पंडित लेखराम जी आर्य समाज के मूर्द्धन्य विद्वान् थे | वे गांव -गांव घूमा करते और वेद उपनिषद पर प्रवचन देते | एक बार एक गांव में पंडितजी का प्रवचन चल रहा था कि एक डाकू अपने साथियों के साथ उनका प्रवचन सुनने आकर बैठ गया | लेखराम जी कह रहे थे कि 'कर्म चाहे शुभ हों या अशुभ मनुष्य को उनका फल अवश्य भोगना पड़ता है ।'बात डाकू के ह्रदय में छू गई | प्रवचन समाप्त होते ही डाकू ने लेखराम जी से पूछा कि क्या कर्म का विधान इतना प्रबल है ?क्या मुझे सचमुच अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ेगा ?लेखराम जी बोले कि कर्मफल का नियम शत -प्रतिशत सत्य है | जो कर्म तुमने किये हैं ,उनका परिणाम आज नहीं तो कल ,अवश्य भोगना पड़ेगा | डाकू बोला -"मैं तो लुटेरा हूँ ,मैंने न जाने कितनों को दर्द दिया ,तकलीफ पहुंचाई और कुकर्म किये | इनका परिणाम तो अशुभ ही होगा ?"पंडितजी बोले -"समय अभी हाथ से निकला नहीं है | तू ये सब छोड़ दे और धर्म का मार्ग पकड़ ले | "बस ,फिर क्या था ,डाकू ने उसी समय लेखराम जी से दीक्षा ली और तीर्थ यात्रा पर निकल पड़ा |
जो कार्य पुलिस और कानून का डर न करा सका ,वेदों के वचन और महापुरुष के सत्संग से क्षण भर में संपन्न हो गया |
जो कार्य पुलिस और कानून का डर न करा सका ,वेदों के वचन और महापुरुष के सत्संग से क्षण भर में संपन्न हो गया |
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