसी ही बेचैनी उत्पन्न करता है l फिर भगवान तो संवेदनाओं के घनीभूत रूप हैं , गज की पुकार पर , द्रोपदी की पुकार पर दौड़े चले आये l
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