इस संसार में मनुष्य कर्म करने के लिए स्वतंत्र है , ईश्वर इसमें हस्तक्षेप नहीं करते l व्यक्ति अच्छा या बुरा जो भी कर्म करता है , उसके अनुरूप ही उसका फल उसे मिलता है l ईश्वर स्वयं इस कर्मफल से नहीं बचे हैं l जब महाभारत के महायुद्ध में सात महारथियों ने मिलकर अभिमन्यु को मारा था , तब अभिमन्यु की माँ सुभद्रा जो श्रीकृष्ण की सगी बहन थीं , उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा --- तुम्हे तो लोग भगवान कहते हैं , तुम मेरे ही पुत्र , अपने भानजे अभिमन्यु की रक्षा न कर सके ! " तब श्रीकृष्ण ने कहा --- 'यह संसार कर्मफल के आधीन है l हमारा वर्तमान जीवन कई जन्मों की यात्रा है l मनुष्य जो भी कर्म करता है उसका फल उसे कब , कैसे और किस जन्म में किस प्रकार मिलेगा , यह काल निश्चित करेगा l त्रेतायुग में मैंने बाली को छुपकर मारा था , वह बाण मेरे लिए भी रखा है l ' जब भगवान श्रीकृष्ण पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे तब व्याध का बाण लगने से उनकी मृत्यु हुई l कभी -कभी ऐसा भी होता है कि वर्तमान जन्म में हम जो कर्म करते हैं , उनका फल भी इसी जन्म में मिल जाता है l किसी की मदद करने से पहले भगवान भी देखते हैं कि उसके खाते में ऐसा कोई पुण्य है भी या नहीं , तभी प्रार्थना सुनते हैं l जब दु:शासन द्रोपदी का चीरहरण करने को तैयार था और द्रोपदी 'हे !कृष्ण ! कहकर भगवान को पुकार रही थी तब भगवान ने अपने अनुचरों से कहा --- द्रोपदी हमें पुकार रही है , देखो उसके खाते में ऐसा कोई पुण्य है कि उसकी मदद की जाए ? अनुचरों ने सब बहीखाते देखे और कहा --- हां भगवान ! जब आपने शिशुपाल को सुदर्शन चक्र से मारा था , तब आपकी अंगुली थोड़ी सी कट गई थी , उसमें खून बहने लगा था l तब आपकी महारानियाँ देखती रहीं , उन्हें समझ नहीं आया की क्या करें ? तब द्रोपदी ने अपनी कीमती साड़ी फाड़कर आपकी अंगुली में बाँधी थी l यह सुनते ही भगवान ने वस्त्रवातर धारण कर लिया l दु:शासन का दस हजार हाथियों का बल हार गया , सारी सभा साड़ियों के ढेर से भर गई , द्रोपदी का बाल बांका भी नहीं हुआ , ईश्वर ने उसकी लाज रखी l l इसी तरह पाप कर्मों का फल भी कभी इसी जन्म में मिल सकता है ,कभी किसी दूसरे जन्म में l कर्म की गति बड़ी न्यारी है , सामान्य व्यक्ति की समझ से परे है l इसलिए कहते हैं सत्कर्मों की पूंजी जोड़ते रहो l कौनसा पुण्य हमें कब किसी मुसीबत से बचा ले , ईश्वर की कृपा मिल जाए l