हमारे महान धर्म ग्रन्थ गीता मे ' यदा यदा हि धर्मस्य--- के महान सत्य को अपने कविता संग्रह
Leaves of Grass ( घास की पत्तियां ) में उद्घाटित करने वाले कवि वाल्ट ह्विट्मैन थे, उनके कविता संग्रह की पवित्र गीत नामक कविता की पंक्तियां हैं----
" मैं युग-युग से आता हूँ । "
" और आकर हाड़-माँस का शरीर ग्रहण करता हूँ । "
" मनुष्य के साथ मनुष्य बनकर घूमता हूँ । "
" यह देखते हुए कि धर्म की रक्षा हो रही है । "
वाल्ट ह्विट्मैन का जन्म 1 मई 1819 में अमेरिका के वेस्ट हिल्स नामक स्थान पर हुआ था ।
उनकी यह तीव्र आकांक्षा थी कि अमेरिका से भारत के सांस्कृतिक संबंध स्थापित हों तथा दोनों देश एक दूसरे की संस्कृति से लाभान्वित हों । उन्होंने अपनी इस आकांक्षा को अपनी ' Passage to India '( भारत की यात्रा ) नामक कविता के छंदों से सँजोया है ।
उन्होंने विद्दालय में केवल पांच वर्ष तक ही अध्ययन किया, फिर उन्हें एक वकील के यहां नौकरी करनी पड़ी । अपनी नौकरी के अतिरिक्त समय में उन्होंने होमर, शेक्सपियर, वाल्टर स्काट आदि को पढ़ा तथा ' लांग आईलेंड पेट्रियट ' नामक समाचार पत्र के मुद्रणालय में छपाई का काम सीखने लगे । अपनी योग्यता से वे अल्पायु में स्कूल के अध्यापक बन गये, स्कूल में पढ़ाने के साथ-साथ अब वे लॉग आईलेंड नामक पत्र भी निकालने लगे ।
इस पत्र के वे स्वयं लेखक, संपादक, प्रकाशक, मुद्रक, पेकर तथा हाकर सभी कुछ थे । इसके बाद वे कई पत्रों के संपादक रहे । अंत में उन्होंने अपनी सारी सम्पति लगाकर स्वयं का पत्र ' फ्रीमैन ' निकाला । ईश्वर मनुष्य की कठिन परीक्षाएं लेते हैं--- एक दिन उनके पत्र के कार्यालय में आग लग गई, अग्नि में सब कुछ स्वाहा हो गया, लेकिन वे निराश नहीं हुए, हिम्मत नहीं हारी , और घर आकर पैतृक व्यवसाय बढ़ई-गिरी करने लगे ।
बढ़ईगिरी का कठोर कार्य करते हुए उन्होंने कई कविताएँ लिखी जो मनुष्य को देवत्व की ओर प्रेरित करती हैं । ये कविताएँ ' घास की पत्तियां ' नामक संग्रह में उन्हें स्वयं प्रकाशित करनी पड़ीं । इमर्सन और अब्राहम लिंकन जैसे उनके मित्र भी उनकी आदर्शोन्मुख कविताओं के प्रकाशन में सहायता नहीं कर सके । 73 वर्ष की आयु में उनका देहावसान हुआ, इसके पन्द्रह वर्ष पहले से ही पक्षाघात के कारण उनका आधा अंग निष्क्रिय हो गया था फिर भी वे अपना कार्य उसी निष्ठा व लगन से करते रहे, उन्होंने ' पेसेज टू इंडिया ' नवेम्बर बाऊज ' डेमोक्रेटिक विस्टाज ' आदि कृतियों का सृजन किया । संघर्ष में वे विजयी हुए, उनकी ख्याति अमेरिका और अमेरिका के बाहर फैल चुकी थी । उन्होंने अपनी एक कविता में अपने आत्मविश्वास को यों प्रकट किया है----
" अब मैं इस संसार से विदा लेता हूँ । "
मैं उस मनुष्य सा हूँ । 'जिसकी आत्मा देह से निकल चुकी हो------
जो मर चुका हो फिर भी विजयी हो । "
उनका जीवन उनकी गहन आत्म-शक्ति का परिचायक है कि नितांत विपरीत परिस्थितियों में भी साहित्य-सृजन करते रहे ।
