'प्रार्थना ह्रदय की ,अंत:करण की निश्छल पुकार है ,जो सीधे परमात्मा तक पहुंचती है और बदले में प्रार्थी को कृतकृत्य कर देती है | '
प्रार्थना ईश्वर से वार्तालाप करने की सर्वश्रेष्ठ आध्यात्मिक प्रणाली है जिसमे किसी मंत्र ,छंद और कर्मकांड की आवश्यकता नहीं पड़ती |
प्रार्थना पुकार है अस्तित्व के प्रति कि हे ईश्वर !आपका सहारा चाहिये ,प्रत्युतर भी इसी का मिलता है |
प्रार्थना वह मन:स्थिति है ,जिससे व्यक्ति शंका और संदेह के जाल से निकलकर श्रद्धा की भूमिका में प्रवेश करता है |
अपने अहं को गलाकर समर्पण की नम्रता स्वीकार करना और मनोविकारों को ठुकरा कर परमेश्वर का आदेश स्वीकार करने का नाम प्रार्थना है | इसमें यह संकल्प भी जुड़ा रहता है कि भावी जीवन परमेश्वर के निर्देश के अनुसार पवित्र और परमार्थी बनकर जिया जायेगा | ऐसी गहन अंत:करण से निकली हुई प्रार्थना ,जिसमे आत्म परिवर्तन की आस्था जुड़ी हो ,भगवान का सिंहासन हिला देती है |
प्रार्थना के द्वारा हम अपने अहंकार ,पाप ,कषाय -कल्मष एवं दुखों के अंधकार को छिन्न -भिन्न कर सकते हैं | मन को साधने एवं शिक्षित करने की सबसे पहली सीढ़ी प्रार्थना है | अपने किए हुए दुष्कर्मों के लिये पश्चाताप करना और दुबारा किसी तरह के पापकर्म में संलिप्त न होने के लिये संकल्प शक्ति की अभिवृद्धि के लिये ईश्वर से प्रार्थना करना सुधार का प्रथम सोपान है |
रवींद्रनाथ टैगौर की एक कविता जिसमे उन्होंने यह प्रार्थना की है --हे भगवान !जब हम आपसे मुसीबत से छुटकारा पाने के लिये प्रार्थना करें तो आप इनकार कर देना और हमसे कहना अपनी गलतियों से मुसीबत बुलाई है ,गलती ठीक करो | हे भगवान !जब हम आपसे संपति मांगे तो आप इनकार कर देना और यह कहना कि यदि अपनी कलाइयों और अक्ल का ठीक इस्तेमाल किया होता तो चैन की जिंदगी जी रहे होते | आप हमारी कोई मदद मत करना ,लेकिन यदि आप दया करते हों तो एक वरदान देना ---
कि जब हम पाप के पंक में गिर रहे हों तो हे ईश्वर !अपनी लंबी भुजाएं फैलाकर हमें रोक लेना ,ऊँचा उठा लेना ,बस और हमें कुछ नहीं चाहिये |
प्रार्थना ईश्वर से वार्तालाप करने की सर्वश्रेष्ठ आध्यात्मिक प्रणाली है जिसमे किसी मंत्र ,छंद और कर्मकांड की आवश्यकता नहीं पड़ती |
प्रार्थना पुकार है अस्तित्व के प्रति कि हे ईश्वर !आपका सहारा चाहिये ,प्रत्युतर भी इसी का मिलता है |
प्रार्थना वह मन:स्थिति है ,जिससे व्यक्ति शंका और संदेह के जाल से निकलकर श्रद्धा की भूमिका में प्रवेश करता है |
अपने अहं को गलाकर समर्पण की नम्रता स्वीकार करना और मनोविकारों को ठुकरा कर परमेश्वर का आदेश स्वीकार करने का नाम प्रार्थना है | इसमें यह संकल्प भी जुड़ा रहता है कि भावी जीवन परमेश्वर के निर्देश के अनुसार पवित्र और परमार्थी बनकर जिया जायेगा | ऐसी गहन अंत:करण से निकली हुई प्रार्थना ,जिसमे आत्म परिवर्तन की आस्था जुड़ी हो ,भगवान का सिंहासन हिला देती है |
प्रार्थना के द्वारा हम अपने अहंकार ,पाप ,कषाय -कल्मष एवं दुखों के अंधकार को छिन्न -भिन्न कर सकते हैं | मन को साधने एवं शिक्षित करने की सबसे पहली सीढ़ी प्रार्थना है | अपने किए हुए दुष्कर्मों के लिये पश्चाताप करना और दुबारा किसी तरह के पापकर्म में संलिप्त न होने के लिये संकल्प शक्ति की अभिवृद्धि के लिये ईश्वर से प्रार्थना करना सुधार का प्रथम सोपान है |
रवींद्रनाथ टैगौर की एक कविता जिसमे उन्होंने यह प्रार्थना की है --हे भगवान !जब हम आपसे मुसीबत से छुटकारा पाने के लिये प्रार्थना करें तो आप इनकार कर देना और हमसे कहना अपनी गलतियों से मुसीबत बुलाई है ,गलती ठीक करो | हे भगवान !जब हम आपसे संपति मांगे तो आप इनकार कर देना और यह कहना कि यदि अपनी कलाइयों और अक्ल का ठीक इस्तेमाल किया होता तो चैन की जिंदगी जी रहे होते | आप हमारी कोई मदद मत करना ,लेकिन यदि आप दया करते हों तो एक वरदान देना ---
कि जब हम पाप के पंक में गिर रहे हों तो हे ईश्वर !अपनी लंबी भुजाएं फैलाकर हमें रोक लेना ,ऊँचा उठा लेना ,बस और हमें कुछ नहीं चाहिये |
No comments:
Post a Comment