8 June 2025

WISDOM -------

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- "जिस  प्रकार  सूखे  बाँस  आपस  की  रगड़  से  ही  जलकर  भस्म  हो  जाते  हैं  ,  उसी  प्रकार  अहंकारी  व्यक्ति   आपस  में  टकराते  हैं   और  कलह  की  अग्नि  में  जल  मरते  हैं  l  "   किसी  न  किसी  उदेश्य  के  लिए  ये  अहंकारी  संगठित  हो  जाते  हैं  , अपना  एक  गुट  बना  लेते  हैं  l  इनका  अहंकार  चरम  पर  होता  है  ,  इनका  उदेश्य  किसी  का  हित  करना  नहीं  होता  ,  ये  अपने  स्वार्थ  के  लिए  और  विभिन्न  तरीकों  से  अपने  अहंकार  को  पोषित  करने  के  लिए  संगठित  होते  हैं  l  जब  तक  इनके  उदेश्य  पूरे  होते  हैं  , ये  संगठित  रहते  हैं  लेकिन  जब  भी  कभी  किसी  के  अहंकार  को  चोट  पहुँचती  है  ,  तब  इनमें  फूट  पड़   जाती  है  ,  फिर  आपसी  कलह  से  ही  इनका  अंत  होता  है  l  रावण , कंस , दुर्योधन  का  अहंकार   मिटाने  के  लिए  भगवान  को  धरती  पर  आना  पड़ा  l  लेकिन  कलियुग  में  अहंकारी  स्वयं  को  ही  भगवान  समझते  हैं   इसलिए  अब  ईश्वर  विधान  रचते  हैं  ,  जिससे  ये  नकली  भगवान    आपस  में  लड़कर  ,   अपने  ही  कुकर्मों  के  बोझ  तले  दबकर   मृतक  समान  हो  जाते  हैं  l  कलियुग  में  इन  अहंकारियों  का  अंत  करने  भगवान  इसलिए  भी  नहीं  आते  क्योंकि   ईश्वर  के  हाथों  जिनका  अंत  होता  है  , उनकी  मुक्ति  हो  जाती  है  l  इस  युग  के  अहंकारी  इतने  पापकर्म  करते  हैं   कि  ईश्वर  उन्हें  मुक्ति  नहीं  देते  ,  उन्हें  तो  हजारों  वर्षों  तक  भूत , प्रेत  , पिशाच  की  योनि  में  भटकना  पड़ता  है  l  ऐसे  लोग  जीवित  रहते  हुए  अपने  अहंकार  के  नशे  में   लोगों  को  सताते  हैं   फिर  मरकर  भूत -प्रेत  बनकर  सताते  हैं  l  धरती  माता  के  लिए  ऐसे  लोग  बड़े  कष्टकारी  हैं  l