' केवल स्वार्थ और मिथ्याभिमान से प्रेरित होकर किया गया काम कितना ही बड़ा क्यों न हो , वह न तो उस व्यक्ति को सुखी और संतुष्ट कर सकता है और न मानव समाज को ही कुछ दे सकता है l '
सिकन्दर का जीवन इसी सत्य को सिद्ध करता है l स्वयं को विश्व विजेता सिद्ध करने के लिए उसने हजारों आदमियों का रक्त बहाया था , कितनी ही माँगों का सिन्दूर पोंछ दिया , कितनी ही माताओं की गोद सूनी कर दी , कितने ही बच्चों को अनाथ कर दिया l सिकन्दर स्वयं इन विचारों से त्रस्त हो रहा था l उनसे मुक्त होने के लिए उसने शराब का सहारा लिया l भारत से लौटते समय वह बहुत पीने लगा था l लौटते हुए रास्ते में ही उसे निमोनिया हुआ और मर गया l
सिकन्दर केवल 33 वर्ष ही जी सका , उसने केवल 13 वर्ष राज्य किया l लेकिन विश्व विजय का पागलपन मस्तिष्क में बैठाये न तो स्वयं चैन से बैठा और न ही अपने सैनिकों को व दूसरे राजाओं को चैन से बैठने दिया l क्या इसी का नाम राज्य करना है ? किसी कवि ने ठीक ही कहा है ----
' न हुई हद सिकन्दरी न कारुं की चली , मौत का आ गया पैगाम कि चलते चलते l '
सिकन्दर का यह संकल्प और उसके लिए जुटाया गया साधन , श्रम , समय और जीवन किसी काम नहीं आया l एक कहानी बनकर रह गया l
सिकन्दर का जीवन इसी सत्य को सिद्ध करता है l स्वयं को विश्व विजेता सिद्ध करने के लिए उसने हजारों आदमियों का रक्त बहाया था , कितनी ही माँगों का सिन्दूर पोंछ दिया , कितनी ही माताओं की गोद सूनी कर दी , कितने ही बच्चों को अनाथ कर दिया l सिकन्दर स्वयं इन विचारों से त्रस्त हो रहा था l उनसे मुक्त होने के लिए उसने शराब का सहारा लिया l भारत से लौटते समय वह बहुत पीने लगा था l लौटते हुए रास्ते में ही उसे निमोनिया हुआ और मर गया l
सिकन्दर केवल 33 वर्ष ही जी सका , उसने केवल 13 वर्ष राज्य किया l लेकिन विश्व विजय का पागलपन मस्तिष्क में बैठाये न तो स्वयं चैन से बैठा और न ही अपने सैनिकों को व दूसरे राजाओं को चैन से बैठने दिया l क्या इसी का नाम राज्य करना है ? किसी कवि ने ठीक ही कहा है ----
' न हुई हद सिकन्दरी न कारुं की चली , मौत का आ गया पैगाम कि चलते चलते l '
सिकन्दर का यह संकल्प और उसके लिए जुटाया गया साधन , श्रम , समय और जीवन किसी काम नहीं आया l एक कहानी बनकर रह गया l
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