क्रूरता, हिंसा, तनाव और विग्रह से भरे आज के समाज में भगवान बुद्ध के संदेश स्नेह-शीतलता का आश्वासन हैं । उनकी सरल, व्यवहारिक और संतप्त मन को छू लेने वाली शिक्षाएँ व्यक्ति को समाधान की ओर ले जाती हैं ।
महाविजित नामक एक राजा एक महायज्ञ की योजना बना रहा था , उसके राज्य में भारी उपद्रव हो रहे थे, बटमारियाँ होती एवं चोरी-चकारी होती । महाविजित ने अपने अमात्य को बुद्ध की सम्मति जानने के लिए भेजा । भगवान बुद्ध ने महाविजित को परामर्श दिया-- " राज्य में सुख-शांति के लिए प्रयत्न करना प्रथम आवश्यक है । राज्य में उपद्रवों की शांति के लिए किये गये यज्ञ के फल निश्चित मिलेंगे । उसके लिए प्रजा पर न तो कर लगाना चाहिए और न ही उपहार ग्रहण करना चाहिए ।
महाविजित ने राज्य में न्याय और सुरक्षा के लिए सुनिश्चित उपाय किये, उसके बाद एक विराट यज्ञ किया । भगवान बुद्ध की बताई विधि के अनुसार राजा ने किसी से उपहार आदि नहीं लिए । जो लोग उपहार लेकर आये उनसे कहा कि इस धन को लोकहित में खर्च करना चाहिए । धनिकों ने अपने उपहारों का उपयोग यज्ञशाला के चारों ओर धर्मशालाएँ खुलवाने, गरीबों को दान देने, रोगियों के लिए चिकित्सालय खोलने और अनाथों के लिए शरण की व्यवस्था में किया ।
इस आयोजन की सूचना भगवान बुद्ध को मिली तो उन्होंने " बहुत अच्छा यज्ञ-बहुत अच्छा यज्ञ " कहकर महाविजित को आशीर्वाद भिजवाया ।
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