' किस प्रकार कला मानव के उन्नयन में सहायक हो सकती है, उसके विचारों, भावनाओं को परिष्कृत करके सद्प्रेरणा दे सकती है, फ्रा ऐंजिल्को के चित्र इसके अनुपम उदहारण हैं । '
उनके चित्रों को देखकर लगता है जैसे स्वयं ईश्वर ने अपने पुत्रों को सन्मार्गगामी बनाने के उद्देश्य से पथ-प्रदर्शक के रूप में इन्हें रचा हो । ऐसे 35 चित्र फ्लोरंस के ' म्यूसो डी सेन मार्को ' चर्च में अलमारियों के पल्लों पर जड़े हुए हैं । ये सभी चित्र अनुपम हैं तथा किसी देवता के उतारे हुए लगते हैं । पन्द्रह इंच लम्बे तथा पन्द्रह इंच चौड़े इन चित्रों में जैसे स्वर्ग उतर आया है ।
इस महान चित्रकार का जन्म मेडिको राज्य में पन्द्रहवी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुआ था । उनके बड़े भाई ईसाई साधु थे, वे भी बड़े होकर ईसाई साधु बने । अपनी वाणी और आचरण द्वारा वे लोगों को धर्म का---- मानवीय कर्तव्य का राजमार्ग बताते थे । कभी-कभी उनको अपने अन्दर से एक विशेष प्रकार की आवाज सुनाई देती थी--- " तुम्हारे भीतर एक श्रेष्ठ चित्रकार के अंकुर विद्दमान हैं, उन्हें विकसित भर करने की आवश्यकता है । यदि तुम यह साधना कर सके तो तुम्हारे द्वारा बनाये गये चित्र युगों तक मानव जाति को प्रेरणा तथा प्रकाश देते रहेंगे । "
ऐंजिल्को ने अपने अन्तर की आवाज को सुना, सारे दिन वे साधु-संस्थान के कार्यालय में काम करते, लोगों को उपदेश देने जाते, संस्कार कराते और शेष समय में अपने अन्त:करण की प्रेरणा से चित्र बनाते । उनके बनाये हुए दो सौ चित्र मिल चुके हैं । उनके चित्रों में एक प्रेरणा भरी होती थी----
" नीचे मत गिरो ऊपर उठो और आकाश को छू लो । देवत्व को प्राप्त करो, स्वर्ग किसी अन्य लोक में नहीं उसे इसी लोक में पाया जा सकता है । " उनके चित्र ' घोषणा ' ' ईसा की उत्पति ' ' यूनान की उड़ान ' ' मागी की भक्ति ' आज इतने वर्षों बाद भी कलाकारों के प्रेरणा-स्रोत बने हुए हैं ।
जीवन्त कला के अमर उपासक फ्रा ऐंजिल्को आज भी अपनी चित्रकला तथा मानव जाति के उत्थान हेतु अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने के जीवन-दर्शन के रूप में अमर हैं ।
उनके चित्रों को देखकर लगता है जैसे स्वयं ईश्वर ने अपने पुत्रों को सन्मार्गगामी बनाने के उद्देश्य से पथ-प्रदर्शक के रूप में इन्हें रचा हो । ऐसे 35 चित्र फ्लोरंस के ' म्यूसो डी सेन मार्को ' चर्च में अलमारियों के पल्लों पर जड़े हुए हैं । ये सभी चित्र अनुपम हैं तथा किसी देवता के उतारे हुए लगते हैं । पन्द्रह इंच लम्बे तथा पन्द्रह इंच चौड़े इन चित्रों में जैसे स्वर्ग उतर आया है ।
इस महान चित्रकार का जन्म मेडिको राज्य में पन्द्रहवी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुआ था । उनके बड़े भाई ईसाई साधु थे, वे भी बड़े होकर ईसाई साधु बने । अपनी वाणी और आचरण द्वारा वे लोगों को धर्म का---- मानवीय कर्तव्य का राजमार्ग बताते थे । कभी-कभी उनको अपने अन्दर से एक विशेष प्रकार की आवाज सुनाई देती थी--- " तुम्हारे भीतर एक श्रेष्ठ चित्रकार के अंकुर विद्दमान हैं, उन्हें विकसित भर करने की आवश्यकता है । यदि तुम यह साधना कर सके तो तुम्हारे द्वारा बनाये गये चित्र युगों तक मानव जाति को प्रेरणा तथा प्रकाश देते रहेंगे । "
ऐंजिल्को ने अपने अन्तर की आवाज को सुना, सारे दिन वे साधु-संस्थान के कार्यालय में काम करते, लोगों को उपदेश देने जाते, संस्कार कराते और शेष समय में अपने अन्त:करण की प्रेरणा से चित्र बनाते । उनके बनाये हुए दो सौ चित्र मिल चुके हैं । उनके चित्रों में एक प्रेरणा भरी होती थी----
" नीचे मत गिरो ऊपर उठो और आकाश को छू लो । देवत्व को प्राप्त करो, स्वर्ग किसी अन्य लोक में नहीं उसे इसी लोक में पाया जा सकता है । " उनके चित्र ' घोषणा ' ' ईसा की उत्पति ' ' यूनान की उड़ान ' ' मागी की भक्ति ' आज इतने वर्षों बाद भी कलाकारों के प्रेरणा-स्रोत बने हुए हैं ।
जीवन्त कला के अमर उपासक फ्रा ऐंजिल्को आज भी अपनी चित्रकला तथा मानव जाति के उत्थान हेतु अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने के जीवन-दर्शन के रूप में अमर हैं ।
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