महाभारत का जो युद्ध था वह राज परिवार तक ही सीमित था लेकिन कलियुग में दुर्बुद्धि का ऐसा प्रकोप है कि अब ये घर -घर की कहानी है ---- महाभारत का ही प्रसंग है --- महाराज पांडू रोगग्रस्त थे , जब उन्हें ऋषि ने श्राप दे दिया तो वे बहुत निराश हो गए और राजपाट धृतराष्ट्र को सौंपकर अपनी दोनों पत्नियों के साथ जंगल में चले गए l कुछ समय बाद श्राप की वजह से महाराज पांडू की मृत्यु हो गई l इस अवधि में दुर्योधन आदि कौरवों को राजसुख का अहंकार हो गया था , वे सोचते थे की हस्तिनापुर केवल उनका है , पितृहीन पांडव दीन -हीन स्थिति में उनके गुलाम और उनकी दया के पात्र बन कर रहे l उन्हें पांडवों का सुख बर्दाश्त नहीं होता था l उस राजसुख पर पांडवों का भी हक था l दुर्योधन की जिद के आगे धृतराष्ट्र मोह में अंधे थे l पितामह के समझाने पर उन्होंने पांडवों को खांडव वन का प्रदेश दे दिया l यह क्षेत्र जंगली और जहरीले जानवरों से भरा हुआ सघन वन था l पांडवों ने अपने श्रम और ईश्वर की कृपा से उस खांडव वन को इन्द्रप्रस्थ में बदल दिया l इन्द्रप्रस्थ का वैभव , कहते हैं उसे विश्वकर्मा ने बनाया था , इसे देखकर तो दुर्योधन जलभुन गया l जिन पांडवों को वह दीन -हीन और अपनी दया पर पलने वाला देखना चाहता था , उनका यह वैभव उससे देखा नहीं जा रहा था l दुर्योधन हस्तिनापुर के विशाल साम्राज्य का युवराज था , संसार के सारे सुख थे उसके पास लेकिन अहंकार और ईर्ष्या ने उसकी बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया l वह मामा शकुनि के साथ मिलकर षड्यंत्र रचने लगा कि कैसे पांडवों को इन्द्रप्रस्थ से बाहर निकाल दिया जाए l पांडवों ने अपनी मेहनत से कैसे खांडव वन से इन्द्रप्रस्थ बनाया था , उस पर भी उसका कब्ज़ा हो जाए l ----- आगे पूरी कथा है कैसे चौसर खेलने के लिए युधिष्ठिर को आमंत्रित किया फिर अपमानित और पराजित कर उन्हें तेरह वर्ष के लिए वनवास दिया , इस अन्याय के विरुद्ध महायुद्ध तो होना ही था l यही वर्तमान युग का सबसे बड़ा संकट है l कोई अपने सुख से सुखी नहीं है l दूसरे का सुख देखकर लोग दुःखी है और केवल दु:खी ही नहीं है , वे साम , दाम , दंड , भेद हर तरीके से उसके सुख को , उसके हक को छीनना चाहते हैं l यही हाल राष्ट्रों का है , जिसके पास शक्ति है वह चाहता है सारे संसार में उसका ही साम्राज्य हो , दूसरे राष्ट्रों की कृषि , शिक्षा , चिकित्सा , मनोरंजन आदि सभी क्षेत्रों और यहाँ तक कि लोगों के मन पर भी उसका कब्जा हो जाये l जब भी और जहाँ भी ऐसी अति होती है तो शिवजी का तीसरा नेत्र खुल जाता है , भगवान का सुदर्शन चक्र क्रियाशील हो जाता है ----- यही महाभारत है l जब मनुष्य के भीतर लालच , स्वार्थ , कामना , अहंकार ---जैसी दुष्प्रवृत्तियों का महाभारत का अंत होगा तभी संसार में शांति होगी l