यदि कोई व्यक्ति पूरी तरह पागल है तो उसका इलाज तो किया जा सकता है लेकिन मानसिक विकृतियों जैसे ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार , दूसरों के सुख को सहन न कर पाना , अपनी सारी ऊर्जा दूसरों का हक छीनने में लगा देना --- ये सब ऐसी मानसिक विकृतियां हैं जिनका इलाज किसी भी चिकित्सक के पास नहीं है l किसी व्यक्ति के ऐसे दुर्गुणों से सबसे ज्यादा पीड़ित वही होता है जो उनके अहंकार को पोषित नहीं करता l ऐसे दुर्गुणी व्यक्ति की यह खासियत होती है कि उसका किसी ने कुछ नहीं बिगाड़ा , लेकिन फिर भी वह किसी के सुख , वैभव , शांतिपूर्ण जीवन को देखकर जलता -भुनता है और उसके विरुद्ध छल , कपट , षडयंत्र करने में कोई कोर -कसर बाकी नहीं रखता l ऐसे व्यक्ति परिवारों में पाए जाते हैं और वे ही जब संस्थाओं में जाते हैं तो वहां भी अपने दुर्गुणों का लोगों को पीड़ित करने में भरपूर इस्तेमाल करते हैं l दुर्योधन , दु:शासन , शकुनि केवल महाभारत में ही नहीं थे , , वे तो विभिन्न परिवारों और संस्थाओं में मौजूद हैं l पांडवों ने दुर्योधन आदि कौरवों का कुछ नहीं बिगाड़ा था , वे तो शांति से रहते थे लेकिन दुर्योधन उनकी सुख -शांति से ईर्ष्या करता था , उनका हक़ छीनना चाहता था l शकुनि की सलाह ने उसके षड्यंत्रकारी इरादों को और मजबूत बना दिया l ऐसे दुर्गुणों से ग्रस्त व्यक्ति संवेदनहीन होते हैं फिर उन्हें शकुनि जैसे सलाहकार मिल ही जाते हैं l इसलिए आज परिवार टूट रहे हैं , परिवार के नाम पर अत्याचार बढ़ रहा है l विश्वास किस पर करें और किस पर न करें यह बड़ी विकट समस्या है क्योंकि व्यक्ति समाज में अपना सम्मान बनाए रखने के लिए अपनों की ही पीठ पर छुपकर वार करता है और जब भेद खुल जाता है तो परिवार की मर्यादा के नाम पर उससे मुँह बंद रखने के लिए कहा जाता है l यही तो महाभारत में हुआ --- दुर्योधन , शकुनि ने पांडवों को लाक्षाग्रह में जीवित जलाने की योजना बनाई l पांडव किसी तरह बच निकले और जब भेद खुला कि यह तो दुर्योधन आदि का षड्यंत्र था , तब दुर्योधन की गलती पर परदा डालने के लिए महाराज धृतराष्ट्र ने पांडवों को खुश करने का हर संभव प्रयास किया लेकिन इससे बैरभाव समाप्त नहीं हुआ l दुर्योधन की उदंडता बढ़ती गई जिसका अंत महाभारत के महायुद्ध से हुआ l