एक गुरु के दो शिष्य थे l दोनों किसान थे l भगवान का भजन भी दोनों करते थे l किन्तु एक बड़ा सुखी था , दूसरा बड़ा दुःखी था l गुरु की मृत्यु पहले हुई , उनके बाद दोनों शिष्यों की भी मृत्यु हो गई l संयोग से स्वर्गलोक में भी तीनों एक ही स्थान पर आ मिले l पर यहाँ भी स्थिति पहले जैसी थी l जो पृथ्वी पर सुखी था , वह यहाँ भी प्रसन्नता का अनुभव कर रहा था और जो पृथ्वी पर अशांत रहता था , वह यहाँ भी अशांत दिखाई दिया l दुःखी शिष्य ने गुरुदेव से पूछा --- " भगवन ! लोग कहते हैं कि ईश्वर भक्ति से स्वर्ग में सुख मिलता है , पर हम तो यहाँ भी दुःखी के दुःखी रहे l " गुरु ने गंभीर होकर उत्तर दिया ---- " वत्स ! भक्ति से स्वर्ग तो मिल सकता है , पर सुख और दुःख मन की देन है l मन शुद्ध है तो नरक में भी सुख है और मन शुद्ध नहीं है तो स्वर्ग में भी कोई सुख नहीं है l