असुरता को मिटाने के लिए अध्यात्म की , दैवी शक्तियों की आवश्यकता है l व्यक्ति का जन्म चाहे किसी भी वंश में हो , वह अपनी दूषित प्रवृतियों के कारण असुर कहलाता है l रावण ऋषि का पुत्र था लेकिन उसकी प्रवृतियां दूषित थीं इसलिए वह असुर कहलाया l इस असुरता का अंत भगवान राम ने किया l उसी कुल में पैदा हुआ रावण का भाई विभीषण रावण के बिलकुल विपरीत था , अत्याचारी नहीं था , उसे भगवान राम ने शरण दी l महाभारत का एक पात्र है --घटोत्कच l पांडव पक्ष का था भीम और हिडिम्बा का पुत्र था l वह आसुरी , मायावी तरीके से युद्ध करना जानता था , रात्रि में उसकी ये शक्तियां और प्रखर हो जाती थीं l उसकी असुरता का अंत कर्ण ने उस दैवी शक्ति से किया जो देवराज इंद्र ने उसे दी थी l उस युग की मायावी शक्तियों का ही एक रूप कलियुग में तंत्र , जादू - टोना ------ आदि है l ऐसा करने - कराने वाले आसानी से पकड़े नहीं जाते इसलिए अनेक लोग ईर्ष्या -द्वेष , स्वार्थ आदि अनेक कारणों से इन नकारात्मक शक्तियों का प्रयोग करते हैं l संसार में कायरता बढ़ जाने के कारण लोग पीठ पीछे , छुपकर वार करते हैं l यही असुरता है l असुरता का अंत हमेशा ही भयानक होता है l ये असुरी शक्तियां व्यक्तियों के जीवन को तो अनेक समस्याओं से ग्रस्त कर देती हैं , इनसे पर्यावरण में नकारात्मक तत्व बढ़ जाते हैं l अशांति , तनाव , लाइलाज बीमारियाँ इसी का घातक परिणाम है l इस नकारात्मकता को पराजित करने के लिए भी दैवी शक्तियों की आवश्यकता है l