मनुष्य को अपनी सामर्थ्य पर विश्वास रखना चाहिये और उसी के विकास के लिये निरंतर प्रयत्नशील होना चाहिये | अपनी सामर्थ्य चुकने पर ही परमात्मा का आश्रय लेना चाहिये |
आस्तिकता का अर्थ है---ईश्वर-विश्वास | आस्तिकता व्यक्ति को सन्मार्ग पर चलाती है ।
सच्चा आस्तिक वही है जो ईश्वर को सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में उतारे । आस्तिकता भी ऐसी हो जो व्यक्ति को पलायनवादी न बनाये, बल्कि कर्मयोगी,
कर्तव्यपरायण बनाये ।
यदि व्यक्ति सच्चा आस्तिक है तो वह कर्तव्य पालन को सबसे पहले महत्व देगा । यह कर्तव्य शरीर के प्रति है कि उसे भगवान का मंदिर समझा जाये । प्रत्येक कार्य को पूजा समझकर मन को निष्पाप व कलुषरहित रखा जाये ।
आस्तिकता का अर्थ है---ईश्वर-विश्वास | आस्तिकता व्यक्ति को सन्मार्ग पर चलाती है ।
सच्चा आस्तिक वही है जो ईश्वर को सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में उतारे । आस्तिकता भी ऐसी हो जो व्यक्ति को पलायनवादी न बनाये, बल्कि कर्मयोगी,
कर्तव्यपरायण बनाये ।
यदि व्यक्ति सच्चा आस्तिक है तो वह कर्तव्य पालन को सबसे पहले महत्व देगा । यह कर्तव्य शरीर के प्रति है कि उसे भगवान का मंदिर समझा जाये । प्रत्येक कार्य को पूजा समझकर मन को निष्पाप व कलुषरहित रखा जाये ।
No comments:
Post a Comment