यवन हरिदास मुस्लिम खानदान में जन्मे थे, पर बाल्यकाल से ही कृष्ण भक्त थे | स्वयं को दीन-हीन मानने के कारण चैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन में वे सबसे पीछेबैठते | जैसे ही चैतन्य महाप्रभु को पता चला, उनने उन्हें पास बुलाकर कहा---" तुम स्वयं को अशुद्ध कदापि न मानो | तुम्हारी देह मेरी अपेक्षा भी पवित्र है |" चैतन्य महाप्रभु जब पुरी धाम चले गये तो वहां भी उनने हरिदास के लिये एक कुटिया बनवा दी थी |
जीवन की अंतिम श्वास तक वे वहीँ रहकर लोगों को भगवद्भक्ति का उपदेश देते रहे | हजारों पतितों को दुष्कर्मो से छुड़ाकर सन्मार्ग पर उनने चलाया अनगिनत लोगों को उनने जीवन की राह दिखाई | भारतीय संस्कृति और अध्यात्म के लिखे की गई उनकी सेवा चिरस्मरणीय रहेगी |
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