' मार्डन रिव्यू ' और 'प्रवासी ' नामक पत्र के संपादन के माध्यम से रामानंद जी जन-जन को बोध कराने, उचित-अनुचित का विवेक जगाने और विचारों में क्रांति लाने के लिए कृत-संकल्प थे ।
एक बार गंगा जी में नहाते हुए वे एक भँवर में फंस गये थे तब एक युवक ने अपनी जान जोखिम में डालकर उन्हे बचाया था, वे उसके प्रति कृतज्ञ थे ।
अपने कार्यालय में वे काम कर रहे थे , उस समय उसी युवक ने प्रवेश किया और उनसे कहा---" एक रचना आपके पत्र में छपवाना चाहता हूँ । " उन्होंने उसे गौर से पढ़ा और बहुत दुखी हो गये, बोले--- " यह मेरे पत्र में नहीं छप सकेगा मित्र । "
उसने कहा---- " क्यों नहीं छपेगा, क्या आप भूल गये----- " उन्होंने कहा--- " आप ने मेरी जान बचाई, मैं कृतज्ञ हूँ, किन्तु कर्तव्य की विवशता है । "
युवक ने पूछा--- " कौन सा कर्तव्य ? " उन्होंने कहा--- " कर्तव्य एक लेखक का, एक संपादक का । जिसके तहत जिम्मेदारी है कि समाज का पथ प्रदर्शन करूँ, मनुष्य को जीना सिखाऊँ । इसकी जगह मैं उसमे पशुता, वासना कैसे भड़का सकता हूँ । तुम स्वयं इसे गहराई से पढ़ो । "
युवक बोला-- " किन्तु मैंने आपके प्राण बचाये थे । "
रामानंद जी ने कहा--- " मैं तुम्हारे संग चलता हूँ, तुम मुझे गंगा में डुबो दो | " वे चलने को तैयार हो गये । युवक कों अपने कानो पर विश्वास नहीं हुआ बोला--- " क्या कर्तव्य जीवन से भी अधिक मूल्यवान है । ' उन्होंने कहा--- " कर्तव्य की वेदी पर अनेक जीवन अपनी आहुति देकर धन्य होते हैं, कर्तव्य पालन से ही आत्मगौरव और आत्मतृप्ति का लाभ मिलता है । जीवन तो एक न एक दिन समाप्त होना ही है । कृतज्ञता का मोल कर्तव्य की बलि नहीं अपितु जिसके प्रति कृतज्ञता उपजी है, उसका हित करना है । " युवक को सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ उसने कहा मुझसे भूल हुई, मैं लेखन सीखना चाहता हूँ । ' उनके विचारों ने अनेक व्यक्तियों के जीवन में क्रान्ति ला दी ।
एक बार गंगा जी में नहाते हुए वे एक भँवर में फंस गये थे तब एक युवक ने अपनी जान जोखिम में डालकर उन्हे बचाया था, वे उसके प्रति कृतज्ञ थे ।
अपने कार्यालय में वे काम कर रहे थे , उस समय उसी युवक ने प्रवेश किया और उनसे कहा---" एक रचना आपके पत्र में छपवाना चाहता हूँ । " उन्होंने उसे गौर से पढ़ा और बहुत दुखी हो गये, बोले--- " यह मेरे पत्र में नहीं छप सकेगा मित्र । "
उसने कहा---- " क्यों नहीं छपेगा, क्या आप भूल गये----- " उन्होंने कहा--- " आप ने मेरी जान बचाई, मैं कृतज्ञ हूँ, किन्तु कर्तव्य की विवशता है । "
युवक ने पूछा--- " कौन सा कर्तव्य ? " उन्होंने कहा--- " कर्तव्य एक लेखक का, एक संपादक का । जिसके तहत जिम्मेदारी है कि समाज का पथ प्रदर्शन करूँ, मनुष्य को जीना सिखाऊँ । इसकी जगह मैं उसमे पशुता, वासना कैसे भड़का सकता हूँ । तुम स्वयं इसे गहराई से पढ़ो । "
युवक बोला-- " किन्तु मैंने आपके प्राण बचाये थे । "
रामानंद जी ने कहा--- " मैं तुम्हारे संग चलता हूँ, तुम मुझे गंगा में डुबो दो | " वे चलने को तैयार हो गये । युवक कों अपने कानो पर विश्वास नहीं हुआ बोला--- " क्या कर्तव्य जीवन से भी अधिक मूल्यवान है । ' उन्होंने कहा--- " कर्तव्य की वेदी पर अनेक जीवन अपनी आहुति देकर धन्य होते हैं, कर्तव्य पालन से ही आत्मगौरव और आत्मतृप्ति का लाभ मिलता है । जीवन तो एक न एक दिन समाप्त होना ही है । कृतज्ञता का मोल कर्तव्य की बलि नहीं अपितु जिसके प्रति कृतज्ञता उपजी है, उसका हित करना है । " युवक को सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ उसने कहा मुझसे भूल हुई, मैं लेखन सीखना चाहता हूँ । ' उनके विचारों ने अनेक व्यक्तियों के जीवन में क्रान्ति ला दी ।
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