दुर्लभ है मनुष्य का जीवन पाना | इससे भी दुर्लभ है संपूर्ण स्वस्थ होना | यदि यह भी संभव हो तो दुर्लभ है शिक्षित और विचारशील होना | यदि किसी को यह भी मिल जाये तो फिर दुर्लभ है, विज्ञान और अध्यात्म में एक साथ आस्थावान होकर वैज्ञानिक अध्यात्म के प्रयोगों के लिये स्वयं को समर्पित करना | यदि कोई ऐसा निष्काम दिव्य जीवन जीने लगे, तो उसके स्वागत में न केवल देवदूत स्वर्ग का द्वार खोलते हैं, बल्कि स्वयं परमेश्वर अपनी बांहे पसार कर उसे स्वयं से एकाकार कर लेते हैं |
' इनडोमिटेबल स्प्रिट ' हिंदी अनुवाद 'अदम्य साहस ' में एक घटना का उल्लेख है------
प्रो. विक्रम साराभाई भारत में भूमध्य रेखा के समीप किसी क्षेत्र में अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र स्थापित करने के लिये स्थान खोज रहे थे | बहुत खोज-बीन के बाद केरल राज्य में थुंबा नामक स्थान को उन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र के लिये चुना | जब वे इस स्थान पर पहुंचे तो देखा कि हजारों मछुआरे इस क्षेत्र में गाँव में रह रहे थे | वहां बहुत सुंदर प्राचीन सेंट मेगडालेने का गिरिजाघर और पादरी का घर भी था | इस स्थान को पाने के लिये अनेक अधिकारियों और राजनेताओं से बात की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली |
अंतत: इस समस्या के हल के लिये वे बिशप ऑफ त्रिवेंद्रम, रेवरेंड फादर डॉ, पीटर परेरा से मिले | वह 1962 का एक दिन शनिवार था | उनकी बातें सुनकर पादरी मुस्कराए | अगले दिन रविवार की प्रार्थना के बाद उन्होंने वहां उपस्थित श्रद्धालुओं से कहा----" मेरे बच्चों ! मेरे साथ यहां एक सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक बैठे हैं, जो अपने अंतरिक्ष अनुसंधान के लिये हमारे गिरिजाघर और मेरे घर वाली जगह लेना चाहते हैं | मेरे बच्चों ! विज्ञान और अध्यात्म, दोनों ही लोगों के भले के लिये परमेश्वर का आशीर्वाद चाहते हैं | बच्चों ! क्या हम वैज्ञानिक केंद्र के लिये उन्हें यह आध्यात्मिक केंद्र सौंप सकते हैं ? " इस पर सभी ने एक स्वर में कहा---' आमीन !' फिर देखते-देखते सब ओर 'आमीन ' का स्वर गूँज उठा |
इस तरह वैज्ञानिक प्रयास एवं आध्यात्मिक संवेदना के मिलन से भारत में अंतरिक्ष युग का प्रारंभ हुआ |
' इनडोमिटेबल स्प्रिट ' हिंदी अनुवाद 'अदम्य साहस ' में एक घटना का उल्लेख है------
प्रो. विक्रम साराभाई भारत में भूमध्य रेखा के समीप किसी क्षेत्र में अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र स्थापित करने के लिये स्थान खोज रहे थे | बहुत खोज-बीन के बाद केरल राज्य में थुंबा नामक स्थान को उन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र के लिये चुना | जब वे इस स्थान पर पहुंचे तो देखा कि हजारों मछुआरे इस क्षेत्र में गाँव में रह रहे थे | वहां बहुत सुंदर प्राचीन सेंट मेगडालेने का गिरिजाघर और पादरी का घर भी था | इस स्थान को पाने के लिये अनेक अधिकारियों और राजनेताओं से बात की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली |
अंतत: इस समस्या के हल के लिये वे बिशप ऑफ त्रिवेंद्रम, रेवरेंड फादर डॉ, पीटर परेरा से मिले | वह 1962 का एक दिन शनिवार था | उनकी बातें सुनकर पादरी मुस्कराए | अगले दिन रविवार की प्रार्थना के बाद उन्होंने वहां उपस्थित श्रद्धालुओं से कहा----" मेरे बच्चों ! मेरे साथ यहां एक सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक बैठे हैं, जो अपने अंतरिक्ष अनुसंधान के लिये हमारे गिरिजाघर और मेरे घर वाली जगह लेना चाहते हैं | मेरे बच्चों ! विज्ञान और अध्यात्म, दोनों ही लोगों के भले के लिये परमेश्वर का आशीर्वाद चाहते हैं | बच्चों ! क्या हम वैज्ञानिक केंद्र के लिये उन्हें यह आध्यात्मिक केंद्र सौंप सकते हैं ? " इस पर सभी ने एक स्वर में कहा---' आमीन !' फिर देखते-देखते सब ओर 'आमीन ' का स्वर गूँज उठा |
इस तरह वैज्ञानिक प्रयास एवं आध्यात्मिक संवेदना के मिलन से भारत में अंतरिक्ष युग का प्रारंभ हुआ |
No comments:
Post a Comment