'थोथा चना बाजे घना '-अहंकारी अपनी प्रशंसा और दूसरों की निन्दा करने में लगे रहते हैं | उनपर उद्दंडता और दूसरों को नीचा दिखाने का भूत सदैव चढ़ा रहता है |
- एक नारियल का फल पेड़ के सर्वोच्च स्थान पर लगा था | उसने नदी के किनारे पड़े पत्थर को देखकर तिरस्कार पूर्वक कहा -"क्या जिंदगी है तुम्हारी भी | हर किसी की ठोकरें खाते हो ,जिस नदी के किनारे पड़े हो ,उसकी लहरें ही तुम्हे टक्कर मारती हैं | अपमान की भी हद होती है ,पर तुम तो बेशरम हो ,तुम्हे क्या !मुझे देखो ,मैं स्वाभिमान पूर्वक उन्नत स्थिति में बैठा मौज कर रहा हूं | यहां से सारी दुनिया का नजारा देखता हूं | तुम तो लगता है घिसते -घिसते ही मर जाओगे | "पत्थर ने चुपचाप बात सुन ली ,कुछ नहीं कहा | पत्थर घिसता रहा ,उसकी साधना अनवरत चलती रही | एक पुजारी उधर से निकले ,उन्होंने गोल आकार का वही पत्थर देखा और यह कहकर कि ये तो शालग्राम हैं ,उन्हें मंदिर में श्रद्धा के साथ स्थापित कर दिया | शाम को तेज आंधी चली ,घमंडी नारियल हवा के थपेड़ों से दूर जाकर गिरा और दो टुकड़े हो गया | किसी भक्त ने उसे लाकर शालग्राम के पास श्रद्धा सहित चढ़ा दिया | नारियल टूट तो गया पर उसका अहंकार गया नहीं था | नारियल की मुखमुद्रा देख शालग्राम बोल उठा -"नारियल !देखा ,घिसने का परिणाम | हम तो परिमार्जित होते -होते प्रभु के चरणों में आ गये ,यहां हमारी पूजा होती है | घमंड में मतवालों की दुर्गति ही होती है | नारियल आँसू बहा रहा था |
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