3 May 2025

WISDOM -----

   महाभारत  का  जो  युद्ध  था  वह  राज परिवार  तक  ही  सीमित  था   लेकिन  कलियुग  में  दुर्बुद्धि  का  ऐसा  प्रकोप  है  कि  अब  ये  घर -घर  की  कहानी  है  ---- महाभारत  का  ही  प्रसंग  है  --- महाराज  पांडू   रोगग्रस्त  थे  ,  जब  उन्हें  ऋषि  ने  श्राप  दे  दिया   तो  वे  बहुत  निराश  हो  गए  और  राजपाट   धृतराष्ट्र  को  सौंपकर  अपनी  दोनों  पत्नियों  के  साथ  जंगल  में  चले  गए  l  कुछ  समय  बाद  श्राप  की  वजह  से  महाराज  पांडू  की  मृत्यु  हो  गई  l  इस  अवधि  में   दुर्योधन  आदि  कौरवों  को  राजसुख  का  अहंकार  हो  गया  था  ,  वे   सोचते  थे  की  हस्तिनापुर  केवल  उनका  है  ,  पितृहीन  पांडव    दीन  -हीन  स्थिति  में   उनके  गुलाम  और  उनकी  दया  के  पात्र  बन  कर  रहे   l  उन्हें  पांडवों  का  सुख  बर्दाश्त  नहीं  होता  था  l  उस  राजसुख  पर  पांडवों  का  भी  हक   था  l  दुर्योधन  की  जिद  के  आगे  धृतराष्ट्र    मोह  में  अंधे  थे  l  पितामह  के  समझाने  पर   उन्होंने  पांडवों  को   खांडव    वन  का  प्रदेश  दे  दिया  l  यह  क्षेत्र  जंगली  और  जहरीले  जानवरों  से  भरा  हुआ  सघन  वन  था  l  पांडवों  ने  अपने  श्रम  और  ईश्वर  की  कृपा  से  उस  खांडव  वन  को  इन्द्रप्रस्थ  में  बदल  दिया  l  इन्द्रप्रस्थ  का  वैभव  , कहते  हैं  उसे  विश्वकर्मा  ने  बनाया  था  ,  इसे  देखकर  तो  दुर्योधन  जलभुन  गया  l  जिन  पांडवों  को  वह  दीन -हीन  और  अपनी  दया  पर  पलने  वाला  देखना  चाहता  था  ,  उनका  यह  वैभव  उससे  देखा  नहीं  जा  रहा  था  l  दुर्योधन  हस्तिनापुर  के  विशाल  साम्राज्य  का  युवराज  था  ,  संसार  के  सारे  सुख  थे  उसके  पास   लेकिन   अहंकार  और  ईर्ष्या  ने  उसकी  बुद्धि  को  भ्रष्ट  कर  दिया   l  वह  मामा  शकुनि  के  साथ  मिलकर  षड्यंत्र  रचने  लगा  कि  कैसे  पांडवों  को  इन्द्रप्रस्थ  से  बाहर  निकाल  दिया  जाए  l  पांडवों  ने  अपनी  मेहनत  से  कैसे  खांडव  वन   से  इन्द्रप्रस्थ  बनाया  था  ,  उस  पर  भी  उसका  कब्ज़ा  हो  जाए  l  ----- आगे  पूरी  कथा  है  कैसे  चौसर   खेलने  के  लिए  युधिष्ठिर  को  आमंत्रित  किया   फिर  अपमानित  और  पराजित  कर   उन्हें  तेरह  वर्ष  के  लिए  वनवास  दिया  ,  इस  अन्याय  के  विरुद्ध  महायुद्ध  तो  होना  ही  था  l  यही  वर्तमान  युग  का  सबसे  बड़ा  संकट  है   l कोई    अपने  सुख  से  सुखी  नहीं  है  l   दूसरे  का  सुख  देखकर  लोग  दुःखी  है   और  केवल  दु:खी  ही  नहीं  है  , वे  साम , दाम , दंड , भेद  हर  तरीके  से  उसके  सुख  को  , उसके  हक  को  छीनना  चाहते  हैं  l  यही  हाल  राष्ट्रों  का  है  ,  जिसके  पास  शक्ति  है   वह  चाहता  है  सारे  संसार  में  उसका  ही  साम्राज्य  हो  ,  दूसरे  राष्ट्रों  की  कृषि , शिक्षा , चिकित्सा , मनोरंजन  आदि  सभी  क्षेत्रों  और  यहाँ  तक  कि  लोगों  के  मन  पर  भी  उसका  कब्जा  हो  जाये  l  जब  भी  और  जहाँ  भी  ऐसी  अति  होती  है   तो  शिवजी  का  तीसरा  नेत्र  खुल  जाता  है  ,  भगवान  का  सुदर्शन  चक्र  क्रियाशील  हो  जाता  है  ----- यही  महाभारत  है  l  जब  मनुष्य  के  भीतर  लालच , स्वार्थ , कामना , अहंकार  ---जैसी  दुष्प्रवृत्तियों  का  महाभारत   का  अंत  होगा  तभी  संसार  में  शांति  होगी  l