9 June 2025

WISDOM -----

  पुराणों  में  देवताओं  और  असुरों  के  बीच  संघर्ष   की  अनेक  कथाएं  हैं   l  युगों  से  अच्छाई  और  बुराई  में , देवता  और  असुरों  में  संघर्ष  चला  आ  रहा  है   जिनमें  अंत  में  विजय  देवताओं  की   होती  है  ,  सत्य  और  धर्म  ही  विजयी  होता  है  l  उस  युग  में   दैवीय  गुणों  से  संपन्न  लोग  बहुत  थे  ,  वे  संगठित  भी  थे  और  उनका  आत्मिक  बल  बहुत  अधिक  था   इसलिए  वे  असुरों  से  मुकाबला  कर  उन्हें  पराजित  कर  देते  थे  l  कलियुग  की  स्थिति  बिलकुल  भिन्न  है   l  अब  सत्य  और  धर्म  पर  चलने  वाले  , दैवीय  गुणों  से  संपन्न  लोगों  की  संख्या  बहुत  कम  है  ,  वे  संगठित  भी  नहीं  हैं  l  आसुरी  प्रवृत्ति  के  लोग  उन्हें  चैन  से  जीने  नहीं  देते   फिर  अपने  परिवार  की  खातिर   उन्हें  सत्ता  से  भी  समझौता  करना  पड़ता  है  l  इसलिए  इस  युग  में  पहले  जैसा  देवासुर  संग्राम  संभव  ही  नहीं  है  l  आसुरी  प्रवृत्ति  का  साम्राज्य  सम्पूर्ण  धरती  पर  है  ,  मुट्ठी  भर  देवता  उनका  क्या  बिगाड़  लेंगे  ?   लेकिन  असुरता  का  अंत  तो  होना  ही  है  , अन्यथा  यह  धरती  घोर  अंधकार  में  डूब  जाएगी  l  आसुरी  प्रवृत्ति  का  अंत  कैसे  हो  ?  इसका  संकेत  भगवान  ने  द्वापर  युग  के  अंतिम  वर्षों  में  ही  दे  दिया  था  l  किसी  कुल  या  किसी  विशेष   खानदान    में  जन्म  लेने  से  कोई  भी  देवता  या  असुर  नहीं  है  l  ईश्वर  ने  बताया  कि  मनुष्य  अपने  कर्मों  से  देवता  या  दानव  कहलायेगा  l  व्यक्ति  का  श्रेष्ठ  चरित्र  ,  उसके  श्रेष्ठ  कर्म  उसके  देवत्व  का  प्रमाण  होंगे  l   अब  दैवीय  गुणों  से  संपन्न  किसी  को  भी  असुरता   से   संघर्ष  की  जरुरत  नहीं  है  l  अपने  श्रेष्ठ  कर्मों  से  मनुष्य  के  पास  नर  से  नारायण  बनने  की   संभावना  है  l  यह  मार्ग  सबके  लिए  खुला  है  l    जो  लोग  अपनी  दुष्प्रवृत्तियों  से  उबरना  ही  नहीं  चाहते ,  अति  के  भोग -विलास  के  कारण   उनका  चारित्रिक  पतन  हो  गया  है  ,  वे  अपने  ही  दुर्गुणों  के  कारण  आपस  में  ही  लड़कर  नष्ट  हो  जाएंगे  l  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  अपने  ही  कुल  के  उदाहरण  से  संसार  को  समझाया  कि  स्वयं  भगवान  श्रीकृष्ण  के  वंशज  होने  के  बावजूद   अति  के  सुख -सम्पन्नता  के  कारण  पूरा  यादव  वंश  भोग  विलास  में  डूब  गया  था  ,  उनका  चारित्रिक  पतन  हो  गया  था   इसलिए  पूरा  यादव  वंश  आपस  में  ही  लड़ -भिड़कर  नष्ट  हो  गया   और  द्वारका  समुद्र  में  डूब  गई  l  देवता  या  असुर  बनना  अब  मनुष्य  के  हाथ  में  है  ,  हमें  निर्णय  लेना  है  ,  चयन  का  अधिकार  प्रत्येक  को  है  l