लोकमान्य तिलक से किसी ने पूछा -"कई बार आपकी बहुत निंदापूर्ण आलोचनाएँ होती हैं ,लेकिन आप तो कभी विचलित नहीं होते ।"उत्तर में उन्होंने कहा -"निन्दा ही क्यों कई बार लोग प्रशंसा भी करते हैं ।निन्दा करने वाले मुझे शैतान समझते हैं और प्रशंसक मुझे भगवान का दर्जा देते हैं ,लेकिन सच मैं जानता हूँ और वह यह कि मैं तो एक इनसान हूँ जिसमे थोड़ी कमियां हैं और थोड़ी अच्छाई है और मैं अपनी कमियों को दूर करने में लगा रहता हूँ ।लोकमान्य ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा -"जब अपनी जिंदगी को मैं ही अभी ठीक से नहीं समझ पाया तो भला दूसरे क्या समझेंगे ।इसलिए जितनी झूठ उनकी निन्दा है ,उतनी ही उनकी प्रशंसा है ।इसलिए मैं उन दोनों बातों की परवाह न करके अपने आपको और अधिक सँवारने -सुधारने की कोशिश करता रहता हूँ ।"
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