ऋषियों ने , आचार्य ने कहा है ---- कर्तव्य ही धर्म है , यही सच्चा कर्मयोग है , लेकिन यह विवेकपूर्ण होना चाहिए l
महाभारत काल में भीष्म पितामह की धर्म पर गहरी आस्था थी , वे समर्थ और शक्तिशाली योद्धा थे लेकिन धर्माचरण करने वाले भीष्म ने अत्याचार करने वाले , पांडवों के विरुद्ध हमेश षड्यंत्र रचने वाले दुर्योधन का , अधर्म का साथ दिया , द्रोपदी के चीर हरण पर मूक दर्शक बन सिर झुकाए बैठे रहे l अधर्म का साथ देकर न तो दुर्योधन की रक्षा कर सके और न स्वयं की l
इसी तरह कुलगुरु कृपाचार्य थे l कुलगुरु का कर्तव्य होता है --- कुल में धर्म की प्रतिष्ठा l कुल के सभी व्यक्ति धर्म का आचरण करें , शुभ कर्म करें l लेकिन धर्म के जानकार होते हुए भी वे कौरवों के अधर्म आचरण के मौन साक्षी रहे , उनका साथ त्यागने की हिम्मत नहीं जुटा सके l
इसी तरह कर्ण महान योद्धा और महादानी था लेकिन उसने भी मित्र मोह में अधर्म का आचरण करने वाले दुर्योधन का साथ दिया l महारानी द्रोपदी के चीर - हरण जैसी दुर्भाग्य पूर्ण घटना को भी रोकने का प्रयास उसकी वीरता ने नहीं किया , वह भी अधर्म के साथ खड़ा रहा l
इन सभी महारथियों का अत्याचार व अन्याय के सामने प्रतिक्रिया विहीन रहना , उन्हें अधर्म की कसौटी पर खड़ा कर देता है l
सामान्य अर्थ में पूजा - पाठ , कर्मकांड करने को धर्म कहा जाता है लेकिन यह करने की और धर्म की सार्थकता पीड़ा और पतन निवारण करना , सदभाव, सद्विचार और सत्कर्म करना है , अत्याचार और अन्याय से कमजोर की रक्षा करना है l
महाभारत काल में भीष्म पितामह की धर्म पर गहरी आस्था थी , वे समर्थ और शक्तिशाली योद्धा थे लेकिन धर्माचरण करने वाले भीष्म ने अत्याचार करने वाले , पांडवों के विरुद्ध हमेश षड्यंत्र रचने वाले दुर्योधन का , अधर्म का साथ दिया , द्रोपदी के चीर हरण पर मूक दर्शक बन सिर झुकाए बैठे रहे l अधर्म का साथ देकर न तो दुर्योधन की रक्षा कर सके और न स्वयं की l
इसी तरह कुलगुरु कृपाचार्य थे l कुलगुरु का कर्तव्य होता है --- कुल में धर्म की प्रतिष्ठा l कुल के सभी व्यक्ति धर्म का आचरण करें , शुभ कर्म करें l लेकिन धर्म के जानकार होते हुए भी वे कौरवों के अधर्म आचरण के मौन साक्षी रहे , उनका साथ त्यागने की हिम्मत नहीं जुटा सके l
इसी तरह कर्ण महान योद्धा और महादानी था लेकिन उसने भी मित्र मोह में अधर्म का आचरण करने वाले दुर्योधन का साथ दिया l महारानी द्रोपदी के चीर - हरण जैसी दुर्भाग्य पूर्ण घटना को भी रोकने का प्रयास उसकी वीरता ने नहीं किया , वह भी अधर्म के साथ खड़ा रहा l
इन सभी महारथियों का अत्याचार व अन्याय के सामने प्रतिक्रिया विहीन रहना , उन्हें अधर्म की कसौटी पर खड़ा कर देता है l
सामान्य अर्थ में पूजा - पाठ , कर्मकांड करने को धर्म कहा जाता है लेकिन यह करने की और धर्म की सार्थकता पीड़ा और पतन निवारण करना , सदभाव, सद्विचार और सत्कर्म करना है , अत्याचार और अन्याय से कमजोर की रक्षा करना है l
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