' मन: स्थिति ही परिस्थितियों की जन्मदात्री है | '
यह अध्यात्म का मूल मर्म है | जो इस सूत्र पर विश्वास रखता है, वह संसार में कहीं भी रहते हुए अपनी आत्मशक्ति के सहारे अपने लिये अनुकूल वातावरण-परिस्थितियाँ बना लेगा | संत इमर्सन कहते थे--" तुम मुझे नरक में भेज दो, मैं अपनी आत्मशक्ति के द्वारा वहां भी अपने लिये स्वर्ग बना लूँगा | "
चाहे कितनी ही भौतिक जगत की सुविधाएँ हों, चाहे वातावरण कितना ही हमारे अनुकूल साधन हमें जुटाकर दे दे, यदि हमारी मन: स्थिति कमजोर है तो वे हमारा कुछ भी लाभ न कर सकेंगे , वे हमें अपयश की ओर, वासनात्मक जीवन की ओर, बिगड़ती आदतों से परावलंबन की ओर धकेल देंगे | भोगवादी मानसिकता, अनुकूल सुविधाओं की बहुलता में क्यों इतने मनोरोग पनप रहें हैं ? क्यों मन अशांत है, डिप्रेशन की मन: स्थिति वाले रोगियों की संख्या और आत्मघात की दर क्यों बढ़ती जा रही है ? इन सबका एक ही उत्तर है--- अपनी आत्मशक्ति पर भरोसा न करना और परिस्थितियों की विवशताओं का रोना रोना |
भगवान उन्ही की मदद करते हैं जो अपनी मदद स्वयं करते हैं | हमें अपने प्रचंड मनोबल एवं अनंत शक्तिसंपन्न आत्मसत्ता पर भरोसा रख उसी का आश्रय लेना चाहिये | बाह्य अवस्थाओं, वातावरण और परिस्थितियों पर अपनी निर्भरता समाप्त करनी चाहिये |
यह अध्यात्म का मूल मर्म है | जो इस सूत्र पर विश्वास रखता है, वह संसार में कहीं भी रहते हुए अपनी आत्मशक्ति के सहारे अपने लिये अनुकूल वातावरण-परिस्थितियाँ बना लेगा | संत इमर्सन कहते थे--" तुम मुझे नरक में भेज दो, मैं अपनी आत्मशक्ति के द्वारा वहां भी अपने लिये स्वर्ग बना लूँगा | "
चाहे कितनी ही भौतिक जगत की सुविधाएँ हों, चाहे वातावरण कितना ही हमारे अनुकूल साधन हमें जुटाकर दे दे, यदि हमारी मन: स्थिति कमजोर है तो वे हमारा कुछ भी लाभ न कर सकेंगे , वे हमें अपयश की ओर, वासनात्मक जीवन की ओर, बिगड़ती आदतों से परावलंबन की ओर धकेल देंगे | भोगवादी मानसिकता, अनुकूल सुविधाओं की बहुलता में क्यों इतने मनोरोग पनप रहें हैं ? क्यों मन अशांत है, डिप्रेशन की मन: स्थिति वाले रोगियों की संख्या और आत्मघात की दर क्यों बढ़ती जा रही है ? इन सबका एक ही उत्तर है--- अपनी आत्मशक्ति पर भरोसा न करना और परिस्थितियों की विवशताओं का रोना रोना |
भगवान उन्ही की मदद करते हैं जो अपनी मदद स्वयं करते हैं | हमें अपने प्रचंड मनोबल एवं अनंत शक्तिसंपन्न आत्मसत्ता पर भरोसा रख उसी का आश्रय लेना चाहिये | बाह्य अवस्थाओं, वातावरण और परिस्थितियों पर अपनी निर्भरता समाप्त करनी चाहिये |
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