हमारे महाकाव्य हमें जीवन जीना सिखाते हैं l महाभारत की कथा भाई -भाई के बीच उत्तराधिकार के लिए संघर्ष की गाथा है l पांडवों को उनके अधिकार से वंचित करने के लिए दुर्योधन ने मामा शकुनि के साथ मिलकर षड्यंत्र रचने और छल -कपट करने की अति कर दी l अपने ही खानदान की कुलवधू को भरी सभा में अपमानित करने , अपशब्द कहने में कोई कसर नहीं छोड़ी l इस कथा का अंत नहीं हुआ , कलियुग में अब यह अधिकांश परिवारों की सच्चाई है l धन , संपत्ति का लालच और अपनी दमित इच्छाओं के लिए लोग अपने परिवार के सदस्यों और अपने रिश्तों पर ही अत्याचार , अन्याय करते हैं l अहंकार , लालच , ईर्ष्या द्वेष व्यक्ति को बहुत गिरा देते हैं , अपने पराये का भेद मिट जाता है l बुद्धि के विकास के साथ -साथ ----- को अपमानित करने का तरीका बदल जाता है l पागलपन की हद तक सताओ , ताकि पीड़ित स्वयं ही घर -संपत्ति सब छोड़कर चला जाये l महाभारत का महाकाव्य लिखने के पीछे महर्षि का यही उदेश्य रहा होगा कि कलियुग में जब परिस्थितियां बहुत विकट हो जाएँ तब उन विपरीत परिस्थितियों में कैसे शांति से रहा जाये l महर्षि ने यही समझाया कि जब दुर्योधन , दु:शासन और शकुनि जैसे षड्यंत्रकारियों से पाला पड़ जाये जो अपनी आखिरी सांस तक अत्याचार और अन्याय करना नहीं छोड़ते तब पांडवों की तरह उनके किसी भी व्यवहार पर अपनी कोई प्रतिक्रिया न दो , उन पर क्रोध कर के अपनी ऊर्जा को न गंवाओ l बल्कि तप कर के अपनी शक्ति को बढ़ाओ ताकि वक्त आने पर उन अत्याचारियों का मुकाबला कर सको l अपनी शक्ति बढ़ाने के साथ स्वय को ईश्वर के प्रति समर्पित करो l अर्जुन की तरह अपने जीवन की बागडोर भगवान के हाथों में सौंप दो l ईश्वर स्वयं न्याय करेंगे , ईश्वर के घर देर है , अंधेर नहीं है l