लघु कथा ---- दो भाइयों के पास समुचित धन था l परलोक सुधारने के उदेश्य से दोनों ने तीर्थयात्रा पर जाने एवं दान करने का निर्णय लिया l धन की आवश्यकता किसे है और किसे नहीं , इसका विवेक न रखकर , वे धन लुटाते रहे l जब लौट रहे थे तो देखा कि एक व्यक्ति ठंड से सिकुड़ रहा है l उनके पास लौटने भर का धन था शेष वे लुटा चुके थे लेकिन वे कीमती वस्त्र पहने और शाल ओढ़े थे , पर यह विवेक न था कि अब भी कुछ जरूरतमंद को दिया जा सकता है l इसी बीच देखा कि एक निर्धन व्यक्ति उस राह से गुजरा l ठंड से सिकुड़ते व्यक्ति को उसने अपनी ऊनी चादर ओढ़ा दी और चला गया l दोनों भाई एक दूसरे को देख रहे थे l छोटा भाई बोला ---- " भाई ! लगता है इसका दान हमारे दान से श्रेष्ठ है l इसकी तुलना में हमारा सारी सम्पत्ति लुटाना व्यर्थ चला गया l " उन्हें समझ आया कि दान सुपात्र को दिया जाए , तभी सार्थक होता है l