निंदा सच्ची हो तो भी स्वीकार नहीं होती l निंदा जितनी सच होती है उतनी ही खलती है l
किन्तु यदि निंदा - आलोचना को सहज और सकारात्मक भाव से स्वीकार किया जाये तो व्यक्ति को अपने आपका सुधार करने के लिए भारी मदद मिलती है l अपने में कौन सी कमियाँ हैं , क्या दोष हैं ? इसका स्वयं इतना पता नहीं चलता l अपने व्यवहार या आचरण की परख दूसरों के द्वारा की गई आलोचना और निंदा के प्रकाश में भली भांति की जा सकती है l
निंदा अपने प्रकट और अप्रकट दोषों की ओर इंगित करती है तथा उन्हें सुधारने की प्रेरणा देती है l इसके लिए चाहिए वह द्रष्टि जो निंदा के प्रकाश में अपने दोष - दुर्गुणों को ढूंढ सके और चाहिए वह सहिष्णुता जो निंदा - आलोचना को सह सके l
किन्तु यदि निंदा - आलोचना को सहज और सकारात्मक भाव से स्वीकार किया जाये तो व्यक्ति को अपने आपका सुधार करने के लिए भारी मदद मिलती है l अपने में कौन सी कमियाँ हैं , क्या दोष हैं ? इसका स्वयं इतना पता नहीं चलता l अपने व्यवहार या आचरण की परख दूसरों के द्वारा की गई आलोचना और निंदा के प्रकाश में भली भांति की जा सकती है l
निंदा अपने प्रकट और अप्रकट दोषों की ओर इंगित करती है तथा उन्हें सुधारने की प्रेरणा देती है l इसके लिए चाहिए वह द्रष्टि जो निंदा के प्रकाश में अपने दोष - दुर्गुणों को ढूंढ सके और चाहिए वह सहिष्णुता जो निंदा - आलोचना को सह सके l
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