' मन को संतुलित करने के लिए किया हुआ प्रयत्न जीवन के सारे स्वरुप को ही बदल देता है । नरक को स्वर्ग में परिवर्तित करने की कुन्जी मनुष्य के हाथ में है । सोचने का तरीका यदि बदल डाले , बुराई में से भलाई और निराशा में से आशा की किरणे ढूंढने का अभ्यास करे तो रोता हुआ मनुष्य हँसते - हँसाते अपनी सभी समस्याओं को हल कर सकता है । '
भगवान बुद्ध वन को पार करते जा रहे थे , उनकी भेंट अंगुलिमाल डाकू से हुई । अंगुलिमाल ने बुद्ध से कहा ---- " आज आप ही मेरे शिकार होंगे । "
तथागत मुस्कराए , उन्होंने कहा --- ' दो क्षण का विलम्ब सहन कर सको तो मेरी एक बात सुन लो । 'डाकू ठिठक गया उसने कहा ----- ' कहिये , क्या कहना है । '
तथागत ने कहा ----- " सामने वाले पेड़ से तोड़कर एक पत्ता जमीन पर रख दो । "
डाकू ने वैसा ही किया । तथागत ने कहा ---- " अब इसे पुन: पेड़ में जोड़ दो । "
डाकू ने कहा ---- " यह कैसे संभव है । तोड़ना सरल है पर उसे जोड़ा नहीं जा सकता । "
बुद्ध ने गम्भीर मुद्रा में कहा ---- " वत्स ! इस संसार में मार - काट , तोड़ - फोड़ , उपद्रव और विनाश यह सभी सरल है । इन्हें कोई तुच्छ व्यक्ति भी कर सकता है । फिर तुम इसमें अपनी क्या महानता सोचते हो , किस बात का अभिमान करते हो ? बड़प्पन की बात निर्माण है विनाश नहीं । तुम विनाश के तुच्छ आचरण को छोड़कर निर्माण का महान कार्यक्रम क्यों नहीं अपनाते ? "
अंगुलिमाल के अंत:करण में शब्द तीर की तरह घुसते गये । कातर होकर उसने तथागत से पूछा ---- " इतने समय तक पापकर्म करने पर भी क्या मैं पुन: धर्मात्मा हो सकता हूँ ? "
तथागत बोले ---- " वत्स ! मनुष्य अपने विचार और कार्यों को बदल कर कभी भो पापों से पुण्य को ओर मुड़ सकता है l धर्म का मार्ग किसी के लिए भी अवरुद्ध नहीं है l तुम अपना द्रष्टिकोण बदलोगे तो सारा जीवन ही बदल जायेगा l विचार बदले तो मनुष्य बदला l अंगुलिमाल ने दस्यु कर्म छोड़कर प्रव्रजा ले ली और वह बुद्ध के प्रख्यात शिष्यों में से एक हुआ l
भगवान बुद्ध वन को पार करते जा रहे थे , उनकी भेंट अंगुलिमाल डाकू से हुई । अंगुलिमाल ने बुद्ध से कहा ---- " आज आप ही मेरे शिकार होंगे । "
तथागत मुस्कराए , उन्होंने कहा --- ' दो क्षण का विलम्ब सहन कर सको तो मेरी एक बात सुन लो । 'डाकू ठिठक गया उसने कहा ----- ' कहिये , क्या कहना है । '
तथागत ने कहा ----- " सामने वाले पेड़ से तोड़कर एक पत्ता जमीन पर रख दो । "
डाकू ने वैसा ही किया । तथागत ने कहा ---- " अब इसे पुन: पेड़ में जोड़ दो । "
डाकू ने कहा ---- " यह कैसे संभव है । तोड़ना सरल है पर उसे जोड़ा नहीं जा सकता । "
बुद्ध ने गम्भीर मुद्रा में कहा ---- " वत्स ! इस संसार में मार - काट , तोड़ - फोड़ , उपद्रव और विनाश यह सभी सरल है । इन्हें कोई तुच्छ व्यक्ति भी कर सकता है । फिर तुम इसमें अपनी क्या महानता सोचते हो , किस बात का अभिमान करते हो ? बड़प्पन की बात निर्माण है विनाश नहीं । तुम विनाश के तुच्छ आचरण को छोड़कर निर्माण का महान कार्यक्रम क्यों नहीं अपनाते ? "
अंगुलिमाल के अंत:करण में शब्द तीर की तरह घुसते गये । कातर होकर उसने तथागत से पूछा ---- " इतने समय तक पापकर्म करने पर भी क्या मैं पुन: धर्मात्मा हो सकता हूँ ? "
तथागत बोले ---- " वत्स ! मनुष्य अपने विचार और कार्यों को बदल कर कभी भो पापों से पुण्य को ओर मुड़ सकता है l धर्म का मार्ग किसी के लिए भी अवरुद्ध नहीं है l तुम अपना द्रष्टिकोण बदलोगे तो सारा जीवन ही बदल जायेगा l विचार बदले तो मनुष्य बदला l अंगुलिमाल ने दस्यु कर्म छोड़कर प्रव्रजा ले ली और वह बुद्ध के प्रख्यात शिष्यों में से एक हुआ l
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