17 April 2025

WISDOM -----

   एक  दिन  महाराज  सुदास  के  पुत्र  कल्याणपाद  आखेट  कर  के  राजमहल  लौट  रहे  थे l  मार्ग  में  एक  तंग  पुलिया  पड़ी  ,  जिस  पर  से  एक  समय  में  एक  ही  व्यक्ति  निकल  सकता  था  l  उस  मार्ग  पर  दूसरी  ओर  से   ऋषि  वसिष्ठ  के  पुत्र   शक्ति  मुनि  आ  रहे  थे  l  दोनों  ही  हठधर्मिता  के  कारण  पुलिया  के   दोनों  सिरों  पर  खड़े  रहे   और  दूसरे  को  निकलने  का  स्थान  नहीं  दिया  l  बहुत  देर  तक  ऐसा  होने  पर  शक्ति  मुनि  को  क्रोध  आ  गया   और  उन्होंने  कल्याणपाद  को   राक्षस  बन  जाने  का  शाप  दे  दिया  l  राक्षस  बनते  ही  कल्याणपाद  ने  शक्ति  मुनि  का  ही  भक्षण  कर  लिया  l  उस  समय  शक्ति  मुनि  की  पत्नी  गर्भवती  थी  ,  कुछ  समय  बाद  उसने  पराशर  मुनि  को  जन्म  दिया  l  महर्षि  वसिष्ठ  ने  कल्याणपाद  को  पुत्रहंता  होने  पर  भी   राक्षस  शरीर  के  शाप  से  मुक्त  कर  दिया  l  जब  पराशर  मुनि  बड़े  हुए  और  उन्हें  अपने  पिता  की  मृत्यु  के  कारण  का  पता  चला   तो  वे  क्रोधित  हो  उठे  और   पुन:  कल्याणपाद  से  प्रतिशोध  लेने  को  तैयार  हो  गए  l  महर्षि  वसिष्ठ  ने  जब   अपने  पौत्र  को  प्रतिशोध  की  आग  में  जलते  देखा   तो   उन्हें  बुलाकर  समझाया  ---- "  पुत्र  !  क्रोध  करना  शूरवीरता  का  नहीं , मानवीय  दुर्बलता  का  प्रतीक  है  l  ऐसा  नहीं  है  कि  पुत्र  की  मृत्यु  का  दरद  मुझे  न  हुआ  हो   और  मैं  कल्याणपाद  को  सजा  देने  की  सामर्थ्य  न  रखता  हूँ  ,  परन्तु  मैंने  यह  अनुभव  किया  कि  किसी  और  का  जीवन  हरण  करने  से  मेरे  पुत्र  को  लौटा  पाना  संभव  नहीं  है  l  क्षमा  करने  के  लिए  ज्यादा  बड़े  ह्रदय  की  आवश्यकता  है  l "  महर्षि  वसिष्ठ  की  बात  सुनकर   पराशर  मुनि  का  ह्रदय  बदल  गया  l