मनुष्य जीवन का अक्षय श्रंगार है -- आंतरिक विकास । ह्रदय की पवित्रता एक ऐसा प्रसाधन
है जो मनुष्य को बाहर -भीतर से एक ऐसी सुंदरता से ओत - प्रोत कर देता है , जिसका आकर्षण जन्म - जन्मांतर तक एक सा बना रहता है ।
ईसामसीह अपने शिष्यों के साथ यरूशलम पहुंचे । वहां के गिरिजाघर की शान-शौकत को देखकर वे बोले --" इसकी सारी भव्यता बेकार है । एक दिन ये गिरकर तबाह हो जायेगा । " उनकी बात सुनकर उनके शिष्य दुखी हो गये और उनसे कहने लगे --"आप प्रभु के घर के बारे में ऐसा क्यों सोचते हैं ?" ईसामसीह बोले --" मैं तुम्हे अपना ध्यान भगवान के उस मंदिर में लगाने को कहता हूँ , जो कभी नष्ट नहीं हो सकता । तुम्हारी अंतरात्मा प्रभु का शाश्वत निवास स्थान है । सारी दुनिया खत्म भी हो जाये तो भी तुम अपने प्रभु का दर्शन वहां हमेशा कर सकते हो ।"
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