Leaves of Grass ( घास की पत्तियां ) में उद्घाटित करने वाले कवि वाल्ट ह्विट्मैन थे, उनके कविता संग्रह की पवित्र गीत नामक कविता की पंक्तियां हैं----
" मैं युग-युग से आता हूँ । "
" और आकर हाड़-माँस का शरीर ग्रहण करता हूँ । "
" मनुष्य के साथ मनुष्य बनकर घूमता हूँ । "
" यह देखते हुए कि धर्म की रक्षा हो रही है । "
वाल्ट ह्विट्मैन का जन्म 1 मई 1819 में अमेरिका के वेस्ट हिल्स नामक स्थान पर हुआ था ।
उनकी यह तीव्र आकांक्षा थी कि अमेरिका से भारत के सांस्कृतिक संबंध स्थापित हों तथा दोनों देश एक दूसरे की संस्कृति से लाभान्वित हों । उन्होंने अपनी इस आकांक्षा को अपनी ' Passage to India '( भारत की यात्रा ) नामक कविता के छंदों से सँजोया है ।
उन्होंने विद्दालय में केवल पांच वर्ष तक ही अध्ययन किया, फिर उन्हें एक वकील के यहां नौकरी करनी पड़ी । अपनी नौकरी के अतिरिक्त समय में उन्होंने होमर, शेक्सपियर, वाल्टर स्काट आदि को पढ़ा तथा ' लांग आईलेंड पेट्रियट ' नामक समाचार पत्र के मुद्रणालय में छपाई का काम सीखने लगे । अपनी योग्यता से वे अल्पायु में स्कूल के अध्यापक बन गये, स्कूल में पढ़ाने के साथ-साथ अब वे लॉग आईलेंड नामक पत्र भी निकालने लगे ।
इस पत्र के वे स्वयं लेखक, संपादक, प्रकाशक, मुद्रक, पेकर तथा हाकर सभी कुछ थे । इसके बाद वे कई पत्रों के संपादक रहे । अंत में उन्होंने अपनी सारी सम्पति लगाकर स्वयं का पत्र ' फ्रीमैन ' निकाला । ईश्वर मनुष्य की कठिन परीक्षाएं लेते हैं--- एक दिन उनके पत्र के कार्यालय में आग लग गई, अग्नि में सब कुछ स्वाहा हो गया, लेकिन वे निराश नहीं हुए, हिम्मत नहीं हारी , और घर आकर पैतृक व्यवसाय बढ़ई-गिरी करने लगे ।
बढ़ईगिरी का कठोर कार्य करते हुए उन्होंने कई कविताएँ लिखी जो मनुष्य को देवत्व की ओर प्रेरित करती हैं । ये कविताएँ ' घास की पत्तियां ' नामक संग्रह में उन्हें स्वयं प्रकाशित करनी पड़ीं । इमर्सन और अब्राहम लिंकन जैसे उनके मित्र भी उनकी आदर्शोन्मुख कविताओं के प्रकाशन में सहायता नहीं कर सके । 73 वर्ष की आयु में उनका देहावसान हुआ, इसके पन्द्रह वर्ष पहले से ही पक्षाघात के कारण उनका आधा अंग निष्क्रिय हो गया था फिर भी वे अपना कार्य उसी निष्ठा व लगन से करते रहे, उन्होंने ' पेसेज टू इंडिया ' नवेम्बर बाऊज ' डेमोक्रेटिक विस्टाज ' आदि कृतियों का सृजन किया । संघर्ष में वे विजयी हुए, उनकी ख्याति अमेरिका और अमेरिका के बाहर फैल चुकी थी । उन्होंने अपनी एक कविता में अपने आत्मविश्वास को यों प्रकट किया है----
" अब मैं इस संसार से विदा लेता हूँ । "
मैं उस मनुष्य सा हूँ । 'जिसकी आत्मा देह से निकल चुकी हो------
जो मर चुका हो फिर भी विजयी हो । "
उनका जीवन उनकी गहन आत्म-शक्ति का परिचायक है कि नितांत विपरीत परिस्थितियों में भी साहित्य-सृजन करते रहे ।
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