10 March 2025

WISDOM ------

 इस  संसार  में  मनुष्य  कर्म  करने  के  लिए  स्वतंत्र  है  ,  ईश्वर  इसमें  हस्तक्षेप  नहीं  करते  l  व्यक्ति  अच्छा  या  बुरा  जो  भी  कर्म  करता  है  , उसके  अनुरूप  ही  उसका  फल  उसे  मिलता  है  l  ईश्वर  स्वयं  इस  कर्मफल  से  नहीं  बचे  हैं  l  जब  महाभारत  के  महायुद्ध  में  सात  महारथियों  ने  मिलकर  अभिमन्यु  को  मारा  था  , तब  अभिमन्यु  की  माँ  सुभद्रा  जो  श्रीकृष्ण  की  सगी  बहन  थीं  ,  उन्होंने  श्रीकृष्ण  से  कहा  --- तुम्हे  तो  लोग  भगवान  कहते  हैं  ,  तुम  मेरे  ही  पुत्र , अपने  भानजे  अभिमन्यु  की  रक्षा  न  कर  सके  ! "  तब  श्रीकृष्ण  ने  कहा --- 'यह  संसार  कर्मफल  के  आधीन  है  l  हमारा  वर्तमान  जीवन  कई  जन्मों  की  यात्रा  है  l  मनुष्य  जो  भी  कर्म  करता  है  उसका  फल  उसे  कब  , कैसे  और  किस जन्म  में  किस  प्रकार  मिलेगा   , यह  काल  निश्चित  करेगा  l  त्रेतायुग  में  मैंने  बाली  को  छुपकर  मारा  था  ,  वह  बाण  मेरे  लिए   भी  रखा  है  l  '   जब  भगवान  श्रीकृष्ण  पेड़  के  नीचे  विश्राम  कर  रहे  थे  तब  व्याध  का  बाण  लगने  से  उनकी  मृत्यु  हुई  l  कभी  -कभी  ऐसा  भी  होता  है  कि  वर्तमान  जन्म  में  हम  जो  कर्म  करते  हैं  , उनका  फल  भी  इसी  जन्म  में  मिल  जाता  है  l  किसी  की  मदद  करने  से  पहले  भगवान  भी  देखते  हैं  कि  उसके  खाते  में  ऐसा  कोई  पुण्य  है  भी  या  नहीं  , तभी   प्रार्थना  सुनते  हैं  l   जब  दु:शासन  द्रोपदी  का  चीरहरण  करने  को  तैयार  था   और  द्रोपदी  'हे !कृष्ण  !  कहकर  भगवान  को  पुकार  रही  थी   तब  भगवान  ने  अपने  अनुचरों  से  कहा  --- द्रोपदी  हमें  पुकार  रही  है ,  देखो  उसके  खाते  में  ऐसा  कोई  पुण्य  है  कि  उसकी  मदद  की  जाए  ?  अनुचरों  ने  सब  बहीखाते  देखे  और  कहा  --- हां  भगवान  !  जब  आपने  शिशुपाल  को  सुदर्शन  चक्र  से  मारा  था  , तब  आपकी  अंगुली  थोड़ी  सी  कट  गई  थी  , उसमें  खून  बहने  लगा  था  l  तब  आपकी  महारानियाँ  देखती  रहीं  , उन्हें  समझ  नहीं  आया  की  क्या  करें  ?  तब  द्रोपदी  ने  अपनी  कीमती   साड़ी  फाड़कर  आपकी  अंगुली  में  बाँधी  थी  l  यह  सुनते  ही  भगवान  ने  वस्त्रवातर  धारण  कर  लिया  l  दु:शासन  का  दस  हजार  हाथियों  का  बल  हार  गया  ,  सारी सभा  साड़ियों  के  ढेर  से  भर  गई  ,  द्रोपदी  का  बाल  बांका  भी  नहीं  हुआ  ,  ईश्वर  ने  उसकी  लाज  रखी  l  l    इसी  तरह  पाप  कर्मों  का  फल  भी   कभी  इसी  जन्म  में  मिल  सकता  है  ,कभी  किसी  दूसरे  जन्म  में  l  कर्म  की  गति  बड़ी  न्यारी  है  ,   सामान्य   व्यक्ति  की  समझ  से  परे  है  l  इसलिए  कहते  हैं  सत्कर्मों  की  पूंजी  जोड़ते  रहो  l  कौनसा  पुण्य   हमें  कब  किसी  मुसीबत  से  बचा  ले  ,  ईश्वर  की  कृपा  मिल  जाए  l