एक डाकू फकीरों , दरवेशों के वेश में डाके डालता था l अपना हिस्सा वह गरीबों में बाँट देता था l हाथ में माला लिए जपता रहता l एक बार उसके दल ने काफिला लूटा l एक व्यापारी के हाथ में ढेर सारा रुपया - पैसा था l लूट चल रही थी l उसने फकीर को देखा तो उसके पास सारा धन लाकर रख दिया l काफिला लुट जाने के बाद वह धन लेने पहुंचा तो देखा कि वहां तो लूट का माल बांटा जा रहा है , सरदार वाही था , जो दरवेश बना हुआ था l व्यापारी बोला ---- " हमने तो आपको दरवेश समझा था l आप तो कुछ और ही निकले l हमने डाकुओं के सरदार पर नहीं , फकीर पर , खुदा के बन्दे पर विश्वास किया था l आदमी का भरोसा साधु , फकीर पर से उठना नहीं चाहिए l यह धन आप रखिये , पर आपसे एक विनती है कि आप दरवेश के वेश में मत लूटिये l नहीं तो लोगों का विश्वास ही इस वेश पर से उठ जायेगा l वह डाकू तत्काल ही वास्तव में फ़क़ीर बन गया l उसके बाद उसने कभी डाका नहीं डाला l
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