कीट्स ने अपनी कविता ' महिमा से महानता की ओर ' में ठीक ही कहा है ---- ' जब मनुष्य अपनी ही महिमा का गुणानुवाद अपने मुख से करने लगे , तो समझना चाहिए कि वह उस महानता से दूर हटता जा रहा है , जो उसे सहज में उपलब्ध हो सकती थी l क्षुद्र स्तर के लोग ऐसी ही चर्चा में संलग्न रहते हैं और अपना एवं दूसरों का समय बरबाद करते हैं l महानता यत्र - तत्र उल्लेख कर लेने भर से व्यक्तित्व में नहीं आ जाती , न ही यह विज्ञापन का विषय है l यह एक ऐसी विभूति है , जो बिना कहे हुए भी सामने वाले को बहुत कुछ कहती बताती रहती है l फूलों को अपनी सुगंध की चर्चा करने की कहाँ आवश्यकता पड़ती है l वह काम तो उनकी अद्भुत सुवास ही अनायास करती रहती है और अनेकानेक भौरों को मदमस्त करती हुई खींच बुलाती है l जिस दिन हिमालय अपने गुणों का बखान करने लगे , उसी दिन उसकी आध्यात्मिकता की दिव्यता समाप्त हो जाएगी और लोग उसका सान्निध्य लाभ लेने से कतराएंगे l
एक अन्य विद्वान् ने लिखा है --- महानता बताने की वस्तु नहीं है , वरन करने योग्य कार्य है l वे कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति दिन - रात चीखता रहे कि वह महान है , लोगों को उसका सम्मान करना चाहिए , तो उलटे वह अपमान और उपहास का पात्र साबित होगा l इसके विपरीत यदि लोगों की भलाई के लिए छोटा सा भी कार्य कर दे तो जान - श्रद्धा उसके प्रति सहज ही उमड़ पड़ेगी l
श्रद्धा से सम्मान और सम्मान से महान बनने की ओर उसका मार्ग प्रशस्त हो जायेगा l
एक अन्य विद्वान् ने लिखा है --- महानता बताने की वस्तु नहीं है , वरन करने योग्य कार्य है l वे कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति दिन - रात चीखता रहे कि वह महान है , लोगों को उसका सम्मान करना चाहिए , तो उलटे वह अपमान और उपहास का पात्र साबित होगा l इसके विपरीत यदि लोगों की भलाई के लिए छोटा सा भी कार्य कर दे तो जान - श्रद्धा उसके प्रति सहज ही उमड़ पड़ेगी l
श्रद्धा से सम्मान और सम्मान से महान बनने की ओर उसका मार्ग प्रशस्त हो जायेगा l
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