महान संगीतकार बीथोवियन का जीवन अभाव और कष्टों की ऐसी कहानी है जिसे श्रोता सुनते-सुनते स्वयं रो पड़े । ऐसे कष्टमय जीवन में भी वह ऐसा संगीत रचते रहे कि आज लगभग 245 वर्ष बाद भी वह संगीत के क्षेत्र में उतने ही लोकप्रिय हैं जितना कोई आधुनिक लोकप्रिय कलाकार ।
भाग्य ने उन्हें काँटों पर चलने को विवश किया , इस पीड़ा मे भी वे संसार में संगीत का प्रकाश फैलाते रहे । उनके संगीत में जीवन के दुःखों को शांति और हर्ष में बदल देने की अदभुत क्षमता उत्पन्न हो गई । उनके प्रेरणास्रोत मिश्र के इतिहास प्रसिद्ध एक पिरामिड पर अंकित ये शब्द थे----
' मैं ही सब कुछ हूँ, मैं ही था और मैं ही रहूँगा । कोई भी मरणशील प्राणी मेरे स्तर तक नहीं पहुँच सकता । " बीथोवियन अपने आप में उसी आत्म-शक्ति का अनुभव करते थे जो गीता में कही गई है ।
अपने एक मित्र से उन्होंने कहा था---- " इस धरा पर सैकड़ों राजकुमार होंगे किन्तु बीथोवियन एक ही होगा । " महान और अलौकिक संगीत स्रष्टा के रूप में उन्हे जर्मनी में ही नहीं पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त हुई । जगह-जगह उनकी सिफनियों को सुनने के लिए संगीत समारोह आयोजित किये गये । उन्हें सम्मान, प्रशंसा, पुरस्कार मिले, बस नहीं मिला तो सुख ।
बीथोवियन सदैव इसी आदर्श पर रहे कि दुःख आये तो स्वागत, सुख आये तो स्वागत, सभी परिस्थितियों में समान रहना । उनकी अदम्य जिजीविषा और आत्म-सामर्थ्य संसार को प्रेरणा देती रहेगी । बीथोवियन महान संगीतकार ही नहीं महान व्यक्ति भी थे ।
भाग्य ने उन्हें काँटों पर चलने को विवश किया , इस पीड़ा मे भी वे संसार में संगीत का प्रकाश फैलाते रहे । उनके संगीत में जीवन के दुःखों को शांति और हर्ष में बदल देने की अदभुत क्षमता उत्पन्न हो गई । उनके प्रेरणास्रोत मिश्र के इतिहास प्रसिद्ध एक पिरामिड पर अंकित ये शब्द थे----
' मैं ही सब कुछ हूँ, मैं ही था और मैं ही रहूँगा । कोई भी मरणशील प्राणी मेरे स्तर तक नहीं पहुँच सकता । " बीथोवियन अपने आप में उसी आत्म-शक्ति का अनुभव करते थे जो गीता में कही गई है ।
अपने एक मित्र से उन्होंने कहा था---- " इस धरा पर सैकड़ों राजकुमार होंगे किन्तु बीथोवियन एक ही होगा । " महान और अलौकिक संगीत स्रष्टा के रूप में उन्हे जर्मनी में ही नहीं पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त हुई । जगह-जगह उनकी सिफनियों को सुनने के लिए संगीत समारोह आयोजित किये गये । उन्हें सम्मान, प्रशंसा, पुरस्कार मिले, बस नहीं मिला तो सुख ।
बीथोवियन सदैव इसी आदर्श पर रहे कि दुःख आये तो स्वागत, सुख आये तो स्वागत, सभी परिस्थितियों में समान रहना । उनकी अदम्य जिजीविषा और आत्म-सामर्थ्य संसार को प्रेरणा देती रहेगी । बीथोवियन महान संगीतकार ही नहीं महान व्यक्ति भी थे ।
No comments:
Post a Comment